गाँव मेरा भी अब मुस्कुराता नहीं
गाँव मेरा भी अब मुस्कुराता नहीं। आह भरता मगर गुनगुनाता नहीं।। खेत में कंकरीटों की उगती फसल । धान गेहूं कोई अब उगाता नहीं।। शब्द सोहर के जाने कहां खो गए । अब ये बिरहा पराती सुनाता नहीं।। अजनबी बन गए गांव के लोग भी। कोई भी अपने सर को झुकाता नहीं।। भावनाएं अहिल्या हैं […]
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ग़ज़ल