डॉ सत्येन्द्र कुमार की कहानी – गुरु बिन ज्ञान कहां से पाऊं

अपने दोस्तों के साथ अवश्य साझा करें।

संत फरीद अत्यंत ही सरल, प्रखर ज्ञानी, प्रभावशाली व्यक्तित्व थे। कहते हैं जागृत अवस्था में ही वे प्रभु से सीधा वार्तालाप कर लेते थे। उनके अनेकों शिशु हुए जो ज्ञानी और पहुंचे हुए थे। एक बार एक प्रिय शिष्य गुरु संत फरीद से सीधा सवाल कर दिया, महात्मन, आप इतने प्रकांड ज्ञान और मानव रहस्यों के जानकार हैं, पर आपका गुरु कौन है जिसकी कृपा ने आपको चमत्कारी संत बना दिया है? शिष्य का प्रश्न सुनकर संत चुप हो गए और कुछ सोचने लगे फिर कहा गुरु एक हो तो तुम्हें बताऊ, मुझे तो न जाने कितने गुरुओ ने ज्ञान दिया । रोज ही किसी ना किसी गुरु से मिलने का संजोग होता है। वि‌द्वानों से, अनुभवों से, प्रकृति से, वृक्षों से, जानवरों से सबसे कुछ न कुछ सीखने को मिलता है। आवश्यकता है अपने इंद्रियों को खोलने की, मस्तिष्क को जिज्ञासु बनाकर रखने की और तब ज्ञान हर तरह से बरसता है. बस आप तो उपयोगी ज्ञान को संग्रह करता भर है। शायद महेंद्र सर मेरे जीवन में एक क्षण में ऐसे ही प्रवेश कर गए जैसे (नरेंद्र) विवेकानंद को स्वामी रामकृष्ण मिले थे।

 

इकिस्वी सदी के प्रारम्भ में मैं अपने एक कच्चे-पक्के शोधपत्र को किसी सुयोग्य शिक्षक से परिमार्जित करा कर एक वैज्ञानिक पत्रिका में प्रकाशित कराने हेतु हाथ-पैर मार रहा था कि रांची विश्वविद्यालय, जन्तु विज्ञान विभाग के प्रोफेसर एवं अध्यक्ष डॉक्टर महेंद्र प्रसाद से मेरी मुलाकात हो गई। फिर तो एक नई कहानी ही प्रारंभ हो गई। पहली ही मुलाकात में न सिर्फ उन्होंने मुझे अपनी सहयोगी बना लिया बल्कि शोध का, अनुसंधान पत्र, विज्ञान संप्रेषण की बारीकियां समझाते चले गए। उनके साथ दो दशक के संपर्क और साथ काम करने से मुझे जिन सूत्रों का ज्ञान और अनुभव मिला, उसने मेरे जीवन को ही बदल डाला। इस दो दशक में कई देशो का शैक्षिक भ्रमण एवं कई अंतरराष्ट्रिय कांफ्रेंस के आयोजन में मैं डॉ महेंद्र प्रसाद के साथ हुआ करता था । बायोस्पेक्ट्रा इंटरनेशनल जर्नल के प्रकाशन में बतौर नेशनल एडिटर के रूप में काम किया। जीव विज्ञान के शोध, विकास, प्रचार और प्रसार के लिए समर्पित उस विरल बारीकिया ने मुझे अपना प्रिय शिष्य बनाकर जीव विज्ञान के क्षेत्र में स्थापित और प्रख्यात कर दिया। आज अपने संस्थान और शोध-पत्रिका में के माध्यम से मेरी जो भी गतिविधियां एवं कार्यकलाप हो रहे हैं वस्तुतः मैंने वह सब डॉ महेंद्र प्रसाद के प्रेम और सानिध्य में सीखा है। उनका सरल व्यक्तित्व, कार्यशैली, प्रखरता, जुझारूपन और बड़े-बड़े सपने देख कर उन्हें पूरा करने का जतन और लगन बस अद्भुत था। हर क्षण में उन्हें सच्चा गुरु मान, उनसे कुछ सीखने की लालसा रखता था।

 

मेरी अभिरुचि सिर्फ और सिर्फ विज्ञान तक सीमित थी। किंतु डॉ महेंद्र प्रसाद की विज्ञान, कला, मानवता और आगे प्रभुता तक जाती थी। देखते देखते हैं जो ध्यानमग्न हो जाते थे, संगीत में खो जाते थे, भजन में मस्त हो जाते थे और हम सब को भी एक आलोकिक अहसास का दर्शन करा देते थे। योग और ध्यान में उनकी गहरी आस्था थी और अपने और व्यस्तम समय में भी वो कुछ क्षण इसके लिए निकाल लिया करते थे। इन सब कार्यो में आई सी ए आर के पूर्व निदेशक एवं मखाना मैन से चर्चित डॉ जनार्दन जी भी साथ हुआ करते थे और विचारक हेनरी डेविस से वे प्रभावित थे। हेनरी डेविड थोरों के अनुसार, जिंदगी जीने का आपने जो सपना देखा है उस पर अमल करें, उसे जिये। जैसे-जैसे आप अपने जीवन को सरल बनाते जाएंगे, अपने लिए ब्रह‌मांड के नियम भी सरल होते जाएंगे और अपने नई शक्ति, प्रेरणा और मस्ती का संचार होगा। कामयाबी हासिल करने के लिए सिर्फ काम करना ही काफी नहीं है स्वप्न देखना भी जरूरी है और सिर्फ योजना बनाने भर से सफलता प्राप्त नहीं होती, उस योजना का कार्यान्वयन भी मनोयोग और निष्ठा से करने की आवश्यकता होती है। आपका पक्का इरादा, दूरदृष्टि और निष्ठा पूर्वक संपादित कार्य आपको सफलता और सच्चा आनंद दे सकता है। आमतौर पर हर कोई सपना देखता है लेकिन उन सपनों के प्रति लाखों में कोई एक संपूर्णता और निष्ठा से पंख लगाकर उड़ पाता है। उसमे भी सबसे उची उडान उसी की होती है, जिसमे हौसला, संकल्प और लक्ष भी साथ होता है।
यदि मन में लक्ष्य के प्रति अखंड संकल्प है, तो हर स्वप्न का अभिनंदनीय बनाया जा सकता है। डॉ महेंद्र सर का सारा जीवन इन्हीं सूत्रों पर था। वह हमें उत्साहित करने के लिए विस्तार से बताया करते थे कि कैसे एक मध्यवर्गीय परिवार से आते हुए जीवन संघर्ष को सफलतापूर्वक झेला और चरणबद्ध तरीके से एक के बाद एक सफलता प्राप्त की जो उनका स्वप्न था और इसके लिए एकाग्रता से किया गया उनका निष्ठापूर्वक श्रम, संकल्प, ईमानदारी और लोगों में विश्वास था ।

 

गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर ने भी स्वप्न को सेवा से जोड़ते हुए कहा कि
मैं सोया और पाया कि जीवन आनंद है।
मैं जागा तो देखा कि जीवन सेवा है ॥
मैंने सेवा की और पाया की सेवा ही तो आनंद है।II

यही तो महेंद्र सर की विलक्षणता थी जो उन्हें सबसे अलग बनाती थी । सेवा विज्ञान की, शिक्षा की, साथियों की, जरूरतमंदों की, परिवार की, संस्थानों की, समाओं की जिधर देखेंगे पाएंगे डॉक्टर महेंद्र सर की छाप है।
डॉ महेंद्र सर बड़े शांत स्वभाव के थे। गुस्सा पर उनका नियंत्रण गजब का था। मेरे कई कार्यकलापों एवं अपनाए गए प्रक्रियाओं, जिम्मेदारियों के निर्वहन के लेकर वे असमत हो जाते थे | पर मेरी त्रुटियों पर ध्यान ना देते हुए प्यार से समझाना और सिखाना अभूतपूर्व हुआ करता था। कहा करते थे कि जो काम करेगा वही तो गलती भी करेगा किंतु अपनी गलतियाँ से सीख लेना और उन्हें नहीं दोहराना ही तो बुद्धिमता है।
दुनिया में तीन तरह के लोग होते हैं
पहला जो कुछ कर दिखाते है |
दूसरा जो दूसरों को करते देखते हैं ॥
तीसरा जो सब कुछ हो जाने पर पूछते हैं क्या हुआ |||

 

उनकी बात आज भी मेरे कानों में गूंज रही है। सत्येन्द्र जी भूल जाए कि आप एक ग्रामीण परिवेश के कालेज के प्राध्यापक हैं, सुविधाओं का अभाव है, उत्तम शैक्षिक और शोध का कोई वातावरण नहीं है, अगर आप अपनी क्षमताओं पर विश्वास कर अगर लगे रहे, बड़े सपनो को साकार करने में। समय नहीं लगेगा, कठिनाइयों को आप अवसर में तब्दील कर सकते हैं।
हां, आज मैं जहां हूं, जैसा हूं उनके दिए गये दिग्दर्शन, आदर्शो और निर्देशों से ही। अभी तो उनकी कई योजनाएं थी जिसमें मैं सहयोगी था और शीघ्र मूर्तरूप देने की तैयारी चल रही थी। डॉ महेंद्र सर विलक्षण प्रतिभाओं को तुरंत पहचान लेते थे। वह जौहरी की तरह अपने साथ ऐसे लोगों को रखते थे जो जीव विज्ञान के विकास प्रचार और प्रसार के साथ ही जीव विज्ञान अनुसंधान को निरंतर नई दिशा और ऊंचाइयों तक पहुंचाने के लिए कटिबद्ध थे। मैक्सिम गार्की का एक बहुत चर्चित वाक्या है अगर आप अपने कार्यों को आनंद से करते हैं तो यह सच्चा सुख है और अगर आप अपने कार्यों को अपने कर्तव्य रूप में करते हैं तो यह दासता है। महेंद सर ने वही सब किया जो उन्होंने आनंद देता था। अभी तो उन्हें बहुत कुछ करना था, पर ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था |बड़े गौर से सुन रहा था जमाना, तुम ही सो गए दास्तां कहते कहते ॥

पता-डॉ सत्येन्द्र कुमार
उतरी शाही कॉलोनी (पोखरा मो.)
हाजीपुर, वैशाली
बिहार – 844101
मोबाइल नुम्बे 9123269907

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Shopping Cart
Scroll to Top