क्रांतिसूर्य धरती आबा महामानव भगवान बिरसा मुंडा
बीते, 15 नवंबर को, आजादी के महानायक और भगवान बिरसा मुंडा जी की जयंती थी। इस अवसर पर पूरा देश श्रद्धांजलि से सराबोर दिखाई दिया। अखबारों में उनके जीवनी पर अनेकों लेख प्रकाशित हुए और सोशल मीडिया पर लोगों ने श्रद्धा भरे संदेश साझा किए। ऐसा लगा मानो श्रद्धा की बाढ़ आ गई हो। “हालांकि बाढ़ का पानी गंदा होता है, किंतु मैंने जहा भी अंजुलि भर पानी लिया, वह पूर्णत: स्वच्छ था, चाहे किसी भी प्रवाह के लोगों ने कुछ लिखा हो।” किसी ने उन्हें भगवान कहा, किसी ने
धर्म नायक, किसी ने “उलगुलान” (विद्रोह) का प्रतीक बताया। ये सभी दृष्टिकोण उचित हैं, क्योंकि उनका नाम ही “क्रांतिसूर्य, धरती आबा, महामानव भगवान बिरसा मुंडा” है।
प्रारंभिक जीवन- बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को बंगाल प्रेसीडेंसी के रांची जिले के उलिहातु गाँव (वर्तमान झारखंड के खूंटी जिले में) में हुआ था। मुंडा परंपरा के अनुसार उनका नाम ‘बिरसा’ उस दिन (गुरुवार) के आधार पर रखा गया। उनके पिता सुगना मुंडा और माता कर्मी हातू साधारण कृषक थे। गरीबी के कारण परिवार को बार-बार स्थान बदलना पड़ा। बिरसा का बचपन गाँवों और जंगलों में बीता, जहाँ वे भेड़ चराते थे, बाँसुरी बजाते और ग्रामीण युवाओं के साथ अखाड़े में खेलते थे।वे पढ़ाई में तेज़ थे। अपने मामा के गाँव अयुभातु में रहते हुए उन्होंने सालगा में जयपाल नाग के विद्यालय में पढ़ाई की।
बाद में उन्होंने जर्मन मिशन स्कूल में प्रवेश लिया और ईसाई धर्म स्वीकार किया, जिससे उनका नाम “बिरसा डेविड” या “बिरसा दाऊद” हो गया। परंतु शीघ्र ही उन्होंने महसूस किया कि मिशनरियों का उद्देश्य आदिवासियों का धर्मांतरण है। अतः उन्होंने ईसाई धर्म का त्याग कर अपनी पारंपरिक आदिवासी धर्म में वापसी की।संघर्ष और विचार1886 से 1890 का समय बिरसा के जीवन में निर्णायक सिद्ध हुआ। उन्होंने औपनिवेशिक नीतियों से आदिवासियों की दुर्दशा का प्रत्यक्ष अनुभव किया। अंग्रेज शासन और जमींदारी व्यवस्था ने पारंपरिक ‘खुंटकटी’ भूमि व्यवस्था को समाप्त कर आदिवासियों को भूमिहीन बना दिया। गैर-आदिवासी किसानों और ठेकेदारों के आगमन से मुंडाओं की आर्थिक स्थिति बदतर हो गई।इस अन्याय के विरुद्ध बिरसा ने अपने लोगों को संगठित किया और “अबुआ राज एते जाना, महारानी राज टुंडूजाना” (अपना राज लाओ, रानी का राज खत्म करो) का नारा दिया। उन्होंने ईसाई मिशनरियों के धर्मांतरण के प्रयासों का भी विरोध किया और उन्होंने ‘बिरसाइत’ नामक एक नया आध्यात्मिक-सामाजिक आंदोलन प्रारंभ किया, जो बाद में मुंडा विद्रोह का आधार बना। उन्होंने रैयतों से लगान न देने का भी आग्रह किया। उनके अनुयायियों ने उन्हें “धरती आबा” (धरती का पिता) कहना प्रारंभ किया।मुंडा विद्रोह1894 से 1900 तक बिरसा ने ब्रिटिश शासन और जमींदारी तंत्र के विरुद्ध कई आंदोलनों का नेतृत्व किया। मुंडा विद्रोह खूंटी, तमाड़, सरवाड़ा और बंदगांव जैसे क्षेत्रों में केंद्रित था। इस विद्रोह ने अंग्रेजों को झकझोर दिया। बिरसा मुंडा को 1895 में गिरफ्तार किया गया, कुछ समय बाद रिहा किया गया, परंतु उन्होंने संघर्ष जारी रखा।अंतिम समय और विरासत बिरसा मुंडा को 1900 में पुनः गिरफ्तार किया गया और 9 जून 1900 को रांची की जेल में 25 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। उनकी मृत्यु रहस्यमय परिस्थितियों में हुई।
आज उनका नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अग्रदूतों में लिया जाता है।
वे केवल एक योद्धा नहीं, बल्कि
“माटी के मालिक” का अधिकार किसी ने दान में नहीं दिया था…
आदिवासियों ने छीनकर लिया था और उस संघर्ष का नाम था उलगुलान!
और उस उलगुलान का प्रतीक बिरसा मुंडा थे I
आदिवासी समाज को उसकी जमीन, जंगल और माटी पर मालिकाना हक दिलाने वाले महान क्रांतिकारी बिरसा मुंडा सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि वह विद्रोह थे जिसने अंग्रेजी हुकूमत की जड़ें हिला दीं।
बिरसा मुंडा ने छोटानागपुर में ऐसा ज़ोरदार आंदोलन छेड़ा कि ब्रिटिश सरकार को आदिवासी भूमि छीनने वाले कानून बदलने पड़े।
इसी उलगुलान के दबाव में अंग्रेजों ने CNT Act (Chotanagpur Tenancy Act) बनाया
जो इस बात की पहली कानूनी मुहर था कि आदिवासी ही अपनी माटी के असली मालिक हैं।
बाद में इसी सिद्धांत को आधार बनाकर पूरे भारत में Land Acquisition Act, 1894 लागू हुआ
यानी पक्का इतिहास यह कहता है कि भारत के भूमि अधिकारों की नींव किसी अंग्रेज अफसर ने नहीं, बल्कि बिरसा मुंडा के संघर्ष ने रखी थी।
आज जब “जमीन” “विकास” और “अधिग्रहण” के नाम पर आदिवासियों को फिर बेदखल करने की कोशिशें हो रही हैं
तब यह याद रखना जरूरी है:
अगर इस देश में भूमि अधिकारों की रक्षा के लिए कोई पहला कानून बना था,
तो उसकी असली वजह बिरसा मुंडा थे—
आदिवासी अस्मिता के अमर योद्धा,सामाजिक सुधारक, आध्यात्मिक नेता और सांस्कृतिक जागरण के प्रतीक थे। भारतीय संसद भवन में उनका चित्र स्थापित है। पूरे देश में उनके जन्मदिन को “बिरसा मुंडा जयंती” और “जनजातीय गौरव दिवस” के रूप में मनाया जाता है।
@कन्हैया लाल मीणा
उपनाम “पारगी”
मो. न.8824827164


