आलेख बालिका शिक्षा-पी.यादव ‘ओज’

अपने दोस्तों के साथ अवश्य साझा करें।

शिक्षा’ जिसके माध्यम से मनुष्य यह जान पाता है कि जीवन में उसके होने का महत्व क्या है।जन्म का उद्देश्य क्या है।उसके स्वयं की,परिवार,समाज,देश और विश्व के प्रति उसकी जिम्मेदारियां क्या है?’शिक्षा’ जहां मनुष्य को आत्म-विकास से लबरेज करती है।वहीं स्वालंबन एवं श्रेष्ठ जीवन की ओर प्रेरित भी करती है।’शिक्षा’ हर मनुष्य को चरित्र संपन्न,विचारवान और स्वयं की श्रेष्ठता को साबित करने हेतु प्रेरणा देती है।शिक्षा के अभाव में मनुष्य का जीवन उस पशु की तरह हो जाता है,जहां वह भ्रम में है कि वह स्वयं जीवन-यापन कर रहा।इसीलिए समाज में सभी का शिक्षित होना अत्यंत ही आवश्यक है।उसमें भी यदि बात उठे ‘बालिका शिक्षा’ की,तो यह एक अत्यंत ही गंभीर और महत्वपूर्ण विषय है।उनकी शिक्षा समाज,देश और विश्व के कल्याण हेतु अत्यंत ही आवश्यक है।बालिका शिक्षा अर्थात लड़कियों को समुचित,समान और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना,जिससे वे सामाजिक,मानसिक,आर्थिक और आत्मिक रूप से सशक्त बन सकें।यह केवल विद्यालय में प्रवेश दिलाने तक सीमित नहीं है,बल्कि उन्हें ज्ञान,कौशल,संस्कार और आत्मनिर्भरता से सज्जित करना इसका प्रमुख उद्देश्य है।बालिकाएँ समाज का वह आधार हैं,जिन पर परिवार,समाज और राष्ट्र की संरचना टिकी होती है।यदि बालिकाएँ शिक्षित होंगी,तो वे न केवल स्वयं का जीवन सुधारेंगी,बल्कि अपने परिवार,समुदाय और देश को भी प्रगति की ओर अग्रसर करेंगी।जिस समाज में नारी की शिक्षा अत्यंत ही प्रबल होती है,वह समाज संसार में पूजित होता है।किसी परिवार की एक बालिका यदि शिक्षित हो जाए,तो वह संपूर्ण परिवार को संस्कारी और शिक्षित बना देती है।गांधीजी के कथनों में उनका यह मानना था कि,-“बालिका की शिक्षा ही किसी राष्ट्र और विश्व की सर्वप्रथम प्राथमिकता होनी चाहिए।तब जाकर हम शिक्षित समाज में रह रहे हैं और स्वयं शिक्षित हैं,इस बात को हम प्रमाणित कर पाएंगे।”
‘बालिका-शिक्षा’ समाज को एक नई दिशा देने में सहायक होती है।शिक्षा का अधिकार,विचारों,पदों,परिस्थितियों,वर्गों,जातियों के आधार पर नहीं आंका जा सकता।शिक्षा पर सबका समान अधिकार है।वर्तमान शिक्षा व्यवस्था और समाज की जागरूकता,यह सब को मजबूर करती है कि बालिकाओं की शिक्षा अत्यंत ही आवश्यक है।सरकार के द्वारा भी आए दिन कई प्रकार के कार्यक्रम,योजनाएं तैयार की जा रही हैं।देश स्तर पर अमल भी किया जा रहा है।जिससे बालिका शिक्षा को एक नई दिशा मिल रही है।जिससे बालिका आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता के क्षेत्र में बहुत अधिक मजबूत हो रहे हैं।पहले जहां लड़कियाँ केवल प्राथमिक कक्षा तक पढ़ पाती थीं, अब वे उच्च शिक्षा में भाग ले रही हैं,विज्ञान,तकनीक,चिकित्सा,खेल, प्रशासन,और उद्यमिता में अपने झंडे गाड़ रही हैं।एक समय था जब बालिकाएं स्कूल जाने से डरती थीं,आज वे मिसाइल बना रही हैं,संसद में नेतृत्व कर रही हैं और अंतरिक्ष तक उड़ान भर रही हैं।मलाला युसुफजई, कल्पना चावला,पीवी सिंधु,मैरी कॉम,इंदिरा नुई जैसी शिक्षित महिलाओं ने यह सिद्ध कर दिया कि शिक्षा ही नारी के भीतर छिपे अनंत सामर्थ्य को बाहर लाने का माध्यम है।शिक्षा बालिका को आत्मनिर्भर बनाती है,उसमें निर्णय लेने की क्षमता उत्पन्न करती है,जिससे वह अपनी सुरक्षा स्वयं कर सकती है और अपने जीवन को गरिमा के साथ जी सकती है। शिक्षा उसे आत्म-सम्मान देती है,उसकी सोच को व्यापक बनाती है,और उसमें समाज को बदलने की शक्ति उत्पन्न करती है।एक शिक्षित बालिका न केवल अपने परिवार की धुरी बनती है,बल्कि राष्ट्र की आर्थिक,सामाजिक और राजनीतिक प्रगति की प्रेरक शक्ति भी बनती है।बालिका शिक्षा केवल समानता या अधिकार का विषय नहीं है,यह एक राष्ट्र की समृद्धि,स्थिरता और उन्नति की कुंजी है। जब हम कहते हैं,‘लड़का-लड़की एक समान’,तो यह नारा तभी सार्थक होता है जब उन्हें समान शिक्षा,समान अवसर और समान सम्मान दिया जाए।यह भी सत्य है कि एक शिक्षित बालिका एक शिक्षित पीढ़ी को जन्म देती है,इसलिए जब हम बालिका को शिक्षित करते हैं,तो वास्तव में हम भविष्य को सशक्त बनाते हैं।समाज,देश और पूरे विश्व में ऐसे कई उदाहरण मिलेंगे,जहां बालिकांएं शिक्षा के बल से अत्यंत ही श्रेष्ठ स्थानों पर पदस्थापित हुए हैं।मदर टेरेसा,सरोजिनी नायडू,कल्पना चावला,महादेवी वर्मा,और ऐसे कई उदाहरण मिलेंगे।जिनकी शिक्षा ने पूरे विश्व को अपनी अपनी कला और हुनर से अचंभित कर दिया।
निष्कर्षत:कहा जा सकता है कि बालिका शिक्षा आज की नहीं,हर युग की आवश्यकता है।यह केवल बालिकाओं के अधिकार की रक्षा नहीं,बल्कि एक समतामूलक,विकसित और सभ्य समाज की नींव है। बालिका शिक्षा ही वह संजीवनी है,जो एक राष्ट्र को अंधकार से प्रकाश की ओर,पराधीनता से आत्मनिर्भरता की ओर,और पिछड़ेपन से विकास की ओर ले जाती है।अतः यह प्रत्येक समाज, सरकार, विद्यालय और परिवार की सामूहिक जिम्मेदारी है कि वे बालिका को शिक्षित करने के पवित्र कार्य में सक्रिय सहयोग दें, ताकि भारत को एक सशक्त, समता-युक्त और उज्ज्वल भविष्य प्राप्त हो सके।अंत में मैं यह कह सकता हूं कि बालिका शिक्षा के बिना समाज अधूरा ही नहीं;बल्कि अपंग है।

लेखक- पी.यादव ‘ओज’
चौकीपाड़ा,झारसुगुड़ा। (ओडिशा)

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Shopping Cart
Scroll to Top