हुए ज़ुल्म इतने मुझ पर, फिर भी यारों मै अडिग रहा,
चलता रहा मुश्किलों का दौर, मैं आगे ही बढ़ता रहा!
है देखा मैंने जाना भी, उनके उन हर अरमानों को भी,
यूँ परेशानियों को देख मेरे,वो मुस्कुराता रहा “प्रताप”,
रुक रुक कर मेरे राह पर,है बस कांटे ही बिछाता रहा,
सब मुश्किलों का मुकाबला कर बस आगे बढ़ता रहा!
उसकी हर चाल,हर हरकतें मेरा दिल समझ रहा यारों,
कर सामना हर चुनौती का मैं,बस आगे ही बढ़ता रहा!
बस आगे ही बढ़ता रहा…
बस आगे ही बढ़ता रहा…

– डॉ.सूर्य प्रताप राव रेपल्ली