*मैं शिव हूँ*
मैं हूँ सनातन सर्व हित पीता हलाहल|
मैं अपमान सहता न करता कोलाहल||
मैं अपनों के हित जीता रहता हूँ मस्त मगन|
मैं पूर्ण हूँ परिपूर्ण हूँ न छलकता हूँ छलाछल||
मैं शिव हूँ सत्य हूँ सबसे सरल भी हूँ|
मैं भोला हूँ सबके हित पीता गरल भी हूँ||
मैं सबका हूँ साथी भूत भैरो बेतालन का|
मैं दीन हीन वंचित को रखता बगल भी हूँ||
मैं औघड़ दिगम्बर नागधारी भी हूँ|
मैं दीन दयाल प्रलयंकारी भी हूँ||
मैं ले के चलता हूँ संग शोषित वंचित|
मैं नंग धड़ंग सबका हितकारी भी हूँ||
मैं अनंग हूँ अनंत हूँ त्रिपुरारी भी हूँ|
मैं अविनाशी सबल चंद्रधारी भी हूँ||
मैं जपता हूँ राम नाम रहता मशाने में|
मैं संहार कर देता मुक्ति गंगाधारी भी हूँ||
मैं हर हूँ रुद्र हूँ बाघम्बरधारी भी हूँ|
मैं विश्वनाथ हूँ महाकाल त्रिशूलधारी भी हूँ||
मैं निर्लेप निराकार निर्विकारी शंकर|
मैं करता हूँ तांडव भोला भंडारी भी हूँ||
मैं सोमनाथ रामेश्वर करता रखवारी भी हूँ|
मैं श्रीराम का पुजारी डमरूधारी भी हूँ||
मैं करता हूँ सबका नित्य मनोरंजन|
मैं नटराज नर्तक प्रेम का पुजारी भी हूँ||
मैं हूँ रामेश्वर कैलाशवासी सर्व हितकारी भी हूँ|
मैं चराचर जगत का बाप महतारी भी हूँ||
मैं दानी भी हूँ दान देता हूँ दुखियों को खूब|
मैं घट घट का वासी महा कल्याणकारी भी हूँ||
मैं राम काज हित हनु रुद्रावतारी भी हूँ|
मैं खल में हूँ खलबली संत हितकारी भी हूँ||
मैं मलिन हूँ कुवेशी राख तन पर लगाये|
मैं मंगल करूँ सबका अमंगलहारी भी हूँ||
मैं रहता गुफा में अमरनाथ अर्धनारी भी हूँ|
मैं भैरो हूँ मरघट की करता रखवारी भी हूँ||
मैं सच्चिदानंद लोभ लालच से रहता परे|
मैं वीरभद्र हूँ अभयंकर त्रिनेत्रधारी भी हूँ||
मैं उमापति महेश अतुल तेजधारी भी हूँ|
मैं दुखियों का कष्ट हर महाकष्टहारी भी हूँ||
मैं उत्पत्ति करता विनाशक हूँ औघड़दानी|
मैं शिव हूँ इसीलिए जगत पालनहारी भी हूँ||
पं.जमदग्निपुरी
मैं महादेव देवाधिदेव दण्डाधिकारी भी हूँ|
मैं निर्गुण निराकार शून्य अविकारी भी हूँ||
मैं चराचर जगत का गुरु वैद्य अविनाशी|
मैं त्रिभुवनपति सर्वश्रेष्ठ पदाधिकारी भी हूँ||
मैं कोमल हूँ शीतल धवल कर्पूर तनधारी भी हूँ|
मैं कठोर पत्थर सा तलवार दोधारी भी हूँ||
मैं करता हूँ न्याय देता हूँ फल सबके कर्मों का|
मैं वैद्यनाथ सर्वश्रेष्ठ शल्य चिकित्साधिकारी भी हूँ||
मैं ब्रह्म हूँ वेद की ऋचा भी सर्वाधिकारी भी हूँ|
मैं हर हूँ महेश भी मैं क्षेत्राधिकारी भी हूँ||
मैं गिरिजापति भक्तवत्सल कृपालु हूँ सच्चिदानंद|
मैं मान मर्दन कर दक्ष का यज्ञ विध्वंसकारी भी हूँ||
मैं अखंड हूँ प्रचंड हूँ अनंग सद्विचारी भी हूँ|
मैं स्वतंत्र हूँ प्रसन्नचित्त अजय असुरारी भी हूँ||
मैं अभेद्य अद्भुत अलोकिक अजन्मा हूँ शम्भु|
मैं शिव हूँ इसीलिए सब पे भारी भी हूँ||
पं.जमदग्निपुरी