पुस्तक दिवस
विश्व पुस्तक दिवस आया है।
पाठकों को मन को लुभाया है।।
रस छंद अलंकार।
जीवनी को हम सब पढ़ रहे हैं।।
साहित्य को मन ही मन।
गुन और मनन कर रहे हैं।।
आगे क्या होगा?
इस सोच रहे हैं ।।
संवेदनाओं को महसूस कर रहे हैं।
हम सभी को यह भाव वह विभोर कर रहे हैं।।
लेखनी से गद्य पद्य लिखी जा रही है।
समाज को यह आइना दिखा रही है।।
कुछ कही तो कुछ अनकही बातों को समाज के सामने लाई जा रही है।।
यह पुस्तक ही त्रिकालदर्शी बन रहे हैं।
वर्तमान में लिखी जा रही भूत और भविष्य को जोड़ रही है।।
डॉ राम शरण सेठ
छटहाॅं मिर्जापुर उत्तर प्रदेश