” सम्राट अशोक जन्मोत्सव पर विशेष”
नमो बुद्धाय साथियों ,
इतिहास की विभिन्न धाराओं को समेटे हर एक पंक्ति आपसे बहुत कुछ कहना चाहती है ।
अतीत की झलक प्रस्तुत करती ये मेरी कविता अग्रिम आभार सहित आप सब के बीच प्रस्तुत है
“जो बीत गई वो अमिट इतिहास हुई ”
जो बीत गई वो अमिट इतिहास हुई।
धरा का राष्टश्रंगार बना था,
शाक्यों का स्वर्णिम दरबार सजा था ,
वह विखर गया तो विखर गया,
शाक्यों का वैभव विराट को देखो,
कितने इसके अपने छूटे,
कितने इसके सपने टुटे,
जो छूट गए फ़िर कहां मिले,
पर बोले छूटे अपनो पर ,
कब तथागत शोक मनाते हैं,
जो बीत गई वो अमिट इतिहास हुई।
कपिलवस्तु को त्याग दिया था,
दुःख से भी संन्यास लिया था,
कंठक की टापों की गुंज ,
रात के सन्नाटों में छेड़े सरगम,
सारथी चन्ना भी मोन खड़ा था,
अनोमा की तट ने इतिहास गढ़ा था,
भिक्षु संघ की तेज को देखो,
बुद्ध की धम्म देशना ने अंगुलिमाल को भी भेद दिया था,
पर बोलो धम्म की राह में,
कब अंगुलिमाल शोर मचाता है ।
जो बीत गई वो अमिट इतिहास हुई
रजत ज्योत्स्ना छिटकी थी नभ में,
राजमहल सोया था मदिरा के रस में,
रणभेरी की गर्जना संग,
उठी महायुद्ध की ज्वाला,
मगध भूमि पर चमका चन्द्रगुप्त का भाला,
धनानंद की सेना डोली,
गया चन्द्रगुप्त के तेज से हार ,
खंड खंड टुकड़े को जोड़ा,
सजा भारत का अखंड दरबार,
कलिंग तब भी स्वतंत्र खड़ा था ,
पर बोलो कलिंग की स्वतंत्रता पर,
कब सम्राट पछताते हैं।
जो बीत गई वो अमिट इतिहास हुई।
ए शक्ति है,
शक्ति का कभी नाश नहीं हुआ करते ,
नकल हमेशा सच का होता है,
ढाई सौ का नकली नोट बाजार चला नहीं करते,
फिर भी इतिहास निरंतर चलता है,
आग है आग का क्या डरना,
जै बीत गई वो अमिट इतिहास हुई।
-chain maurya