राना कहता आपसे,उदित करो शुभ कर्म।
इसके पहले आपको,पड़े निभाना धर्म।
हर कामों के धर्म हैं,जिनको कहें उसूल।
राना होते है उदित,उसी तर्ज पर फूल।।
अंतराल से मित्र जब,आकर दे सम्मान।
आज उदित कैसे हुए,हँसता राना आन।।
अस्ताचल के बाद ही,सदा उदित हो भान।
राना यह संसार का,सबसे सुंदर गान।।
अब गुदड़ी के लाल भी,करते बहुत कमाल।
राना होकर वह उदित,जग में देते ताल।।
✍️ -राजीव नामदेव “राना लिधौरी”
संपादक “आकांक्षा” हिंदी पत्रिका
संपादक- ‘अनुश्रुति’ त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
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