गुरुपूर्णिमा

माँ 🙏 तू माता मै लाल तेरी तू अस्तित्व मै परछाई तेरी गर्भ में सीखी मैने गाथा सीखी रामायण और कृष्ण की बाल लीला नमन करु मै माँ तुम्हे तुम ही हो पहली गुरु पिताजी 🙏 तुम मेरी छत ,तुम ही हो ढाल मेरी तुम मुझमें बसा पराक्रम ,तुम ही हो दृढ़ निश्चय मेरा तुम […]

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कविता

मैं झुकी थी – इसलिए उठ सकी

आइये , सुनते है मनस्तगिति एक स्त्री की , अपने स्वर में कहती रची हुई एक गाथा की , अपने संघर्ष, अपनी अनुभूति और शक्ति को पाने की, यह यात्रा खुद सुनाती है — शांत, दृढ़, और आत्मस्वीकृत स्वभाव में लक्ष्य पास जाने की । यह कविता उस स्त्री की आवाज़ है — जिसने रास्तों

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कविता

शिव की कलम से

_तुम मत बदलना मेरे लिए_ कुछ- कुछ तुम वैसी ही हो जैसे ढलती शाम में आकाश में उमड़ते बादल कुछ स्याह कुछ रक्तिमा कुछ कुछ नीली पीली धूप लिए. कुछ कुछ तुम वैसी ही हो जैसे मक्खन कुछ घी कुछ पिघला मोम बस अब तक नहीं जान पाया एक क्राइटेरिया में तुमको फिट करना. जब

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कविता

किरदार

डालकर अपने किरदार पर पर्दा लोग कहते हैं जमाना खराब है लिवाज बदल लेने से किरदार नहीं बदलते ऐसे लोगों के किरदार की मेरे पास भी खुली किताब है हम रखते हैं पाक साफ दिल अपना और लोग यहां खबरदार नजर आते हैं ऐ खुदा जब भी मिलूं तुझसे मिलूं लोगों से मिलता हूं तो

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कविता

किसी से तो शिकायत कर रहा है वो

ग़ज़ल.. किसी से तो  शिकायत   कर  रहा  है  वो मग़र  खुद  से   मुहब्बत  कर  रहा  है  वो नहीं उसको गिला शिकवा  किसी से अब ख़ुदा  की  अब   इबादत  कर  रहा  है वो दुआयें  चल रही  हैं  साथ  जब तक  यह ज़माने   से   बगावत    कर   रहा   है  वो सिवा   उसके   नहीं   आदत   हमें   कोई ख़ुदा  बन  कर   इनायत  कर  रहा  है वो खमोशी   रास   आती   थी   जिसे  ‘राही’ सभी  से  अब  रफ़ाक़त  कर  रहा  है  वो ~ रसाल सिंह ‘राही’

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ग़ज़ल

सच्ची सुंदरता

लघुकथा सच्ची सुंदरता वो झुर्रियों भरी काया आज उदास बैठी थी कंपकपाते हाथों के साथ खुद को दर्पण में देख व्याकुल हो रही थी दर्पण यथार्थ को उजागर कर रहा था और चिढ़ाते हुए काया से बोला :_बोल मेरी सुंदरी आज नहीं इठलाएगी,आज नहीं खुद को निहार निहार कर घमंड के सागर में डुबकी लगाएगी,आज

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लघुकथा

तख्ती से टैबलेट तक

🖋️ तख्ती से टैबलेट तक तख्ती से टैबलेट तक की ये कहानी, कभी हँसी, कभी अश्रु की निशानी। कक्षा की धूल से स्मार्ट स्क्रीन तक, शिक्षक की बदलती पहचान की रवानी। कभी चौक से उड़ता था ज्ञान, अब क्लिक पे खुलते हैं ज्ञान-विधान। पर बच्चों की आँखों से दूर हुआ मन, संस्कार कहाँ हैं —

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कविता

दुख का व्यापार

दुख का व्यापार सोशल मीडिया का हर तरफ इस तरह प्रभाव छा रहा की इंसान अपना दुख भी बेचता नजर आ रहा कभी खुद को रोते बता रहे कभी मां बाप के आंसू दिखा रहे छुपाया करते थे जिन चीज़ों को उनको खुलेआम जता रहे लाइक्स….व्यूज बढाने के लिए कुछ भी कंटेंट बना रहे अपने

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कविता

आलेख बालिका शिक्षा-पी.यादव ‘ओज’

शिक्षा’ जिसके माध्यम से मनुष्य यह जान पाता है कि जीवन में उसके होने का महत्व क्या है।जन्म का उद्देश्य क्या है।उसके स्वयं की,परिवार,समाज,देश और विश्व के प्रति उसकी जिम्मेदारियां क्या है?’शिक्षा’ जहां मनुष्य को आत्म-विकास से लबरेज करती है।वहीं स्वालंबन एवं श्रेष्ठ जीवन की ओर प्रेरित भी करती है।’शिक्षा’ हर मनुष्य को चरित्र संपन्न,विचारवान

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आलेख

तिरंगा

78 वां स्वतंत्रता दिवस को देखते हुए , मैंने अपनी ओर से विशेष रूप से तिरंगा पर देशभक्ति रचना की है । तिरंगा हीं मेरी आन है , तिरंगा हीं मेरी शान है तिरंगा हीं मेरी जान हैं ।। जिन्दगी से हार कर भी , हम जीत जाते हैं , वो कफन जब उनका तू

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कविता

कर भला तो हो भला

एक प्रसिद्ध राजा था । जिसका नाम रामपाल था । अपने नाम की ही तरह प्रजा की सेवा हीं उनका धर्म था । उनकी प्रजा भी उन्हें राजा रामपाल की तरह हीं पूजती थी । राजा रामपाल सभी की निष्काम भाव से सहायता करते थे । फिर चाहे वो उनके राज्य की प्रजा हो या

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कहानी

दिलों से आग नफ़रत की बुझाओ तुम

ग़ज़ल… दिलों से आग नफ़रत की बुझाओ तुम मग़र इन फ़ासलों को भी मिटाओ तुम नहीं अल्फ़ाज़ कोई मिल रहा मुझको लिखूं मैं क्या यहां कुछ तो बताओ तुम मुहब्बत इश्क़ की ना बात करना तुम कभी जब दास्तां दिल की सुनाओ तुम मुसाफ़िर हैं सभी अनजान राहों के किसी से भी नहीं यह दिल

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ग़ज़ल

ग़र टूटा दिल, तन्हाई संग होता यहाँ..

 ग़र टूटा दिल, तन्हाई संग होता यहाँ.. ग़र टूटता जब तारा आसमां में, उसे देख मन्नत मांगते हैं यहाँ सभी, न जानें  टूटे हुए दिल को देख, है क्यूं हसीं यहां उड़ाते यारों  सभी!   टूटे दिल की चीखें हैं कौन सुने, हर चेहरा मुस्कुराता है दिखता यहाँ! अंदर की दरारें हैं दिखती नहीं, बस ज़ख्मों पे नमक

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कविता

 अच्छा हुआ तुमने मुझसे, अब किनारा कर लिया….

अच्छा हुआ तुमने मुझसे, अब किनारा कर लिया, था अपना कभी बनाया, है अब बेगाना कर दिया। टूटे अरमानों की चुभन सीने में बसती है अब मेरे, हर साँस यादों की परछाई से, था ऐसा भर दिया! अच्छा हुआ तुमने मुझसे, अब किनारा कर लिया,   जो ख्वाब हमनें साथ बुने थे रेशम से कोमल

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कविता

वरना इतनी अच्छी सी किस्मत मेरी कहां हो.

वरना इतनी अच्छी सी किस्मत मेरी कहां हो… तेरे झील सी आँखों में मेरी हो दुनियां समाया,                माथे पर लगा सिंदूर मेरे प्यार की निशानी हो! तेरी मुस्कान जैसे सुबह की पहली हो किरण,               हर अंधेरे को चीरती, रौशनी का वो दर्पण हो,! तेरी आँखें लगे जैसे समंदर की सी हो गहराई,                हर राज़ छुपाए

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कविता

‘वी वॉक आफ एम्पावरमेंट’ की प्रस्तुति में ओपन माइक का शानदार आयोजन

मुंबई। 25 मई को गोरगांव पश्चिम स्थित ‘रासा द स्टेज’ में रविवार की शाम एक बेहद खूबसूरत और यादगार ओपन माइक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम का आयोजन ‘वी वॉक आफ एम्पावरमेंट’ संस्था द्वारा किया गया, जिसकी संस्थापक और मुख्य आयोजक नसरीन मलिक हैं। कार्यक्रम का उद्देश्य उभरते कलाकारों को मंच देना और

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साहित्य समाचार

ऑपरेशन सिंदूर – जब राष्ट्र पहले है, राजनीति बाद में होनी चाहिए

भारत और पाकिस्तान के बीच हालिया संघर्ष के दौरान भारत सरकार द्वारा चलाया गया “ऑपरेशन सिंदूर” सिर्फ एक सैन्य कार्रवाई नहीं, बल्कि एक स्पष्ट संदेश था — “भारत अब चुप नहीं बैठेगा”।जहां एक ओर हमारी सेना सीमा पर बहादुरी से लड़ रही थी, वहीं भारत सरकार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में, दुनिया को

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आलेख

मुश्किलों से भरी है जीवन,दिखती किरणें हैं उम्मीदों से भरी

है आंसुओं की सैलाब,मेरे इन आँखों में छिपी हुईं, पर साथ उसके, उम्मीद भरी किरण भी छुपी हुई! इरादे बादलों से परे,और निकलेंगी किरणें सुनहरी, जीवन के इन्हीं मुश्किलों में, सीख होती छुपी हुई! पल पल पग पग होगी सफ़र, यूँ कांटों से भरी हुई, कर कोशिश बढ़ा जो भी,सपने उसके साकार हुई! उठ चलो

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कविता

बाज़ार

बाज़ार हमें खरीदता है या हम बाज़ार को! राहगीर भी भटकने लगे चकाचौंध को देख कर अब आदमी की नीलामी होती है बेधड़क जिस्म भी चंद पैसों में बिकने लगे हैं बाज़ार भी आदमी की देन है फिर आदमी ही आदमी को बेचने लगे गाँव को मिटा कर शहर में तब्दील किया अब घरों को

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कविता

है पीकर भी न बहके यारों,उसके लिए ये संसार नहीं

है पीकर भी न बहके यारों, उसके लिए ये संसार नहीं… हृदय नहीं पत्थर दिल है,जिसको मदिरा से प्यार नहीं, है पीकर भी न बहके यारों,उसके ये लिए संसार नहीं! हो ग़म किसी के जाने का,है साथ तेरे बोतल ही सही, कभी हाथ हो माशूका का,कभी हाथ बोतल ही सही! कोई जो पूछे तुमसे, हर

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कविता

हो इजहारे दिल की बात,आंखों ही आंखों में हम करें…

हो इजहारे दिल की बात,आंखों ही आंखों में हम करें… है ख्वाहिश चलें बाग़ में,डाल बाहों में बांह डालकर के, कुछ सफ़र ही सही, साथ चलें हम होकर एक दूजे के! हो चंद बातें ही सही प्यार की, साथ गुजार कर तुमसे, हो इजहारे दिल की बात,आंखों ही आंखों में हम करें! कुछ यूँ झील

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कविता

बन मिसाल लोगों की,फ़िर दुनिया छोड़ने की सोच.

बन मिसाल लोगों की,फ़िर दुनिया छोड़ने की सोच. खुला हुआ नीला आसमां,ऊँची उड़ान भरने की सोच, है अंधेरा हर तरफ़,दूर तक रौशनी बिखेरनी की सोच! तेरे नज़रों से झलक रही, उम्मीदों से भरी हुई किरणें, उन बुलंदियों तक पहुँच, नीले आसमां छूने की सोच! नित नए अरमान,रंगीन सपनों को दिखा रही दुनिया, है चमचमाती चाँद

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कविता

 हो ग़र आखरी सांस मेरी,बस सांस रुके तेरी बाहों में.

 हो ग़र आखरी सांस मेरी,बस सांस रुके तेरी बाहों में. है ख्वाहिश चलें बाग़ में,डाल हाथ में हाथ एक दूजे के, मान इसे सफ़र,संग कुछ कदम चलो हमसफ़र बन के! हो चंद बातें ही सही प्यार की,संग संग रह कर तुम्हारे, हो इजहारे दिल की बात,यूँ आंखों ही आंखों में हमारे! कुछ यूँ झील सी आँखों

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कविता

माॅ

माँ का रूप – राम और कृष्ण की जननी माँ तू साक्षात् करुणा की मूरत, तेरे आँचल में बसी है सृष्टि की सूरत। जैसे यशोदा ने कृष्ण को झूला झुलाया, वैसे ही तूने हर दुःख को मुस्कुरा कर भुलाया। तेरे बिना राम वनवास भीअधूरा, कौशल्या के आँचल ने दिया था धैर्य का साथ पूरा। जन्म

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कविता

भोर का सूरज

भोर का सूरज मुझे पुकारे दूर हो जा ये रात के अंधियारे बहुत हुई ये तानाशाही अब ना चलेगी तेरी मनमानी मै संघर्ष पथ बढ़ चुकी हु तूफानों से टकराना सीख चुकी हु आते जाते है साएं ये गम के मै इनसे उभरना सीख चुकी हु भोर का सूरज मुझे पुकारे दूर हो जा ये

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कविता

नया मोड़

*नया मोड़* —————————- मन में नयी आगाज़ हुई नए भावों का आगमन हुआ सुसंस्कृत शब्दों का गठजोड़ हुआ पंकील विचारों का परिष्कार हुआ व्यवहार में चरित्र का वास हुआ बुद्धि में विवेक का समन्वय हुआ उदासीनता से रागात्मक वृत्ति हुई कोलाहल में शंखनाद हुआ जड़ता से चेतन हुआ पूर्णिमा दीदी का सान्निध्य मिला तो कविता

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कविता

माँ भारती की पुकार

फिर बजी है रणभेरी, हाथों में ले लो तलवार दुश्मन की सीमा में घुसके करना होगा संहार सरहद के कोने कोने, देशप्रेम का भाव जगाएं भले शहीद होके भी मरघटों का शृंगार बन जाएं संकट के बादल छाए, समर की बेला मतवाली शोणित का उबाल देखो, आँखों में छाई है लाली पाक के नापाक इरादे,

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कविता

मोदी और जोगी

मोदी जी को लहर समझो जोगी जी को कहर बिन मतलब की कोई वो बात नहीं करते जो समझा मोदी जी को जो समझा जोगी जो को वो सब कुछ समझ गया मोदी जी जोगी जी पर हम सब हिंदुस्तानियों को गर्व है मोदी जी हमारे त्योहार हैं जोगी जी हमारे पर्व है एक दूजे

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कविता

माँ का आंचल छोड़ कर युद्ध भूमि में उतरे हैं

माँ का आंचल छोड़ कर युद्ध भूमि में उतरे है है जाबाज सिपाही देश के देश पे कुर्बान होने निकले है राखी,सिंदूर, कंधा, और नन्ही नन्ही उंगलियां छोड़ गांव की गालियां निकले है है बुलावा भारत माता का कहकर देश की शान में निकले हैं माँ का आंचल छोड़ कर युद्ध भूमि में उतरे हैं

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कविता

सिन्दूर (ऑपरेशन सिंदूर)

चुटकी भर सिन्दूर की, मांग बड़ी है आज। ऑपरेशन सिन्दूर से , बची हमारी लाज।। शौर्य हमारे सैनिकों का, देख रहा संसार I नेतृत्व हमारा है सबल,कूच-कूच अब मार I चुटकी भर सिन्दूर की ,कीमत दिया बताय। सिंह बना गीदड़ सुनो, घुसा मांद में जाय।। इस पीले सिन्दूर की, महिमा बड़ी अपार। खींच पती को

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कविता

ऑपरेशन सिंदूर

आज लहूं देश का खोल रहा पहलगाम की घटना से, अब ना रुकेंगे घुसकर मारेंगें तेरे ही घर हथियारों से। काटेंगे और कुचलेंगें अब तुझको हम अपनें पाॅंवो से, ऐसा ताबीज़ कर देंगे बचके रहना हम पहरेदारों से।। कर देंगे अब ध्वस्त ठिकाने हिजबुल जैश लश्करों के, ऑपरेशन सिंदूर चलाकर देंगे ज़वाब तुम हत्यारों के।

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कविता

तेरे बिना तो माँ, अधूरा ये जहाँ है…

तेरे बिना तो माँ, अधूरा ये जहाँ है… माँ, तेरी यादों में बस जाऊँ , माँ, तेरी ऑचल में छिप जाऊँ… है पुकारती तेरी यादें मुझे इस कदर, हूँ डूब जाती, तेरी बातों में अक्सर मैं माँ, तू ही बरकत, तू ही मन्नत, तू ही मेरी दुआ है, तेरे बिना तो माँ, अधूरा ये जहाँ

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कविता

   झील-सी आँखों में तेरे, डूबकर खो जाऊँ मैं

झील-सी आँखों में तेरे, डूबकर खो जाऊँ मैं, हर घड़ी तुझको ही सोचूँ, ख़ुद से भी खो जाऊँ मैं! तेरे लब हँसते मिलें तो दिल मेरा खिलने लगे, तू जो ख़ामोशी से बोले, दर्द भी सह जाऊँ मैं। तेरे केशों की घटाएँ जब भी बिखरें सामने, बादलों को ओढ़ कर फिर, चाँद-सा दिख जाऊँ मैं।

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ग़ज़ल

हमला किया पहले पाकिस्तान पहलगाम में

हमला किया पहले पाकिस्तान ने पहलगाम में , 5 सशस्त्र आतंकियों ने 26 टूरिस्टों को मारे गए , तब भारत ने जवाब दिया ‘ऑपरेशन सिन्दूर ‘ से , ‘ऑपरेशन सिन्दूर ‘ द्वारा पाक के नौ आतंक के , ठिकानों का भारत ने किया मटियामेट , फिर भी पाकिस्तान का अकर खत्म हुआ नहीं , हमला

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कविता

अभी तो आगाज हुआ है

ऑपरेशन सिंदूर अभी तो शंखनाद हुआ है युद्ध अभी बाकी है अभी धरा स्वरूप सिंदूरी सिंदूर का लिया प्रतिशोध ही अभी तो राम भक्त की सेना से बस पहुंचे हनुमान ही तो ध्वस्त कर दिए तुम्हारे सारे नापाक इरादे ,ठिकाने और साए आतंक के तो सुन लो ये पाक वालो जो निकल पड़े रामभक्त और

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कविता

तेरी ऑचल में छिप जाऊं मां,

  तेरी यादों में बस जाऊं, तेरी ऑचल में छिप जाऊं मां, हूँ पुकारती तुझको, तेरे यादों में ही खो जाती हूँ मै मां! हां तेरी बातों यादों में ही खो जाती हूँ मै मां……   तू ही बरकत, तू ही मन्नत, है तेरे बिना अधूरा जहाॅ हैं, ये कोई रिश्ता,एहसास ही नहीं,मेरी हर सांस

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कविता

ऑपरेशन सिन्दूर ।operation sindoor

  हिन्दोस्तान  की  ताकत  है ऑपरेशन सिन्दूर जिसने   दुश्मन   के  इरादे  कर   दिये  हैं चूर पूछ   रहा  दहशतगर्दो   से  ऑपरेशन सिन्दूर कौन   पहुँचा  है   जन्नत   किसको  मिली हुर   भारत  का   यह  भरतीय   ऑपरेशन  सिन्दूर गुटने टेकने के लिए  कर देगा उनको मजबूर पहलगाम का बदला ले रहा ऑपरेशन सिन्दूर अपनो  को जब अपनो से किया था तुमने दूर   हाल बेहाल कर गया उनका ऑपरेशन सिन्दूर उड़ गए  होश  उनके  उड़  गया  चेहरे  का नूर लहू से रंगी धरती को इंसाफ दिला रहा सिन्दूर उन बेगुनाहों की बद्दुआएं लगेगी

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कविता

  है बस चल पड़ते सभी, मंज़िल की सभी को तलाश है….

  हैं चारों तरफ घिरे पानी से, सबको पानी की तलाश है, है ज़िन्दगी, फिर भी ज़िन्दगी में ज़िन्दगी की तलाश है! अथाह सागर सी गहराई देखी, जीवन में मैनें भी यारों, है उस पार जाना मुझे, है लगे ये भी कोई जिंदगानी है!   हर तरफ़ है भीड़, न जानें ये सफ़र कहां से कहां

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कविता

कर सामना हर चुनौती का मैं, बस आगे ही बढ़ता रहा…

  हुए ज़ुल्म इतने मुझ पर, फिर भी यारों मै अडिग रहा, चलता रहा मुश्किलों का दौर, मैं आगे ही  बढ़ता रहा! है देखा मैंने जाना भी, उनके उन हर अरमानों को भी, यूँ परेशानियों  को देख मेरे,वो मुस्कुराता रहा “प्रताप”,   रुक रुक कर मेरे राह पर,है बस कांटे ही बिछाता रहा, सब मुश्किलों का मुकाबला

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कविता

लहू खौल रहा सबका, अब युद्ध आर-पार का होगा….

  हो ऐसी ललकार हर तरफ़ से, अब बदला लेना होगा, शस्त्र उठा हाथों में यारों, दुश्मन को ललकारना होगा! सरहद की माटी पुकारे, कब तक जुल्म सहना  होगा, उठे दिलों में शौर्य-ज्योति,इस अंधेरे को हटाना होगा!   हैं तलवारें भी कहने लगी,हम पर धार नई कब होगी, तैयार हैं बंदूकें सारी,अब हिसाब बराबर करनी होगी!

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कविता
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