कुछ जुगनू जंगल में छोड़ आते हैं..

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हंसना हंसाना ही है जिंदगी, जीने का मज़ा लीजिए,
सोचने वाले बहुत तुम पर, उन पर ही छोड़ आते हैं!

छोटी सी एक मुलाकात,बन जाती हर पल की यादें,
यूँ मुलाक़ात उसे अजनबी समझ,चलो कर आते हैं!




जो आज साथ हम सभी, कल क्या होगा पता नहीं,
भुला सब दुश्मनी,चलो अपनों से गले मिल आते हैं!

हैं खुश हो रहे सभी अपने अपने अरमानों पर यारों,
चलकर किसी अजनबी के, हम आसूं पोंछ आते हैं!




है बहुत मीठा लगने लगा, पानी समंदर का “प्रताप”,
चलो चुटकी भर नमक,हम समंदर में मिला आते हैं!

हुई रात है छा गया घनघोर अंधेरा हर तरफ़ “प्रताप”,
है फैलाने रोशनी, कुछ जुगनू जंगल में छोड़ आते हैं!




डॉ.सूर्य प्रताप राव रेपल्ली 

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