🖋️ तख्ती से टैबलेट तक
तख्ती से टैबलेट तक की ये कहानी,
कभी हँसी, कभी अश्रु की निशानी।
कक्षा की धूल से स्मार्ट स्क्रीन तक,
शिक्षक की बदलती पहचान की रवानी।
कभी चौक से उड़ता था ज्ञान,
अब क्लिक पे खुलते हैं ज्ञान-विधान।
पर बच्चों की आँखों से दूर हुआ मन,
संस्कार कहाँ हैं — ये उठता है प्रश्न।
सरकारी स्कूलों से मोहभंग सा क्यों?
शायद दिखावे में छिप गया ‘गुरु’ का योग।
सम्मान की बातें अब पुस्तकों में हैं,
मंचों पे भाषण, पर मन उदास से हैं।
वो अभिभावक जो गुरु को भगवान कहते थे,
आज शिकायतों में दिन-रात बहस करते हैं।
पर हम रुके नहीं, टूटे नहीं,
हर बदलते दौर में झुके नहीं।
ब्लैकबोर्ड से स्मार्टबोर्ड तक की चाल,
हमने अपनाई नई सोच, नया भूगोल, नया काल।
हमें बदलना होगा खुद को,
रोकना नहीं इस संघर्ष को।
सम्मान न मिले तो भी समर्पण न हो कम,
क्योंकि ज्ञान बाँटना है हमारा धर्म।
मुनीश चौधरी
प्रधानाध्यापक प्राथमिक विद्यालय लौदाना ,जेवर,गौतमबुद्धनगर,उ.प्र।
**”हम शिक्षक हैं – युगों से दीप जलाते आये हैं,**