अपने झील सी आँखों और दिल में बसा रखी हो………
यूँ लगे अंधेरे को चीरती उजाला,चाँद की किरणें हो!
अपने झील सी आँखों में,और दिल में बसा रखी हो,
है हर ग़म को भुला देती, लगे मधुर राग की घुन हो,
हैं शब्द मीठे मिश्री से, होंठ लगे रंगे गुलाबों सी हो!
जब करती बातें वो अनवरत, मिठास मिश्री सी लगे,
हो जब चुप्पी चेहरे पर, अदृश्य संगीत गूंज रहा हो!
चेहरे पर लगे चमकती, जैसे चाँद की वो चाँदनी हो,
पलकें खुले तो लगे सबेरा, सासें खुशबू में बसी हो!
होती चाहत मेरे दिल में,खो जाऊँ उसके मुस्कान में,
हर कदम पर तेरे, एहसास यही होता बस जन्नत हो!
घने काले केश खुले तो, लगे बस छावँ ही छावँ हो,
हो पास मेरे तो लगे, जैसे के साथ मेरे हमसफ़र हो!
आँखों ने कुछ ख्वाब है देखे, ख़्वाब मेरे वो सच हो,
है बना हमसफ़र अपना मुझे,दिल में बसा रखी हो!
अपने इन झील सी आंखों में…..
अपने दिल में बसा रखी हो……
मेरे जीने की वजह बन गई हो……
डॉ.सूर्य प्रताप राव रेपल्ली