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पहलगाम : भर लो लहू में उबाल आज स्वराष्ट्र है पुकार रहा

हिन्द के नौजवानों आज हिंद है पुकार रहा भर लो लहू में उबाल आज स्वराष्ट्र है पुकार रहा खामोशी ये तोड़ सिंघ नाद बन गरजिए देश के शत्रुओं को शक्ति प्रबल ,अपनी दिखाइए खोए नन्हे पुष्प हमने नौजवान भी खोए कई बहनों की मांग चीखी नन्हें मुख से चीखे गूंजी चीखों को उन मासूमों की […]

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कविता

कविता – इंसानियत का अंत

धरा हिली, गगन रोया, लहू से भीगा पथ, पहलगाँव की वादियों में फैला आतंक रथ। भोले-भाले तीर्थ यात्री, श्रद्धा जिनकी शान, धर्म पूछ कर मार दिए, कैसा यह अपमान? काश्मीर की पावन धरती, फिर से पूछे सवाल, क्या ऐसे होंगे सपूत, जो बनें काल का भाल? काँप उठे ये दुश्मन सारे, जिनका धर्म है पाप,

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