ग़ज़ल

चांद रात

हर तरफ थी रौशनी हर तरफ था उजाला एक  मेरे ही  घर अंधेरा  था चांद रात को गुल खिल गई थी कली मुस्करा रही थी एक मैं ही उदास  बैठा था चांद रात को मैं तुम्हारी जिंदगी की सलामती के लिए बाबर तुम्हारा सदाका  निकाल रहा था चांद रात को तेरे बगैर कैसी होगी इस […]

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रसाल सिंह 'राही'

ग़ज़ल

ग़ज़ल.. कि उसने बात दिल की ना कही होती हमें भी तो मुहब्बत ही नहीं होती अग़र मैं ज़िन्दगी को ज़िन्दगी लिखता नहीं मुझ से खफा यह ज़िन्दगी होती कभी होता नहीं यह दिल खफ़ा उससे हमारी बात उसने ग़र सुनी होती हमें भाते नहीं हमको सताते जो नहीं उनसे हमें अब दिल लगी होती

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