दास्तान-ए-एहबाब
मैं गहरा और गहरा, गहराता जा रहा हूँ,
अब क्या छुपाना, मैं खुदा के पास जा रहा हूँ!
ना रोको मुझे के अब बढ़े क़दम मेरे,
जाने दो मुझको मैं जहाँ जा रहा हूँ!
ना घबराओ तुम ना जाऊँगा इस जहानं से,
बस घड़ी दो घड़ी में लौट कर आ रहा हूँ!
हंसता है चेहरा मगर ग़म हैं हज़ारों,
तुम क्या समझे, यूँ ही पिए जा रहा हूँ!
मौत से तो रूबरू हो चुका हूँ मैं कब से,
तेरी आस में ही तो जिए जा रहा हूँ,
गुज़रोगे तुम भी पैमाना-ए-दोस्ती से,
“एहबाब” हूँ, मैं तो डूबता ही जा रहा हूँ!
– विभोर व्यास