‘मौन संवाद’ काव्य संग्रह के रचनाकारों को ‘निराला सारस्वत सम्मान’ से नवाज़ा गया

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इंकलाब पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित साझा काव्य संग्रह “मौन संवाद” के संपादक एवं सभी रचनाकारों को प्रतिष्ठित “निराला सारस्वत सम्मान” से सम्मानित किया गया। यह सम्मान समारोह हिंदी साहित्य की समृद्ध परंपरा में एक गौरवपूर्ण अवसर के रूप में दर्ज हुआ। इस अवसर पर “मौन संवाद” के सभी रचनाकार — निरंजना डांगे (संपादक), देवेन्द्र थापक, मीनू अग्रवाल, दीपिका सराठे, डॉ. नीरज पखरोलवी, सोनिया दत्त पखरोलवी, महादेव मुंडा, रसाल सिंह ‘राही’, ज्योति कुमावत, अविनाश ब्यौहार, रश्मिता देवेंद्र पोटफोडे, सुनील रंजन सिंह, रेणुका आर्या, प्रीतम कुमार पाठक, मृणालिनी, अनिल कुमार घिल्डियाल, अमरनाथ त्रिवेदी, प्रदीप कुमार प्रेम, डॉ. पवन कुमार बालानिया, विजय शिंदे ‘मनपसंद’, भगत सिंह किन्नर, अब्दुल करीम कुरैशी (मुर्शिद) और पुष्पा कुमारी को सम्मानित किया गया। यह सम्मान उन साहित्यकारों को समर्पित है जिन्होंने अपनी लेखनी के माध्यम से समाज, संवेदना और मानवीय रिश्तों के गूढ़ पहलुओं को शब्दों में ढालकर साहित्य जगत को समृद्ध किया है।

 

“मौन संवाद” काव्य संग्रह का उद्देश्य आज के कोलाहल भरे समय में मौन के भीतर छिपे संवादों को उजागर करना रहा है, और इसमें संकलित कविताएँ न केवल भावनाओं की गहराई को छूती हैं बल्कि मनुष्य के अंतर्मन में चल रहे अदृश्य संघर्षों और आत्मिक अनुभूतियों को भी अभिव्यक्त करती हैं। इंकलाब पब्लिकेशन के संस्थापक सागर यादव ने कहा कि “मौन संवाद” केवल एक काव्य संग्रह नहीं, बल्कि संवेदनशील मनों के बीच एक रचनात्मक सेतु है और ‘निराला सारस्वत सम्मान’ उन लेखकों के प्रति सम्मान है जो शब्दों के माध्यम से मानवता की ज्योति जलाए रखते हैं। इस सम्मान का नाम हिंदी साहित्य के अमर कवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की स्मृति में रखा गया है, जो स्वतंत्र चिंतन, मौलिकता और मानवता के प्रतीक रहे। सम्मान प्राप्त रचनाकारों ने अपने वक्तव्यों में कहा कि यह सम्मान उनके लिए प्रेरणा का स्रोत है और यह उन्हें आगे और अधिक जिम्मेदारी एवं निष्ठा से लेखन करने का उत्साह देता है। कार्यक्रम के समापन पर इंकलाब पब्लिकेशन की ओर से आगामी साझा संकलनों, साहित्यिक प्रतियोगिताओं और राष्ट्रीय स्तर के “इंकलाब साहित्य उत्सव” की घोषणा भी की गई। “मौन संवाद” और इससे जुड़े रचनाकारों की यह उपलब्धि इस बात का प्रमाण है कि साहित्य आज भी समाज की आत्मा की सबसे सशक्त और संवेदनशील आवाज़ है।

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