मै हु अन्न का दाता

अपने दोस्तों के साथ अवश्य साझा करें।

1000267627.jpg

मै हु अन्न का दाता
पल पल पर मै आजमाया हु जाता

सदी,गर्मी,बारिश में भी
अडिग हो अपना कर्तव्य हु निभाता
भीष्ण हो गर्मी , या हो ठिठुरती ठंडी
सब जाते है हार जब जब मै अविरल सा
कर्तव्य पथ पर हु चलता

पसीने से मैं फसलों को सींचता
कर परिश्रम अन्न उगाता
दिन रात का भान ना होता
जब मै अन्न हु उगाता

मै हु अन्न का दाता
पल पल पर हु आजमाया मै जाता

कभी बिन मौसम वर्षा
कभी ओला वृष्टि आ जाती
कटी सूखी फसल को बर्बाद कर के है जाती
कभी तूफान आकर मेहनत को मेरी उड़ा ले जाते
कभी कोहरा छा कर फसल को बर्बाद कर जाता

मै हु अन्न का दाता
पल पल पर मै आजमाया हु जाता

चिंता में हर पल मेरा गुजरता
कब क्या हो जाए इस बात से हर पल है डरता
मुश्किल दौर से गुजर जब अन्न को हु पाता
मोल भाव के आगे फिर हार मै हु जाता
मंडी के गिरते भाव संग
सोचूं क्या यही है मेरी मेहनत का हर्जाना

मेरे कच्चे अन्न से ही चलता है
खाद्य कारखाना
मेरे ही खेतों से भरता पेट
सारे अमीर गरीब का

शहर का मै हु पालन हार
अमीरों का भी नहीं होता जीवन यापन
बिन अन्न के बिन फलों के

इतना है जब मोल अन्न का
तो अब तक ना मै ये बात हु समझा
मै आज भी निर्धन हु क्यू
क्यू दो पैसों के लिए हु दर दर भटकता

मेरा अन्न लेकर दुनिया अमीर कैसे हो जाती
कैसे भर जाते खजाने उनके
कैसे खजाने अन्न के दाता के खाली ही रहते

कैसे डुब रहा कर्ज में मै
अन्न का बनकर भी दाता
कैसे आज भी हु डूबा चिंता में
मै हु जब हु कहलाता अन्न का देवता

निरंजना डांगे
बैतूल मध्यप्रदेश

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Shopping Cart
Scroll to Top