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आलेख बालिका शिक्षा-पी.यादव ‘ओज’

शिक्षा’ जिसके माध्यम से मनुष्य यह जान पाता है कि जीवन में उसके होने का महत्व क्या है।जन्म का उद्देश्य क्या है।उसके स्वयं की,परिवार,समाज,देश और विश्व के प्रति उसकी जिम्मेदारियां क्या है?’शिक्षा’ जहां मनुष्य को आत्म-विकास से लबरेज करती है।वहीं स्वालंबन एवं श्रेष्ठ जीवन की ओर प्रेरित भी करती है।’शिक्षा’ हर मनुष्य को चरित्र संपन्न,विचारवान […]

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ऑपरेशन सिंदूर – जब राष्ट्र पहले है, राजनीति बाद में होनी चाहिए

भारत और पाकिस्तान के बीच हालिया संघर्ष के दौरान भारत सरकार द्वारा चलाया गया “ऑपरेशन सिंदूर” सिर्फ एक सैन्य कार्रवाई नहीं, बल्कि एक स्पष्ट संदेश था — “भारत अब चुप नहीं बैठेगा”।जहां एक ओर हमारी सेना सीमा पर बहादुरी से लड़ रही थी, वहीं भारत सरकार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में, दुनिया को

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Detailed image of the sun showcasing its fiery surface and glowing edges.

जीवन प्रत्याशा पर तपिश की मार- विजय गर्ग

देश इन दिनों हीटवेव की चपेट में है, जिसकी तीव्रता लगातार बढ़ती जा रही है। क्लाईमामीटर की नई रिपोर्ट के अनुसार, 1950 से अब तक की तुलना में वर्तमान हीटवेव औसतन चार डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म हो चुकी है। यह अंतर यूरोपीय मौसम एजेंसी कापरनिक्स के आंकड़ों के विश्लेषण से सामने आया है। अध्ययन में

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A close-up of a colorful clown doll with a sad expression lying in a woven basket.

सुख में दुख – विजय गर्ग

आज भी यह रहस्य ही लगता है कि कुछ लोग किसी की सराहना या प्रशंसा करने में कंजूसी क्यों करते हैं! किसी के लिए प्रशंसा के दो शब्द बोलना उन्हें दो कुंतल वजन उठाने से भी ज्यादा भारी क्यों लगता है ? ऐसे लोगों से जल्दी किसी की प्रशंसा नहीं होती और औपचारिकतावश करनी पड़

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लक्ष्य में तन्मयता

मन बड़ा शक्तिवान है परन्तु बड़ा चञ्चल । इसलिए उसकी समस्त शक्तियाँ छितरी रहती हैं और इसलिए मनुष्य सफलता को आसानी से नहीं पा लेता। सफलता के दर्शन उसी समय होते हैं, जब मन अपनी वृत्तियों को छोड़कर किसी एक वृत्ति पर केन्द्रित हो जाता है, उसके अलावा और कुछ उसके आमने-सामने और पास रहती

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मिलन जुदाई और ख़ुशबू की शायरा परवीन शाकिर

-डॉ. ज़ियाउर रहमान जाफ़री बिहार में दरभंगा के पास चंदन पट्टी नाम का एक गांव है,जहां परवीन शाकिर का कुंबा रहता था.भारत-पाक विभाजन के पहले उनके पिता रोज़गार की तलाश में कराची चले गए जहां 24 नवंबर 1953 को परवीन की पैदाइश हुई.ख़ुदा ने उन्हें वह सब कुछ दिया था, जिसकी एक लड़की सपने देखती

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पहलगाम हादसा

कभी सोचा नहीं था कश्मीर की वादियों में ऐसा माहौल बनेगा ऐसा ख़ौफ़नाक मंज़र ऐसा दर्दनाक हादसा देखने को मिलेगा जिससे सबकी रूह कांप उठी है जिस तरह से लग रहा था कि कश्मीर के हालात बेहतर हो गये हैं मग़र यह सब देखकर लगता है कि ऐसा नहीं हुआ और अब ऐसा लग रहा

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भाजपा भी कांग्रेस के नक्सेकदम पर

भाजपा से हम भारतीयों को बड़ी उम्मीद थी|भाजपा का भारत माता के प्रति प्रेम और उसका नारा हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्थान देख सुनकर हम भारतवासियों में यह उम्मीद जगी थी कि भाजपा को लायेंगे तो यह सभी भारतीयों में भारतीयता जगाकर सबको एक सूत्र में बाँधकर देश को आगे ले जायेगी|उन्नति के नये द्वार खोलेगी|जातिवाद भाषावाद

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मन मौजी

शिखा सिंह। कई बार देखा है की लोग शराब का गिलास लेकर बैठ जाते हैं और उसके सहारे दुनिया भर का तनाव कम करने की जगह दो गुना तनाव और बड़ा लेते हैं। स्त्री हो या पुरुष शराब पीना अब आम बात हो गयी है पार्टी या शादी या किसी भी समारोह में शराब पीकर

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पथ भ्रष्ट होता विद्यार्थी

विद्यार्थी दो शब्दों विद्या तथा अर्थी के परस्पर मेल से बना है जिसका अर्थ होता है – ज्ञान अर्जन करने वाला। प्राचीन काल से ही यह बात चली आ रही है कि विद्यार्थी सदैव संकटों और अभावों में जीने वाला होता है। विद्यार्थी कम साधनों में ही अपने आपको निखार लेता है। ज्ञान अर्जन करने

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स्त्री का आत्मसम्मान के लिए संघर्ष

स्त्री की उड़ान अक्सर चुभती है कुछ नजरो को उसका खुद के आत्मसम्मान के लिए लड़ना तूफान सा मचा देता है जैसे खामोश सरोवर में किसी ने अपनी इच्छा का एक सिक्का उछाल कर उसमें हलचल मचा दी हो, जब तक वो खामोश हों झेलती है सब कुछ वो एक अच्छी बहु ,बेटी,ग्रहणी कहलातीं है

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Grok इंटरनेट की दुनियाँ का सर्वाधिक रहस्यमय स्वरूप प्रस्तुत करता दिख रहा है

Grok इंटरनेट की दुनियाँ का सर्वाधिक रहस्यमय स्वरूप प्रस्तुत करता दिख रहा है इसके पहले लोग हर प्रश्न का प्रामाणिक जवाब गूगल बाबा से पूँछने में पूरी सुविधा समझते और भरोसा करते थे, Googal भी अपने भीतर की ढेर सारी संग्रहित सामग्री से छाँट कर आपको जिज्ञासा शान्ति उपलब्ध कराता है, वही काम अब Grok

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नाजुक मन की उलझनें

विजय गर्ग। जीवन का प्रथम सोपान बचपन स्नेह, प्यार, ममता और नटखटपन में कब निकल जाता है, पता ही नहीं चलता । घर-परिवार में बच्चों की आमद, किलकारी और शरारतें घर के बड़ों को आह्लादित और आनंदित करती हैं। उनके साथ बिताए हुए पलों की अल्बम को जब भी खोला जाए, एक विशेष प्रकार की

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राजेश कुमार बौद्ध

ओमप्रकाश वाल्मीकि: हिंदी साहित्य में एक आन्दोलन – राजेश कुमार बौद्ध

राजेश कुमार बौद्ध । सामाजिक पीड़ाएं जब दबती है तो आंसू व सिसकियों में तब्दील हो जाती हैं, यहीं पीड़ाएं जब उभरती है तो जन आन्दोलन का रूप धारण करती है। और जब यही पीड़ाएं शब्दों का रूप लेती है तो साहित्य बन जाती हैं, और ” जूठन ” जैसी कालजयी रचना का जन्म होता

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श्रीरामचरित मानस के वो चरित्र जो सबसे हे दृष्टि से देखे जाते हैं

श्रीरामचरित मानस के वो चरित्र जो सबसे हे दृष्टि से देखे जाते हैं –  पं.जमदग्निपुरी

 पं.जमदग्निपुरी। गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित श्रीरामचरित मानस विश्व में सबसे अधिक पढ़ी जाने वाली पुस्तक है|इस पुस्तक को अनेकानेक लोग प्रतिदिन पढ़ते हैं|इसी पुस्तक को पढ़कर वैज्ञानिक डॉक्टर व्यास आदि मन माफिक धन अर्जित कर रहे हैं|इसी पुस्तक की कुछ चौपाइयों के अर्थ को अनर्थ बताकर कुछेक मूढ़ नेता गण अपनी दुकान भी चला रहे

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पुरुषों पर नारी का एकछत्र साम्राज्य

पुरुषों पर नारी का एकछत्र साम्राज्य

आत्माराम यादव पीव वरिष्ठ पत्रकार। दुनिया भर के धुरन्धर ज्ञानियों-ध्यानियों, धर्मज्ञ, तत्ववेत्ताओं के होते हुये इस समाज में मुझ जैसा महामूर्ख भी है जो नर और नारी के बीच उनकी छुपी हुई प्रतिभाओं-कलाओं से हटकर नर में छिपी नारी को देखता है। पुरुषों में नारी पुरुषोत्तमा है जो अणिमा,लघिमा सिद्धिया है, प्रकृति में संध्या, ऊषा,

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पं.जमदग्निपुरी

फर्क साफ नजर आता है -पं.जमदग्निपुरी

पं.जमदग्निपुरी- पहले हमारे देश भारत में बड़े बड़े अपराधी आतंकवादी बड़े बड़े कांड करके देश से फरार हो जाते थे|वो ऐसे देश में जाते थे,जहाँ से भारत और उस देश से प्रत्यर्पण की संधि नहीं रहती थी|उसी में एक देश अमेरिका भी था|अमेरिका की खास बात यह थी कि वह किसी भी देश के दुर्दांत

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भारतीय साहित्य में समकालीन महिलाओं की आवाज़ें

भारतीय साहित्य में महिलाओं की आवाज विविध आख्यानों में योगदान करती है और सामाजिक मानदंडों को चुनौती देती है। भारत में महिलाओं के लेखन का विकास प्राचीन से समकालीन समय तक फैला हुआ है। यह यात्रा बदलती धारणाओं और महिलाओं के सशक्तिकरण को दर्शाती है। ऐतिहासिक पृष्ठभूमि प्राचीन साहित्य प्राचीन भारत में, महिला कवियों और

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मधु लिमये

60 और 70 के दशक में एक शख्स ऐसा हुआ करता था जो कागजो का पुलिंदा बगल के दवाये हुए जब सांसद में प्रवेश करता था तो ट्रेजरी बेंच पर बैठने वालों की फूंक सरक जाया करती थी कि न जाने आज किसकी शामत आने वाली है जी हाँ जिक्र हो रहा है समाजवादी आंदोलन

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