गाँव मेरा भी अब मुस्कुराता नहीं

अपने दोस्तों के साथ अवश्य साझा करें।

गाँव मेरा भी अब मुस्कुराता नहीं।
आह भरता मगर गुनगुनाता नहीं।।

खेत में कंकरीटों की उगती फसल ।
धान गेहूं कोई अब उगाता नहीं।।

शब्द सोहर के जाने कहां खो गए ।
अब ये बिरहा पराती सुनाता नहीं।।

अजनबी बन गए गांव के लोग भी।
कोई भी अपने सर को झुकाता नहीं।।

भावनाएं अहिल्या हैं अर्जुन हुईं।
राम कोई नजर आज आता नहीं।।

अर्जुन प्रभात
9525925138

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Shopping Cart
Scroll to Top