कविता

प्रश्न एक अच्छा सा उठ गया है मन में

चलें फिर धूप में बहते हैं गीत: “चलो फिर मुस्कुरा लें हम, चलें फिर धूप में बहते है ) (वरिष्ठ जीवन की सजीव प्रेरणा- जीवन जीते रहना ) चलो फिर मुस्कुरा लें हम, चलें फिर धूप में बहते हैं । अभी जीवन बचा है खूब, न थकते हैं और न थमते हैं। धीरे चलें तो […]

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इंजी. रत्नेश गुप्ता

कवि की अभिलाषा

कवि की अभिलाषा ना चाहूँ मैं तालियों की बौछार ना चाहूँ मैं प्रशंसा की फुहार ना ही शाल श्रीफल की कामना है ना ही गलहार की भावना है ना ही छंदों के नियम को मानता हूँ ना ही अलंकारों की कला मानता हूँ चाहूँ तो बस आपसे यह सत्य वचन मेरे शब्दों पर कर ले

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आओ आज उन शहीदों की भी बात कर लेते हैं हम

आओ आज उन शहीदों की भी बात कर लेते हैं हम, आज क्रांतिकारियों के चरणों में शीश रख लेते हैं हम। अंग्रेज दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए अपनी ताकत से, तहे दिल से नमन वंदन और अभिनंदन करते हैं हम।। देश बचाने के खातिर जिसने बलिदान दिया अपना, गुलामी से मिले छुटकारा स्वच्छ गगन में

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प्रतीक्षा

तेरी प्रतीक्षा में सजनि क्षण – क्षण बीतत जाए । पंथ निहारत थके नयन आशा – गागरि रीतत जाए ।। पर्वतों से धूप ढ़ल चुकी और सुहानी रात ढ़ल चुकी । दिशा बदल चुकी पवन भी काल – गति कितनी बदल चुकी।। आए – गए मौसम यहॉं कई प्रियतम तुम नहीं आए । पंथ निहारत

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शहादत के सूरज

शहादत के सूरज आ रहे हैं। सबको याद दिला रहे हैं।। यह याद आ रहे हैं। सबको पास बुला रहे हैं।। मातृभूमि पर मर मिटने की। यह सीख दे रहे हैं।। कहीं ना कहीं हम सभी को। यह सीख दे रहे हैं।। यह ना कभी ढलेंगे। निरंतर यूं ही जलते रहेंगे।। सभी को याद आते

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कल्पनाओं का वृक्ष

मन की भूमि पर अंकुरित हुआ एक नन्हा पौधा कितना कोमल,कितना प्यार,कितना सुंदर है ये पौधा जड़े गहरी, तना मजबूत, टहनियां झूल रही है मदमस्त सी परिश्रम की बूंदों से हर क्षण बढ़ रहा है ये पौधा एक दूजे को साथ लेकर बढ़ रही है टहनियां पाकर प्रीत हवा का झोंका झूम रही है टहनियां

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निर्मेष

नदियों का उधार

कस्बे के कोलाहल से दूर सिवान था सुदूर काम से लौटते मजदूर पर तुमसे मिलने का सुरूर I सुहानी सुरमयी शाम आज भी है याद तेजी से ढलती शाम चाँदनी आने को करती फ़रियाद I हमारे मिलन ने उसे रोक रखा था उसने तारों का वास्ता दिया उदास मैंने तुमको विदा किया। समय पंख लगा

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मैंने लिखा इसलिए नहीं….

लिखना चाहता अगर समाज को, मैं तो, लिख देता सारे अच्छाइयों को कुछ चंद आधे पन्ने पर तनिक सा स्याही समाप्त होता बस, क्योंकि, बहुत कम है अच्छाई इस समाज में… लिखा इसलिए नहीं, क्योंकि पल भर में ही समाप्त हो जाते पन्ने और स्याही मेरे अगर करता मैं वर्णन बुराईयों का, शायद बहुत बुराइयां

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इंजी. रत्नेश गुप्ता

पीली बसें

सड़क पर दौड़ती पीली बसें नोनीहालों को ले जाती पीले बसें सड़क पर मौत का तांडव नजर आती पीली बसें बेतारतीब दौड़ती पीली बसें ट्रैफिक नियम को धता बताती पीली बसें सकरी गलियों में दौड़ती पीली बसें

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किरण बैरवा

किरण बैरवा की कविताएँ

वो ही तो हूँ मैं   गुजार दिए होंगे दिवस, मास, वर्ष जो एक रात ना कट सके, वो पल ही तो हूँ मैं जाने कितने ही लोगों से कितनी ही दफां की होगी बातें हृदय की सुन सकूॅं, वो शख्स ही तो हूँ मैं जीवन में बिताए है हसीन पल सबके साथ जो कभी

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