प्रज्ञा तिवारी की कहानी – प्रायश्चित

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आज भावनाओं में दर्द और दर्द में कड़वाहट भर उठा था।स्वर मौन औऱ ह्रदय में चीत्कार,जेहन में जहर भर गया था।ओह! शायद मैंने उसका जहर चख लिया था। आज आँखे चाँद नही देख रही थी,चाँदनी रात जैसे छल रही थी।जो कभी भावनाओं को गुलाबी करती थी। इस शरद रात में बिस्तर पहाड़ी ढलानों पर बिछा हुआ लग रहा था। जिसके कंकण-पत्थर सिर्फ चुभ रहे थे। साँसे टँगी जा रही थी आँखे तो एक नई नदी का निर्माण करने पर उतारू हो गई थी।शायद पूरे जीवनकाल तक एक महासागर तैयार ही हो जाएगा।पग जमीन पर पड़ रहे थे या हवा में आँखे जमीन ही नही खोज पा रही थी।लड़खड़ाते हुए पग संभालने के लिए अपनी हिम्मत ने भी साथ छोड़ दिया था।नाइट बल्फ का प्रकाश सिरदर्द को बढ़ा रहा था दिमाग झल्ला गया था।

प्रज्ञा तिवारी

ओह !कितना शोर था हृदय में।आज लग रहा था कि समुद्री तूफान नही थम पायेगा।किस देव को याद करूँ ब्राह्म, विष्णु महेश कौन से देव मन की शांति दे सकते हैं।या बैठ जाऊँ माँ काली के चरणों में पूछूं मेरा अपराध क्या था।क्या जो हुआ हम अपराधी ही थे।तब तो उसका भी अपराध क्षम्य नही था। उसको भी तो कष्ट झेलना ही पड़ेगा।आज नही तो कल कर्मो का फल मिलना तय है।प्रकृति किसी को छोड़ती नही है।प्रत्येक को उसके कर्मों का दंड मिलता ही है।उस राक्षस को तो एहसास ही नही कि उसने क्या किया है।पर मुझे तो पता है मुझसे कैसी गलती हुई है।मैं जिसका शोर मौन बनकर अकेले ही सुन रही थी।मेरे अंतर की रक्त धमनियों में ज्वालायें दहक रही थी ।उस दर्द से मेरा अंतर्मन जूझ रहा था पर क्या कोई वाह्य रूप से मुखमुद्रा पर छाया विषाद पढ़ सकता था।शायद नही….ये व्यक्ति के कर्मफल हैं जिन्हें वह अकेला ही झेलता है।ऐसे कई कर्म के फल होते हैं जिन्हें वह दूसरों में नही बांट सकता अकेला ही झेलता है।मुख पर छाई मलिनता रोग शोक का ही कारण नही होती कुछ ऐसे भी दर्द चेहरे पर छुपे होते हैं जिसे वही जान सकता है जो उस दिशा-दशा की आपबीती में गुजरा हो।
चेतन से मिलने का एक-एक पल उसे चुभ रहा था।आज न जाने क्या हो गया होता।यह सोचकर वह कांप उठती थी।मैंने उसके साथ इतना अच्छा किया वह बुरा कैसे हो सकता है।पीहू चेतन के मिलने से लेकर अब तक कि बात सोचने लगी।जब वह चेतन से पहली बार परिचित हुई थी।जब पहली बार सामाजिक मुद्दों पर विचार विमर्श हुए थे।चेतन ने सुनाया था अपना विचार औऱ उसका कहना था कि सामाजिक सुधार पर अपना जीवन समर्पित कर देगा। उसी दिन पीहू के मन में उस शख़्स के लिए सम्मान जगा था।दूसरे दिन पीहू ने अपने एनजीओ के कर्मचारी के रूप में उसे काम पर रख लिया था।पीहू के मन को उसके विचार छू गए थे।थोड़े ही दिनों में वह उससे अत्यंत घुल-मिल गई थी।इतना सम्मान मन में जग गया कि वह उससे अपने हर विचार साझा करने लगी।वह सोच रही थी कि चेतन का हृदय कितना अथाह है वह समाज को कितना बढियाँ समझकर समझाता है।न जाने कितना अनुभवी है।यह सम्मान तो पीहू के हृदय में बढ़ता ही चला जा रहा था।
कुछ दिन बीत गए नजदीकियाँ भी बढ़ने लगी।वह किसी भी विषय पर चर्चा करके मन मोह लेता था।अब बातों का सिलसिला बढ़ता ही गया।काफी कुछ अच्छी बातें होने लगी जिससे मन में नए तरीके से विचार उठने लगा।जीवन में जैसे सब कुछ नया-नया हो गया था।समय बहुत अच्छे से बीतने लगा था।पीहू चेतन से काफी कुछ सीख रही थी।उसके कार्य- व्यवहार से वह पूरी तरह प्रभावित थी।समाज परम्परा रूढ़िवादिता पर नए – नए विचार जागृत होने लगे थे।सामाजिक कार्यों में चेतन से काफी मदद मिलने लगा था।बहुत अच्छी तरह से वो बातों को रखता था तो लगता था जैसे वह दिल के एक कोने में जगह ले लिया हो।अब बात व्यवसाय तक ही नही रह गई थी,घर परिवार तक आ गई थी।चेतन ने अपने विषय में जो बताया वह असहनीय था।जिसको सुनकर हृदय और भी जुड़ गया।पीहू उसे समझाती तुम बहुत ही अच्छे व्यक्ति हो अपना जीवन पुनः शुरू करो।कुरीतियों और अंधपरम्पराओं को तोड़ना ही समाज का सबसे बड़ा विकास है।तुम ऐसे ही अच्छे कार्य करते रहो समाज को कुछ नया देते रहो।तुम्हारे सारे दर्द खत्म हो जायेंगे।
चेतन दिल के बहुत अच्छे थे पर पीहू को नही पता चल रहा था कि वह उसकी भावनाओं में कैसे खिंच रही थी। अब तो रोज ही घण्टो-घण्टों बातें होती रहती थी ।किसी दिन जब वह कार्यालय न आता तो लगता कि कहीं वह बीमार तो नही हो गया । कब एक दूसरे की इतनी परवाह करने लगे पता ही न चला।एक दिन अचानक पीहू को होश आया कि-इतनी नजदीकियाँ किसी पुरुष के साथ ठीक नही। जीवन के प्रति मेरे संकल्प जो हैं मैं उसे पूरा करने के लिए आगे बढूँ।कभी कोई प्रेमी-प्रेमिकाओं वाला ऐसा रिश्ता तो नही बना पर मन आकर्षित हो गया था।आज कार्यालय में आने के बाद पीहू ने चेतन से कोई बात न की पर चेतन बार-बार पीहू को परेशान करता रहा और पीहू उस पर कोई ध्यान न दे रही रही थी।शाम चार बजे पीहू कार्यालय में बिल्कुल अकेली थी।घर जाने की तैयारी कर रही थी।चेतन आकर पीहू के पास में बैठ गया।पर पीहू कोई बात न की।
चेतन पीहू से कहने लगा आप बात क्यों नही कर रही हैं।
पीहू ने कहा देखो चेतन हम एनजीओ चलाते हैं।यहाँ सब कर्मचारी बराबर हैं।इसलिए आप भी सबके समान ही हो और मेरा व्यवहार भी समान ही रहेगा।आपने अपनी आप बीती सुनाई तो हमें बहुत कष्ट हुआ था।पर अब आप अपने जीवन में आगे बढ़ रहे हो,मुझे संतुष्टि मिल गई है।ये आपका व्यक्तिगत मामला है।इसलिए बेहतर है कि तुम अपने काम पर ध्यान लगाओ।अपनी बातों को भी व्यक्तिगत रखो।इतना कहकर पीहू एनजीओ कार्यालय से बाहर निकल गई।

शाम छः बजे थे। बाहर धुंधला अंधेरा था सर्द हवाएं शरीर में कंपकपी ला रही थी।पर बहुत ही अच्छी लग रही थी पीहू एक कप कॉफी के साथ कमरे से निकल बाहर वाले कमरे में आ गई और सोचने लगी किसी भी पुरुष से इतनी नजदीकियाँ नही होनी चाहिए पति नही है तो क्या हुआ एक स्त्री अपने मान-मर्यादा के साथ अकेली भी रह सकती है।मेरी बेटी टिया भी तो है उसका भी ख्याल रखना है।किसी पर पुरुष पर मैं क्यूँ विश्वास करूँ।बिन सोचे-समझे किसी की अच्छाइयों पर मर-मिटना जीवन के लिए घातक हो सकता है।फिर मैंने उसके बेरोजगार नीरस जीवन को एक जीवन दिया है।उसे रोजगार दिया उसे उसके जीवन में उसे आगे बढ़ना सिखाया है।मैं उससे प्रभावित थी पर प्रेम कभी नही था।वह मेरे कार्य व्यवहार का कोई गलत मतलब न निकाले इसलिए दूरी रखना ही उचित है।अब तक चल रहा विचारों का तूफान थम चुका था।और कॉफी भी ठंडी हो चुकी थी।पीहू उठना नही चाहती थी वहाँ से।तभी पास के मंदिर की घण्टियों के साथ आरती का मधुर-मधुर स्वर सुनाई दिया बस आंखे बंद करके वह ईश्वर के ध्यान में मग्न हो गई। मोबाइल का रिंग कई बार बजाने पर जब लाडली बेटी टिया की आवाज आई मम्मी आज मामा के साथ नही आ पाएंगे।शाम ज्यादा हो गई है।ठंड बढ़ गई है।कल सुबह आते हैं। और फोन कट गया।पीहू आँखे बंद करके फिर से वहीं बैठी रही और अपने पति को याद करने लगी किस तरह एक्सीडेंट में वह हादसा हुआ था जिसको गुजरे सालों-साल बीत गए थे,पर वह हादसा आज भी दर्द को ताजा कर दे रहा था।वह दृश्य आँखों में आकर दर्द को कुरेद देता था। भरी हुई आँखे कपोलों पर झलकती हुई अँधेरों के सन्नाटों को तोड़ती जैसे मन की विह्वलता रात्रि में अपना सहचर खोजती और न मिलने पर रात्रि बोझल हो जाती।इस अकेलेपन नीरस जीवन में रंग भरने वाली मेरी बेटी ही थी।एक ही क्षण में न जाने कितनी कल्पनाएं उठती,नए प्रतिमान बनाती,वर्तमानगत स्थितियों में समाहित हो समय परिवर्तन कर देती।नदी के रेत जितने ठंडे होते हैं उतने ही गर्म भी होते हैं पर दोनों स्थितियों में रेत सूखे ही रहते हैं इसलिए दुःख सुख के चक्र में उलझे व्यक्ति का संघर्ष कभी भी कम नही होता जीवन जीने के लिए सदैव नया मार्ग बनाता रहता है।
अचानक दूर आते हुए कदमो की आहट सुनाई दी पीहू डर गई मेरे घर इस समय कौन आयेगा।आज न गेट पर चपरासी था और न पीहू का भाई और न बेटी।
साँझ की अँधियारी बढ़ती चली जा रही थी।चाँद तारों के प्रकाश से अंधेरे नही छँट पा रहे थे।दीवारों पर लगी हुई घड़ी टिक-टिक करती आभाष करा रही थी कि आज रात्रि लंबी होने वाली है।मानो हिलते हुए पर्दे भी मुझसे कह रहे थे कि आज मैं अंदर का दृश्य ढकने में समर्थ नही हूँ। मेरी मौजूदगी थी फिर घर में इतना सूनापन सन्नाटा क्यूँ था?खोया हुआ किसी का पीड़ित मन उसके कहीं भी होने न होने का एहसास नही कराता है।तभी जूतों की खट-खट की आवाज पीहू की तरफ बढ़ती चली आ रही थी।पीहू ने खुद को मजबूत किया और एक कड़क आवाज में…कुछ दूर से ही कौन हो तुम और क्यूँ आ रहे हो यहाँ।
मैं ही हूँ पीहू और कौन आएगा…चेतन की आवाज आज पीहू को अच्छी नही लग रही थी।उसका मन घबराहट से अस्थिर हो गया था।
पीहू ने बड़ी दृढ़ता के साथ कहा तुम इस समय… यहाँ क्यूँ आये हो।
चेतन कहता है मैं आज बहुत अपसेट हो गया हूं तुमने एक बार भी बात न किया।इसलिए मैं घर चला आया।
पीहू…. पर मैं किसी से घर पर नही मिलती हूँ।
चेतन-अरे तुम तो घबड़ा ऐसे रही हो जैसे घर में तुम अकेली ही हो और मुझसे डर रही हो।
पीहू नही नही.. मैं डर नही रही हूँ आपसे कल बात करती हूँ।आप जाइये यहाँ से।
चेतन..पर मैं जाने के लिए नही आया हूँ।अपनी बात कहने के लिए आया हूँ।और वह बात यह है कि मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ।और…
पीहू बात को काटते हुए बोली और क्या- क्या कहोगे पर मेरे मन में ऐसा कोई भाव नही है और बेहतर है कि आप फालतू की बात न करें।आप जा सकते हैं।
यह बर्ताव चेतन को अच्छा न लगा उसने गुस्से से कहा कि तुम जैसी औरतें ही आदमी को शराबी बनाती हैं।
पीहू को गुस्सा आ गया मुझ जैसी औरते भी मूर्खों के समझ में नही आती,तभी बगैर सोचे समझे पुरुष शराबी बन जाते हैं।
चेतन को गुस्सा आ गया उसने पीहू को एक थप्पड़ जड़ दिया।और उसके हाथ को पकड़कर बोला तुझे इतना गुरुर कब से हो गया।तू मेरी भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर रही है।पीहू चिल्लाकर बोली… तुम यहाँ से चले जाओ ये तुम्हारे लिए बेहतर होगा नही तो…
नही तो क्या?
अब चेतन समझ गया था कि घर में कोई नही है।और उसने बड़ी ही विनम्रता के साथ क्षमा मांगी।और कहने लगा पीहू तुम बदल क्यूँ गई हो।मैं सचमुच तुमसे प्रेम करता हूँ।
पीहू मैं सच कह रही हूँ मैंने आपको कभी भी उस नजर से नही देखा जिस नजर से आप हमें देख रहे हो।
चेतन का गुस्सा अब सातवें आसमान पर था।वह घसीटते हुए पीहू को घर के अंदर ले गया और बोला कि तुम्हारे साथ वही करना है जो करने के बाद स्त्रियों का गुरुर खत्म हो जाता है।पीहू डर गई और दोनों हाथ जोड़कर कहने लगी जो प्रेम करते हैं उनका हृदय इतना कठोर नही होता,फिर तुम पर यदि हवस सवार है तो तुम प्रेम नही करते हो।बस किसी तरह हमें हासिल करना चाहते हो।प्रेम व्यक्ति का हृदय भावुक ही नही बनाता बल्कि त्याग, दया,समर्पण,सम्मान की समझ में भी वृद्धि करता है।और यहाँ तुम्हारे दिल-दिमाग में सोचने की क्षमता पहले ही नष्ट हो गई है।पर चेतन पर कोई असर न हुआ वह जोर जबर्दस्ती पर तुला हुआ भयानक होता चला जा रहा था।कुछ मिनट बहुत प्रयास के बाद पीहू अपना हाथ छुड़ाते हुए बाहर की तरफ भागी और जोर-जोर से चिल्लाकर पड़ोसियों को आवाज देने लगी।आवाज सुनकर कुछ लोग एकत्रित हो गए।घर के अंदर घुसकर देखने लगे।पर कोई न दिखा।लोग पूछने लगे कौन था वह आदमी।
पीहू ने जोर से चिल्लाया वो मेरे ही एनजीओ कार्यालय का चेतन कुमार था।तब तक चेतन वहाँ से भाग चुका था।पड़ोसियों ने पीहू के पुराने घर पर कॉल से सूचित कर दिया।
आँखों के सामने अंधेरा और भी घना हो गया।कुछ ही देर में मेरे एनजीओ से भी बहुत सारे लोग आ गए और मुझे समझाने लगे कि मैंम साहब रोइये मत कोई नही जानता है कि इंसान की नीयत कब बदल जाये।चेतन इतना गन्दा इंसान होगा किसी को न पता था।
पीहू चिल्लाई… नही वह इंसान था ही नही वह तो जानवर है।
पीहू मानसिक रूप से अशांत हो चुकी थी।।पीहू की आँखों में उसके लिये सिर्फ नफरत ही बची थी।अब पीहू यह बात समझ चुकी थी कि कोई भी व्यक्ति हो बिन सोचे समझे किसी के इतने करीब नही जाना चाहिए। उससे इतनी सहायता व इतनी बातें नही करनी चाहिए।किसी पर भरोसा तभी करना चाहिए जब वह बिना किसी स्वार्थ के किसी के प्रति ईमानदार हो।पीहू मन ही मन पश्चाताप कर रही थी। डर से रोंगटे भी खड़े थे।कुछ ही देर में भाई और टिया दोनों आ गए और टिया पीहू से गले लगकर बोली माँ तू रो मत।तू बहुत ही मजबूत है ऐसे ही लोगो के लिए तो तू काम कर रही है।हाँ बेटा “मित्र और माहौल”दोनों का चुनाव सोच समझकर करना चाहिए।टिया अपने कमरे में चली गई।
सोचते सोचते रात्रि के दो बज चुके थे अब पीहू की आँखे धीरे-धीरे बन्द हो रही थी।अगला दिन बिल्कुल नया था सूरज की किरणों के साथ कुछ नया करने के लिए उम्मीदों की किरणें जग चुकी थी।

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