“जज़्बात-ए-ग़ज़ल” सिर्फ़ एक ग़ज़ल-संग्रह नहीं, बल्कि यह एक ऐसा दर्पण है, जिसमें समाज, प्रेम, राजनीति और मानवता की झलक दिखाई देती है। सियाराम यादव ‘मयंक’ जी ने इस संग्रह में अपने भावनात्मक अनुभवों और सामाजिक सरोकारों को इतनी सहजता से पिरोया है कि हर पाठक इससे जुड़ाव महसूस करता है। यह पुस्तक न केवल ग़ज़ल प्रेमियों के लिए, बल्कि उन सभी के लिए आवश्यक है जो साहित्य के माध्यम से समाज को समझना चाहते हैं।
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