है बस चल पड़ते सभी, मंज़िल की सभी को तलाश है….

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हैं चारों तरफ घिरे पानी से, सबको पानी की तलाश है,
है ज़िन्दगी, फिर भी ज़िन्दगी में ज़िन्दगी की तलाश है!

अथाह सागर सी गहराई देखी, जीवन में मैनें भी यारों,
है उस पार जाना मुझे, है लगे ये भी कोई जिंदगानी है!

 

हर तरफ़ है भीड़, न जानें ये सफ़र कहां से कहां तक,
है बस चल पड़ते सभी,मंज़िल की सभी को तलाश है!

कहने को होते अपने हैं, है होता कोई नहीं किसी का,
भागम भाग ज़िंदगी, और उसमें तलाश अपनों की है!

 

हूँ निकल पड़ा तलाश में मैं भी, कोई तो होगा अपना,
हैं सब मेरे पास,नज़रों को न जानें किसकी तलाश है!
नज़रों को न जानें किसकी तलाश है…..

नज़रों को न जानें किसकी तलाश है……

 

डॉ.सूर्य प्रताप राव रेपल्ली

– डॉ.सूर्य प्रताप राव रेपल्ली 

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