है पीकर भी न बहके यारों,
उसके लिए ये संसार नहीं…
हृदय नहीं पत्थर दिल है,जिसको मदिरा से प्यार नहीं,
है पीकर भी न बहके यारों,उसके ये लिए संसार नहीं!
हो ग़म किसी के जाने का,है साथ तेरे बोतल ही सही,
कभी हाथ हो माशूका का,कभी हाथ बोतल ही सही!
कोई जो पूछे तुमसे, हर दिन किसके साथ गुजर रही,
कह दो कोई नहीं अपना,एक ग्लास,एक बोतल सही!
नहीं कोई जल्दी पीने की,न होंठ है तरस रहे पीने को,
जीवन यूँ चलता रहे, कभी देशी, कभी बीयर ही सही!
जाम को दोष देते रहते हैं वो, उसको बदनाम कर रहे,
नशा झील सी आँखों का हो,या दो पैग दारू ही सही!
जो संभल संभल कर पीता रहा,बन बैठा वो अफसर,
है रख पाया न दिल पर काबू,बन गया शायर ही सही!
कौन जानें किस लिए पी रहा,होगा कुछ तो गम यारों,
कभी ठंडी बहुत हो रही,कभी हो गई बारिश ही सही!
जानें क्यूँ खोजता वो नशा, जाम पे जाम पीकर यारों,
है नशा मदिरा में,मदिरा नहीं झील सी आँखें ही सही!
लाख टके की बात ये भी, पीकर न कोई गलत बोला,
सच कहने को दिल हो, या फ़िर कोई मदिरा ही सही!
सड़क पर जो खड़े हो पीते, बेवड़े उनको सभी कहते,
कहीं बैठकर हैं जो पीते,पुकार लो मधुशाला ही सही!
डॉ.सूर्य प्रताप राव रेपल्ली