शीर्षक:- मैं छोटा था……!!
बरसों पहले मैं छोटा था!
भीतर में चंचलता ना मन खोटा था!!
बढ़ती उम्र से मुझमें बदलाव आया!
नंगा घूमता था वस्त्र धारण कर आया!!
बिन बुलाए प्रीत लगाई जाती थी!
वो ठहाका था यारों, जब एक हाथ से ताली बजती थी!
आलम ऐ वक्त वो भी देखा है हमनें यारों…..
जब बंदूकके धमाकों से बारात, ऊंटों पर चढ़ा करती थी!!
दायरा ऐ वक्त विस्तार करता गया,
और हम पीछे छूटते चले गए!
इंसान चांद पर पहुंच गया,
और हम इंसानियत को छोड़ते चले गए!!
किसी एक विद्वान ने मेरे काव्य पर, तंज कस दिया!
हमनें जब वास्तविकता से मिलान करवाया,
जनाब ने मुंह फूला लिया!!
अब क्या कहें मेरे हमदम मेरे शागिर्द,
आजकल कोई सच्चाई सुनना पसंद नहीं करता है!
चौराहे पर कल रामलाल नशेड़ी ने;
झूठ क्या बोल दिया!
करतल ध्वनि स्वागत करती दुनियां,
जयकारों से अंबर गूंजा दिया!!
कलियुगी असर है या फिर पागलपन का दौर!
शांति का दामन छोड़ कर, लारे दुनियां आगे शोर!!
कल बाजार में मिल गया मुझको, वो सेठ मोटा था!
बाहर उज्ज्वल कर्पूर रूप, पर अंतर्मन खोटा था!
विवश होकर सोचता हूं कई बार…….
बचपन बदन मैला था, पर मन के भाव ना खोटा था!!
बरसों पहले मैं छोटा था………!!
जय मां भगवती……!!
पवन सुरोलिया “उपासक”
बहोत बढिया हैं.
Bhot bdhiya tauji
अति उत्तम पक्तियां…!