भोर का सूरज मुझे पुकारे
दूर हो जा ये रात के अंधियारे
बहुत हुई ये तानाशाही
अब ना चलेगी तेरी मनमानी
मै संघर्ष पथ बढ़ चुकी हु
तूफानों से टकराना सीख चुकी हु
आते जाते है साएं ये गम के
मै इनसे उभरना सीख चुकी हु
भोर का सूरज मुझे पुकारे
दूर हो जा ये रात के अंधियारे
पिंजरा बेबसी का अब कमजोर हुआ है
तोड़ कर पंछी अब आजाद हुआ है
नहीं कोई बेड़ियां अब बांध पाएगी
पंछी पंख मजबूत कर चुका है
भोर का सूरज मुझे पुकारे
दूर हो जा ये रात के अंधियारे
मरुस्थल से गुजर गुजर कर
तपन को सहना सीख चुकी हु
रेतीली हो सतह कोई भी
धस कर निकलना सीख चुकी हु
भोर का सूरज मुझे पुकारे
दूर जा ये रात के अंधियारे
निरंजना डांगे
बैतूल मध्यप्रदेश