जय प्रकाश वर्मा ऊर्फ कलामजी की 2 कविताएं

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हे भारत के होनहार वीर – सपूतों

हे भारत के होनहार वीर – सपूतों ,
उठो फिर से दोबारा वीर – सपूतों ,
मातृभूमि पुकारा है आपको सदा ,
रणभूमि खाली है मेरे वीर- सपूतों ,
युद्ध की तैयारी करो वीर – सपूतों ,
हे भारत के होनहार वीर – सपूतों ।

रणभूमि में दुश्मनों ने ललकारा है ,
अपने मातृभूमि की रक्षा करना है ,
दुश्मनों की ईंट -से- ईंट बजाना है ,
दुश्मन आंख दिखाए आपको तो ,
दुश्मनों का आंख निकाल लो आप ,
हे भारत के होनहार वीर – सपूतों ।

मातृभूमि का वीर – सपूत हो आप ,
जरा अपनी प्रदर्शन दिखाओ आप ,
मातृभूमि को जो अंगुली दिखाए ,
शत्रुओं का अंगुली काट लो आप ,
मातृभूमि की आन बान व शान है ,
हे भारत के होनहार वीर – सपूतों ।

मातृभूमि हमें सिखाया है कर्तव्य ,
शत्रुओं को जवाब देना मेरा कर्तव्य ,
हमें मातृभूमि ने दिया है अधिकार ,
अधिकारों का करना जरा सदुपयोग ,
यही कर्म है हम वीर – सपूतों का ,
हे भारत के होनहार वीर – सपूतों ।

जग में मिली है सफलता तुझे

जग में मिली सफलता तुझे ,
कुछ अच्छा कर दिखाने में ,
इस संसार में आये हो तू तो ,
कुछ अच्छा करो शीघ्र करो ,
जग में मिली है सफलता तुझे ।

आये हो इस जग में जब तू ,
जन्म हुआ इस दुनिया में ,
श्रम करो परिश्रम करो तू ,
जग में अपना नाम लिखो ,
जग में मिली है सफलता तुझे ।

अन्न जल ग्रहण किया तू ,
इस जग में नाम किया तू ,
माता – पिता की सेवा किया ,
जग में आकर नाम किया तू ,
जग में मिली है सफलता तुझे ।

 

 श्री जय प्रकाश वर्मा ऊर्फ कलामजी

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