बहुत उजाला होने लगा है अपने इस आशियाने में,
रखे हुए हैं कुछ जुगनू चलो जंगल में छोड़ आते हैं!
समंदर का पानी कुछ मीठा लगने लगा है *प्रताप*
यूं चुटकी भर नमक, चलो समंदर में मिला आते हैं!
प्यार मोहब्बत की बातें सब करते रहते हैं ज़िन्दगी में,
क्यों न किसी अजनबी को भी चलो हम हंसा देते हैं!
हर तरफ़ सैलाब है, पानी का सारे शहर में *प्रताप*
देखें किसने अपने गमों को आसूं बना बहा दिया है!
कैसे करे, कोई प्यार मोहब्बत की बातें भी यहां पर,
जाने क्यूं ज़माने ने हर तरफ़ पहरेदारी लगा रखी है!
न जाने क्यूं बहुत फूल मुरझा गए इस बगिया में कैसे,
इन बागों में चलो, आज कुछ भौरों को छोड़ आते हैं!
नादान है, वो जो जानते ही नहीं हैं हवा का रुख भी,
सुना है,वो भी आजकल तूफ़ान की ख़बर देने लगे हैं!
हैं वो कह रहे जीत लेंगे सब कुछ इस जीवन में यारों,
वो आजकल अपनों की लिए वृद्धाश्रम तलाश रहें हैं!
है कोई नहीं जानता, के जिंदगी कितने पल की है,
भुला दुश्मनी सभी के, ज़िंदगी में प्यार जगा देते हैं!
वो अक्सर माहिर हैं, कमियां निकालने में सभी की,
चलो अब उनकी भी आईने से, मुलाकात करा देते हैं!
डॉ.सूर्य प्रताप राव रेपल्ली