बेकरार रहता है ये दिल

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बेकरार रहता है ये दिल अक़्सर
कभी उसको देखने के लिए
तो कभी उसको सुनने के लिए
बिन उसके मन को कहीं पर
भी अब सुकूँ नहीं मिलता
जो साये की तरह साथ-साथ
चलता रहता है मेरे और
फिर मैं भी कभी उसका
दामन नहीं छोड़ता हूँ
अब दर्दे दिल की दवा भी वही
और मरहम भी वही
जो तन्हाई में भी मुझे तन्हा
नहीं होने देता है
कभी मुझको रुसवा नहीं करता
यादों में अपनी बातों में अपनी
उलझा कर रखता है मुझे
मैं अक़्सर उसकी चाहत की
दस्तरस में ही रहता हूँ
हर पल हर लम्हा उसी का ही
इंतज़ार रहता है दिल को
जिस के लिए मंचलता है मन
जिस के लिए तड़फता है दिल
जिस के लिए धड़कता है दिल
उसी के लिए अक़्सर
बेकरार रहता है ये दिल ।।

 

रसाल सिंह ‘राही’

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