Detailed image of the sun showcasing its fiery surface and glowing edges.

जीवन प्रत्याशा पर तपिश की मार- विजय गर्ग

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देश इन दिनों हीटवेव की चपेट में है, जिसकी तीव्रता लगातार बढ़ती जा रही है। क्लाईमामीटर की नई रिपोर्ट के अनुसार, 1950 से अब तक की तुलना में वर्तमान हीटवेव औसतन चार डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म हो चुकी है। यह अंतर यूरोपीय मौसम एजेंसी कापरनिक्स के आंकड़ों के विश्लेषण से सामने आया है। अध्ययन में स्पष्ट किया गया है कि मौजूदा उष्ण लहरें पहले की तुलना में अधिक घातक हैं और इसके लिए मुख्य रूप से मानव जनित जलवायु परिवर्तन जिम्मेदार है, जो अब मानव स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बन चुका है।




हालिया रिपोर्ट के अनुसार, हीटवेव की तीव्रता में वृद्धि के पीछे मानव जनित जलवायु परिवर्तन है। भारत में हीटवेव के साथ-साथ मौसम संबंधी कई बदलाव देखे गए हैं, जैसे सतह के वायु दबाव में वृद्धि, हवाओं की गति में कमी, तापमान पैटर्न में बदलाव और नमी में वृद्धि। रिपोर्ट बताती है कि पिछले 80 वर्षों में महानगरों में अत्यधिक गर्मी वाले दिनों की संख्या तीन गुना बढ़ गई है। जहां 1940 के दशक में समुद्री सतह पर सालाना औसतन 15 दिन अत्यधिक गर्मी दर्ज होती थी, वह अब बढ़कर 50 दिन हो गई है। प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, समुद्री हीटवेव अब अधिक तीव्र और दीर्घकालिक हो गई हैं, जो वैश्विक तापमान वृद्धि का सीधा परिणाम है।




तापमान में निरंतर वृद्धि के चलते घातक लू की घटनाओं में बीते दशकों में तेजी से वृद्धि हुई है। आंकड़ों के अनुसार, हर वर्ष दुनिया भर में औसतन 1.53 लाख से अधिक लोगों की मौत लू के कारण होती है, जिनमें से पांचवां हिस्सा भारत में होता है। इसके बाद चीन और रूस में सबसे अधिक मौतें दर्ज की गई हैं। एशिया में गर्मियों के दौरान होने वाली कुल मौतों में लगभग 50 प्रतिशत और यूरोप में 30 प्रतिशत से अधिक मौतें लू से जुड़ी होती हैं। हालिया अध्ययन से यह भी सामने आया है कि जलवायु परिवर्तन ने अप्रैल महीने में पूरे एशिया में हीटवेव की तीव्रता को काफी बढ़ा दिया है, जिससे अरबों लोग प्रभावित हुए हैं।



स्विट्ज़रलैंड स्थित ईटीएच ज्यूरिख यूनिवर्सिटी के एक हालिया अध्ययन के अनुसार, यदि प्रतिकूल मौसमी परिस्थितियों की घटनाएं इसी प्रकार बढ़ती रहीं तो भविष्य में लू से संबंधित मौतों की दर और अधिक बढ़ने की आशंका है। वर्ष 2003 में यूरोप में तापमान 47.5 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था, जिससे लू के कारण 45 हजार लोगों की मौत हुई थी। पिछले 20 वर्षों में यह संख्या एक लाख के करीब पहुंच चुकी है। वर्ष 2013 से किए गए एक वैश्विक अध्ययन में, जिसमें दुनिया के 47 देशों के 748 शहरों में गर्मी से जुड़ी मृत्यु दर के आंकड़े जुटाए गए, यह स्पष्ट हुआ है कि लू की घटनाओं में कहीं भी कमी नहीं आई है। इसके विपरीत, इनसे होने वाली मौतों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है, खासकर यूरोप, दक्षिण एशिया, लैटिन अमेरिका, अमेरिका और कनाडा जैसे क्षेत्रों में बढ़ोतरी हुई है। वैज्ञानिकों ने कार्बन डाइआक्साइड में हुई रिकार्ड बढ़त और तापमान में लगातार होती बढ़ोतरी के चलते हीटवेव की भयावहता की आशंका व्यक्त की है।
हीटवेव की बढ़ती तीव्रता और घातकता के चलते देश की 80 प्रतिशत आबादी और 90 प्रतिशत क्षेत्रफल इसके जोखिम की जद में आ सकता है। यदि इससे निपटने के लिए त्वरित कदम नहीं उठाए गए तो भारत को सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार, हीटवेव मानव स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक खतरनाक है, जिससे डिहाइड्रेशन, हीटस्ट्रोक और मृत्यु तक हो सकती है। हीटवेव से सबसे अधिक खतरा बच्चों, बुजुर्गों, महिलाओं, फेफड़ों की बीमारी से ग्रस्त लोगों, और निर्माण व श्रम कार्यों से जुड़े लोगों को होता है। पहले से बीमार लोग विशेष रूप से अधिक संवेदनशील होते हैं और उन्हें अतिरिक्त सतर्कता बरतने की आवश्यकता है।




बीते वर्षों में हीटवेव ने हर महाद्वीप को प्रभावित किया है, जिससे जंगलों में आग की घटनाओं में भारी वृद्धि हुई है। साल 2022 का अप्रैल बीते 122 वर्षों में सबसे गर्म रहा। अनुमान है कि आने वाले 26 वर्षों में लगभग 60 करोड़ लोग इससे सर्वाधिक प्रभावित होंगे। इससे 31 से 48 करोड़ लोगों की जीवन गुणवत्ता में गिरावट आएगी। विश्व मौसम विज्ञान संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, पिछला दशक अब तक का सबसे गर्म दशक रहा है और 2025 में वैश्विक गर्मी के नए रिकॉर्ड बनने की आशंका है। यदि तापमान वृद्धि को नियंत्रित नहीं किया गया, तो सदी के अंत तक गर्मी के कारण 1.5 करोड़ लोगों की जान जोखिम में पड़ सकती है।
कोलंबिया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों के अनुसार, प्रमुख जीवाश्म ईंधन कंपनियों द्वारा अत्यधिक तेल और गैस उत्सर्जन से वैश्विक तापमान खतरनाक स्तर तक पहुंचने की आशंका है। यदि मौजूदा उत्सर्जन स्तर 2050 तक जारी रहा, तो 2100 तक यह स्थिति लाखों लोगों की मौत का कारण बन सकती है। शोध बताता है कि हर एक मिलियन टन कार्बन उत्सर्जन से 226 अतिरिक्त हीटवेव घटनाओं में वृद्धि होती है। संयुक्त राष्ट्र की जलवायु समिति का कहना है कि वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में 43 प्रतिशत की कटौती अनिवार्य है। लेकिन धरती की गर्म होने की रफ्तार अनुमानों से कहीं ज्यादा तेज है। यदि उत्सर्जन पर अंकुश नहीं लगा, तो सदी के अंत तक तापमान 4 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है, जिससे धरती की जीवन-योग्यता ही संकट में पड़ सकती है।

विजय गर्ग

विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल मलोट

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