राजवीर नाम का एक युवा इतिहास का छात्र था, जिसे हमेशा से भारत की विविधता के बारे में जानने की गहरी रुचि थी। वह किताबों में पढ़ता था कि भारत दुनिया का सबसे विविधतापूर्ण देश है, जहाँ सैकड़ों भाषाएँ, धर्म, परंपराएँ और संस्कृतियाँ मिलकर एकता का प्रतीक बनती हैं। लेकिन उसके मन में एक सवाल था, “क्या इतनी विविधता के बीच भारत सच में एक है?”
एक दिन उसके प्रोफेसर ने सुझाव दिया, “राजवीर, इस सवाल का जवाब किताबों में नहीं, अनुभव में मिलेगा। तुम देश की यात्रा करो और खुद देखो कि यह अखंडता कैसे संभव है।” राजवीर ने तुरंत इस प्रस्ताव को स्वीकार किया और अपने बैग के साथ अपनी खोज यात्रा पर निकल पड़ा। राजवीर ने अपनी यात्रा कश्मीर से शुरू की। बर्फ से ढकी पहाड़ियाँ, शांत डल झील,
और वादियों में गूंजते कश्मीरी लोकगीतों ने उसका दिल जीत लिया। वहाँ उसने शमीम नाम के एक दुकानदार से बात की, जिसने कहा, “यहाँ के लोग चाहे किसी भी धर्म के हों, हम सभी एक-दूसरे की मदद के लिए तैयार रहते हैं।”
इसके बाद वह पंजाब पहुँचा। अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में उसने देखा कि कैसे हर धर्म और समुदाय के लोग लंगर में एक साथ बैठकर भोजन करते हैं। वहाँ का भांगड़ा नृत्य, लस्सी और खेतों की हरियाली ने उसे सिखाया कि मेहनत और उत्सव कैसे जीवन को सुंदर बनाते हैं। अगला पड़ाव राजस्थान था। वहाँ के किले, महल और रेगिस्तान की सादगी ने उसे भारत के गौरवशाली अतीत की झलक दिखाई। जोधपुर के एक लोक कलाकार ने उसे बताया, “हमारे गीत और नृत्य हमारी पहचान हैं, और यही विविधता भारत की आत्मा है।” इसके बाद वह पूर्वोत्तर भारत की ओर बढ़ा। वहाँ उसने असम के चाय बागानों, मेघालय के बादलों, और नागालैंड की जनजातीय परंपराओं को देखा। राजवीर को यह देखकर खुशी हुई कि वहाँ के लोग अपनी परंपराओं पर गर्व करते हैं और देश की मुख्यधारा के साथ जुड़े रहते हैं। राजवीर की यात्रा का अंतिम चरण दक्षिण भारत था। तमिलनाडु में मंदिरों की भव्यता और भरतनाट्यम ने उसे भारतीय संस्कृति की गहराई दिखाई। केरल में उसने बैकवाटर का आनंद लिया और देखा कि कैसे वहाँ के लोग प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर रहते हैं।
यात्रा के अंत में राजवीर समझ गया कि भारत की विविधता उसकी कमजोरी नहीं, बल्कि उसकी ताकत है। उसने महसूस किया कि अलग-अलग भाषाएँ, धर्म, और परंपराएँ होते हुए भी भारत एक धागे में बँधा हुआ है, जो सहिष्णुता और आपसी सम्मान से बना है।
जब वह वापस लौटा, तो अपने प्रोफेसर से उसने कहा, “सर, भारत वास्तव में एक इंद्रधनुष की तरह है। हर रंग अलग है, लेकिन सब मिलकर इसे खूबसूरत बनाते हैं।”
उसकी यात्रा ने उसे न केवल अपने सवाल का जवाब दिया, बल्कि उसे अपने देश पर गर्व करना भी सिखाया। भारत की विविधता में छिपी यह अखंडता हर भारतीय के लिए गर्व का विषय है।
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