पं.जमदग्निपुरी। गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित श्रीरामचरित मानस विश्व में सबसे अधिक पढ़ी जाने वाली पुस्तक है|इस पुस्तक को अनेकानेक लोग प्रतिदिन पढ़ते हैं|इसी पुस्तक को पढ़कर वैज्ञानिक डॉक्टर व्यास आदि मन माफिक धन अर्जित कर रहे हैं|इसी पुस्तक की कुछ चौपाइयों के अर्थ को अनर्थ बताकर कुछेक मूढ़ नेता गण अपनी दुकान भी चला रहे हैं|दुकान इसलिए चला पा रहे हैं, क्योंकि उन्हें सुनने वाले और सुनकर ताली बजाने वाले भी पढ़े लिखे मूढ़ ही होते हैं|जबकी ऐसी ज्ञानदायी पुस्तक न बनी है,न बन पा रही है और शायद भविष्य में भी न बनने की सम्भावना है|
इसी श्रीरामचरित मानस में कुछेक चरित्र ऐसे हैं,जो बहुत ही हे दृष्टि से देखे जाते हैं|देखे इसलिए जाते हैं कि जिस तरह से आज के नेता गण अपनी दुकान चलाने के लिए कुछ चौपाइयों का अर्थ गलत बताकर जन भावना को उद्वेलित करते हैं,वैसे ही कालांतर में उन चरित्रों के बारे में गलत बातें बताकर उनके बारे में प्रचारित कर हम सबके हिय में ठूँस ठूँस के भर दिया गया है|भरा इसलिए गया कि हमलोग पढ़ तो लिए,मगर उसपर मनन चिंतन नहीं किए|एक खास बात और है हम सबमें,हम सुन कर भरोसा करते हैं|मनन चिंतन की जहमत में पड़ते ही नहीं|हमें कोई आकर कह दे कि कौवा कान ले गया तो,हम कौवा को खदेड़ लेंगे,मगर कान तपासने की जहमत नहीं उठायेंगे|इसीलिए उन महान चरित्रों के बारे में हम सब में भ्रांतियाँ भर दी गई|
हे दृष्टि से देखने वाले चरित्र में सबसे पहला नाम भगवान श्री नारद जी का आता है|नारद जी के चरित्र को हम सबके मन एक चुगलखोर के रूप में स्थापित किया गया|जबकि नारद जी जैसा जन नायक और सर्व हितैषी आज तक कोई हुआ ही नहीं|नारद बिना डरे बेझिझक सत्य बोलते थे|उनकी कही बात कभी रद्द नहीं होती थी,इसीलिए नारद कहे जाते थे|वो किसी को किसी के द्वारा बिना कारण प्रताड़ित करता नहीं देख पाते थे|यदि कोई किसी के प्रति दुर्भावना लिए कुचक्र रचता था तो,नारद जी उसको सजग कर देते थे|नारद जी उस काल के एक मात्र विशुद्ध रूप से तब के पत्रकार थे|जो सत्य होता था वही कहते थे|आज के जैसा नहीं कि जिधर से धन मिले,उधर का बढ़ा चढ़ाकर प्रचारित व प्रसारित करो|वो हमेशा जो सही होता था,वही सूचना प्रसारित करते थे|
दूसरा चरित्र जो सबसे अधिक बदनाम और हे दृष्टि से देखा जाता है,वह है भरत की माता कैकेयी जी|जिनके बारे में कहा जाता है कि यदि कैकेयी न होती तो श्रीराम जी के साथ सीता जी व लखन जी वन वन नहीं भकटते|यहाँ तक कि आज भी लोग किसी भी कन्या का नाम कैकेयी नहीं रखते|जब भी कोई दुष्ट प्रवृत्ति वाली विमाता पुत्र के साथ उल्टे सीधे व्यवहार करती है तो उसे कैकेयी की उपमा से पुरस्कृत किया जाता है|अब आप सब कहेंगे या सोंचेंगे खराब कार्य के लिए भी पुरस्कृत किया जाता है,तो मैं कहूँगा हाँ|क्योंकि श्रीरामचरित मानस में जितना बलिदान जनहित व देशहित के लिए कैकेयी ने दिया है,उतना किसी ने नहीं दिया है|कैकेयी जनहित के लिए वैधव्य स्वीकार किया,अपने ही पुत्र की घृणा झेली,समग्र देशवासियों की घृणा झेली,अपने सबसे प्रिय श्रीराम जी को वन भेजा|जिसके लिए मानव जाति की सबसे घृणित महिला का चरित्र बन गईं|उनकी बुराई को खूब प्रचारित व प्रसारित किया गया|मगर उनकी जनहित व देशहित की भावना को रसातल में फेंक दिया गया|अब यहाँ सोंचने वाली बात यह है कि कैकेयी जिसे सबसे अधिक प्रेम देती थी|उसके लिए वनवास क्यों माँगा|माँगा भी तो केवल 14 वर्ष के लिए ही क्यों माँगा|आजीवन क्यों नहीं माँगा|वनवास माँगते समय तपस्वी वेश की शर्त क्यों रखी|यह सवाल जो हैं यही विचारणीय हैं|और यही दबा दिये गये|और गलत जो था वही प्रचारित व प्रसारित किया गया|अब यदि उसे भरत को राजा ही बनाना था तो 14 वर्ष के लिए ही क्यों?आजीवन क्यों नहीं|इस बात को जो समझ लेगा वो कभी भी कैकेयी को हे दृष्टि से नहीं देखेगा|बल्कि उनकी पूजा करेगा|कैकेयी जी ने श्रीराम जी को बड़ी सहजता से वन नहीं भेजा था|गोस्वामी जी ने इस बात को श्रीरामचरित में इंगित भी किया है|
* ऐसिउ पीर बिहसि तेहिं गोई। चोर नारि जिमि प्रगटि न रोई॥
* इसी चौपाई मैं कैकेयी की महानता छुपी है|गोस्वामी जी कहते हैं जिस समय कैकेयी ने श्रीराम जी के लिए वनवास माँगी थी,उस समय उसने उस पीड़ा को पीया था|जो पीड़ा चोरी का बच्चा पैदा करने में एक महिला बर्दास्त कर लेती है|और उसे फेंक देती है|क्योंकि कैकेयी के अलावां कोई नहीं जानता था कि श्रीराम के हाँथो ही रावण का वध होगा|मगर श्रीलंका व अयोध्या से समझौता होने के कारण अयोध्या का कोई राजा श्रीलंका पर सीधे हमला नहीं कर सकता|यदि श्रीराम राजा बन जायेंगे तो रावण वध नहीं होगा|यदि रावण वध नहीं होगा तो जनकल्याण नहीं हो पायेगा|इसलिए श्रीराम को वन जाना आवश्यक है|इसके लिए कैकेयी जी ने सबकुछ बलिदान करके रघुवंश की मर्यादा को और मजबूती दी|ऐसी वंदनीय को गलत तरीके से पेश कर उसे ऐसा बदनाम किया गया कि आज भी कुटिल महिला को कैकेयी जैसी महान महिला से उपमेयित किया जाता है|
* ऐसे ही विभीषण के बारे में प्रचारित व प्रसारित किया गया|सुग्रीव को भी ऐसे ही भ्रातृद्रोही कहके घृणा का पात्र बनाया गया|जबकि वो क्यों भाई से विलग हुए उसे नहीं बताया जाता|ए दोनो पात्र इतनी सहजता से नहीं श्रीराम से जा मिले|इन चरित्रों की गहनता से चिंतन करने पर तब इनकी सच्चाई मिलती है|सुग्रीव बालि को देखकर खुशी से सिंहासन खाली कर दिया था|फिर भी बालि उसके जान का दुश्मन बन गया|यदि बालि सुग्रीव को अंगीकार कर लिया होता तो सुग्रीव आज बदनाम न होता|वैसे ही विभीषण को यदि रावण ने देश निकाला न दिया होता तो, वह भी वहीं श्रीलंका में ही रहता|और रावण के साथ वह भी देश के लिए बलिदान होता|लेकिन हम लोग एक पक्षीय बात को सुनकर मान लेते हैं और निर्णय दे देते हैं|दूसरे पक्ष की सुनने और समझने की जहमत ही नहीं उठाते|इसीलिए श्रीराचरित मानस के पुनीत चरित्र घृणित हो गये|और हे दृष्टि से आज भी देखे जाते हैं|इन उपरोक्त चरित्रों की महानता को देखने और समझने के लिए गहन चिंतन मनन की आवश्यकता है|

पं.जमदग्निपुरी
सुन्दर