अपना नव वर्ष मनाएंगे
हवा चली पश्चिम की सारे कुप्पा बन कर फूल गये
सन ईस्वी तो याद रहा अपना संबत भूल गये
चारों तरफ नये साल का ऐसा मचा है हो-हल्ला
बेगानी शादी में नाचे जैसे दिलदीवाना अब्दुल्ला
धरती ठिठुर रही सर्दी से घना कुहासा छाया है
कैसा यह नववर्ष है जिससे सूरज भी शरमाया है
सूनी है बृक्षों की डॉली, फूल नहीं हैं उपवन में
पर्वत ढके बर्फ से सारे, रंग कहाँ है जीवन में
बाट जोह रही सारी प्रकृति आतुरता से फागुन का
जैसे रस्ता देख रही हो सजनी अपने साजन का
अभी ना उल्लासित हो इतने आई अभी बहार नहीं
हम नववर्ष मनायेंगे, न्यू ईयर हमें स्वीकार नहीं
लिए बहारें आँचल में जब चैत्र प्रतिपदा आयेगी
फूलों का श्रृंगार कर के धरती दुल्हन बन जायेगी
मौसम बड़ा सुहाना होगा दिल सबके खिल जायेंगे
झूमेंगी फसलें खेतों में, हम गीत खुशी के गायेंगे
पहले ऋतुराज आएंगे
वसंत पंचमी तो आने दो
माँ शारदे की पूजा होगी
फिर अवीर गुलाल उड़ाएंगे
देवी के कुछ गीत गाएंगे
अमृत रस बरसायेंगे
होली के कुछ गीत गाएंगे
बाबा हरिहर नाथ को रिझाएंगे
उठो खुद को पहचानो यूँ कब तक सोते रहोगे तुम
चिन्ह गुलामी के कन्धों पर कब तक ढोते रहोगे तुम
अपनी समृद्ध परम्पराओं का मिल कर मान बढ़ायेंगे
भारतवर्ष के वासी अब अपना नववर्ष मनायेंगे
( रवि कुमार बख्तियारपुर)