कर्म – उत्थान पतन का मुख्य स्रोत……..

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कर्म – उत्थान पतन का मुख्य स्रोत…….!!

दिन को अपने प्रकाश पर अंहकार था! उसको यह भ्रमजाल हो गया था कि मैं प्रकाश हूं और मेरी वजह से पूरा विश्व प्रकाशमय है! उसको अपने प्रकाश पर यह अहंकार हो गया था कि मैं अगर प्रकाश ना करूं तो संसार अंधकार के गर्त में चला जायेगा! मेरे प्रकाश के कारण ही आज संसार के बीच चहल पहल है, संसार में गतिविधि है वर्ना थम जाता……!!

कुछ वक्त बीत जाने के बाद दिन के प्रकाश में शिथिलता आने के संकेत आरंभ हो गए, जो उसके अंहकार के पतन का सूचक था……!!

देखते देखते कुछ ही पलों में दिन का प्रकाश निशा की बांहों में ओझल हो गया और तिमिर ने प्रकाश पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया; अब चारों ओर दूर दूर तक काले अंधियारे का आलम पसरा पड़ा था…….!!

प्रिय दोस्तों, इस प्रसंग से यह शिक्षा मिलती है कि मनुष्यों को अनावश्यक अपना प्रभाव ना फैलाते हुए अपनी हद में रहना चाहिए; क्योंकि वक्त परिवर्तनशील है……!!

समय समय पर धरती ऊपर अनेक शासक हुए, जिनके सबके अपने अलग अलग मिजाज थे! कोई भौतिकवाद के रस डूब गए तो कोई आध्यात्मिकता के सुखसागर में आनंद लेते हुए वैतरणी पार कर गए……!!

मुझे यह अच्छे से समझ लेना चाहिए कि मेरे द्वारा बोए गए बीज भविष्य में मेरे सामने पौधे के रूप में सामने प्रगट होगा! अब यह निर्भर मुझ पर है कि मैं किस नस्ल के बीजों का रोपण कर रहा हूं; क्योंकि बीजों की नस्ल आगामी पौधों की नस्ल तय करती है! यदि मेरे हाथों द्वारा बबूल के बीजों का रोपण हो गया है अर्थात कर दिया है, तत्पश्चात यदि मैं आम की आश संजोए बैठा रहूं तो मैं समझता हूं कि संसार में मेरे जैसा बड़ा अन्य कोई मूर्ख शायद ही मिले…….!!

इंसान का जीवन बहुत छोटा सा होता है जिसमें से आधा तो नींद में गुजर जाता है! आधा जो शेष बचा उसमें से आधा सुबह से शाम तक रोजमर्रा के कार्य में गुजर जाता है और शेष थोड़ा सा जो बचा है उसको हम अज्ञानतावश उजूल फिजूल कर्मों में नष्ट कर देते है; क्या मनुष्य जन्म इसलिए हुआ था हम सभी का….?

यदि मुझमें वो क्षमता नहीं है, मेरे पास वो योग्यता नहीं है कि मैं किसी का भविष्य उज्जवलता दिव्यता से ओत प्रोत कर दूं; तब मुझे वो अधिकार भी तो नहीं है कि मैं किसी को अंधकार में धकेल दूं! अगर में किसी को अंधकार की गर्त में धकेल रहा हूं तो शायद मैं बहुत बड़ा पाप कर रहा हूं और मुझे यह भी ज्ञान होना चाहिए कि पाप विनाश का प्रतिक है……!!

क्योंकि समय परिवर्तनशील होता है स्थाई नहीं, सतत धुरी घूमती रहती है! अत: मुझे यह अच्छे से याद रखना चाहिए कि मैं जो भी कर्म कर रहा हूं या कर्मों को अंजाम दे रहा हूं; वो कर्म कल मेरे लिए उत्थान और पतन का काम करेंगे…….!!

जय मां भगवती…….!!
✍️….. पवन सुरोलिया “उपासक”
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