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डा. ज़ियाउर रहमान जाफ़री की 10 ग़ज़लें

ग़ज़लें ——— -डा. ज़ियाउर रहमान जाफ़री ( 1) तुम्हारे सब गिले अच्छे नहीं हैं मुकम्मल तज़किरे अच्छे नहीं हैं बता कर सब हक़ीक़त रख रहे हैं कहीं से आईने अच्छे नहीं हैं शिकायत मुझसे ही होती रही है मगर वो भी बड़े अच्छे नहीं हैं अंधेरों की रही है बस शिकायत जो जलते हैं दिये […]

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पहलगाम हादसा

कभी सोचा नहीं था कश्मीर की वादियों में ऐसा माहौल बनेगा ऐसा ख़ौफ़नाक मंज़र ऐसा दर्दनाक हादसा देखने को मिलेगा जिससे सबकी रूह कांप उठी है जिस तरह से लग रहा था कि कश्मीर के हालात बेहतर हो गये हैं मग़र यह सब देखकर लगता है कि ऐसा नहीं हुआ और अब ऐसा लग रहा

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हिन्दी दोहे- उदित करो शुभ कर्म

राना कहता आपसे,उदित करो शुभ कर्म। इसके पहले आपको,पड़े निभाना धर्म। हर कामों के धर्म हैं,जिनको कहें उसूल। राना होते है उदित,उसी तर्ज पर फूल।।   अंतराल से मित्र जब,आकर दे सम्मान। आज उदित कैसे हुए,हँसता राना आन।। अस्ताचल के बाद ही,सदा उदित हो भान। राना यह संसार का,सबसे सुंदर गान।।   अब गुदड़ी के

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कहानी:  अजनबी खिड़की

रेखा को वो पुराना घर किराए पर मिला था—शहर की हलचल से थोड़ा दूर, शांत और पेड़ों से घिरा हुआ। एक लेखक के लिए इससे अच्छी जगह क्या होती? एकांत, शांति और समय। घर में सब कुछ ठीक था, बस ऊपर की एक खिड़की अजीब लगती थी। वो खिड़की बाहर की ओर खुलती थी, लेकिन

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दास्तान-ए-एहबाब

दास्तान-ए-एहबाब मैं गहरा और गहरा, गहराता जा रहा हूँ, अब क्या छुपाना, मैं खुदा के पास जा रहा हूँ! ना रोको मुझे के अब बढ़े क़दम मेरे, जाने दो मुझको मैं जहाँ जा रहा हूँ! ना घबराओ तुम ना जाऊँगा इस जहानं से, बस घड़ी दो घड़ी में लौट कर आ रहा हूँ! हंसता है

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युद्ध का बिगुल बजाओ

हम ही राम भी है जपते हम ही कृष्ण भी है जपते हम जपते हैं विष्णु हम ही शिव भी जपते   हम हिन्दू है शिव को भी है पूजते शिव है प्रलयकारी शिव है तांडव भी करते जब जब कोई अधर्म बड़े शिव नेत्र अपना तीसरा खोल वध उनका है करते   यही है

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पहलगाम आतंकी हमला

पहलगाम आतंकी हमला🥹🥹 सभी निर्दोष लोगों को भावपूर्ण श्रद्धांजलि 🙏🙏🙏 अम्बर की गर्जना किंचित लगी रुद्र करुण स्वर के आगे देख खून से लथपत मासूमियत को बेजान धरा भी आलाप कर रही ईश्वर के आगे धर्म अधर्म का कैसा ये यहां खेल रच गया तूने सबको एक बनाया फिर मानव कैसे धर्म में बट गया

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निर्मेष

खोलो द्वार सीमाओं का

पहलगाम का सामूहिक ये भीषण नरसंहार, मांग रहा अपनो से ही अब अपनो का हिसाब। उनकी साफगोईयों का ये कैसा उनको सिला मिला , खामोश सिंह को कहि कायर तो नहीं समझ लिया। निकले निहत्थे वे सब थे जन्नत की एक सैर को , उनकी कब्रगाह बना दिया तूने ही उस जन्नत को। कभी सोचता

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हार मुझे कभी स्वीकार नहीं

समय ने अक्सर मुझे तोड़ना चाहा पर मैने उसे कभी ऐसा नहीं करने दिया यही वजह रही, समय बार बार मुझे तोड़ता रहा, पर हर बार उसे हारना पड़ा, क्यों कि हार मुझे कभी स्वीकार नहीं हुई जब जब उसने तोड़ा, तब तब मै दुगने जोश से, उसको जवाब दिया फिर उम्र भी मेरे आगे

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