बेज़ुबानों की आह

अपने दोस्तों के साथ अवश्य साझा करें।

IMG_20250315_192439.jpg

“बेज़ुबानों की आह”
~~~~~~~~~~

बिना सोचे समझे बेवजह ही जंगलों में आग लगा कर क्या साबित करना चाहता है इंसान क्या वो इस बात से अंजान है या फिर जानबूझ कर ऐसा कर रहा है। शायद उसे इस बात का रत्ती भर भी एहसास नहीं है कि कितने बेज़ुबान जीव उस आग की चपेट में आकर अपना दम तोड़ देते हैं वो बस बोल नहीं सकते मग़र दर्द उन्हें भी होता है उनमें भी जान है इस बात का कहां एहसास है इस पापी इंसान को कि वो भी हमारी तरह ही हैं जब उन्हें आग की लपटें सताती होंगी तब उनके दिल से कैसी आह निकलती होगी। इंसान इस बात से अंजान है बेखबर है कि बेज़ुबानों की रब भी सबसे पहले सुनता है। क्योंकि रब के लिए सांस लेने वाला हर जीव जंतु एक बराबर है किसी को वेबजह सताना किसी की बद्दुआ लेना और फिर बेज़ुबानों की आह कब ज्वाला बन कर फूटेगी ये कुदरत अक़्सर समझाती ही रहती है इंसान को और समझाती भी रहेगी मग़र ये कलयुगी इंसान फिर भी नहीं समझता है।।

~ रसाल सिंह ‘राही’

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Shopping Cart