पुस्तक: कितनी बार कहा साथी – पातियाँ प्यार की
लेखक – हरेंद्र “हमदम” दिलदारनगरी
प्रकाशक – इंकलाब पब्लिकेशन मुंबई , महाराष्ट्र
मूल्य : 499 रुपए (हार्डकवर)

हरेंद्र “हमदम” दिलदारनगरी का काव्य-संग्रह कितनी बार कहा साथी (पातियाँ प्यार की) प्रेम, संवेदनाओं और जीवन-दर्शन का अनूठा संगम है। यह संग्रह केवल भावनाओं का संकलन भर नहीं है, बल्कि मनुष्य के अंतरमन की गहराइयों में उतरकर वहाँ छिपे प्रेम, संवाद और संघर्ष को उजागर करता है। संग्रह का मूल स्वर प्रेम है, परंतु यहाँ प्रेम केवल स्त्री-पुरुष के बीच का आकर्षण नहीं रह जाता, यह मन और आत्मा के संवाद का प्रतीक बन जाता है। कवि कहीं अपनी प्रिय से संवाद करता है, तो कहीं मन को ही “साथी” मानकर उससे बात करता है। यही आत्मसंवाद इस कृति को विशिष्ट और गहन बनाता है।
इस संग्रह में प्रेम की मिठास है, तो उसकी पीड़ा भी है; दूरी की कसक है, तो विश्वास का संबल भी है। कवि बार-बार यह संदेश देता है कि प्रेम ही वह शक्ति है जो जीवन को अर्थ देती है और हर संघर्ष से पार पाने का हौसला प्रदान करती है। कवि के शब्दों में मन ही सच्चा साथी है, जो सही राह दिखाता है और कठिनाइयों में संबल बनता है।
भाषा इस संग्रह की सबसे बड़ी खूबी है। यह न तो अतिशय जटिल है और न ही कृत्रिम। सहज, सरल और भावपूर्ण शैली पाठक को सीधे जोड़ लेती है। कहीं गीतात्मक लय है, कहीं ग़ज़ल जैसी नजाकत, तो कहीं जीवन-दर्शन की गहरी बातें। कवि ने हिंदी और उर्दू के प्रचलित शब्दों का सधी हुई तरह से प्रयोग किया है, जिससे काव्य में मिठास और गेयता दोनों आती हैं। यह सरलता ही पाठक को बाँध लेती है और भावनाओं की गहराई तक ले जाती है।
संग्रह की संरचना भी विविधता से भरी है। इसमें कविताएँ, गीत और ग़ज़लें सम्मिलित हैं। कुछ कविताएँ आत्मसंवाद के रूप में हैं, कुछ सीधे प्रिय को संबोधित करती हैं, तो कुछ जीवन और समाज की सच्चाइयों पर केंद्रित हैं। उदाहरण के लिए – “मन से मन का नाता, जैसे रूह से रूह का रिश्ता” – प्रेम की आत्मीयता का बोध कराती है, जबकि “हमदम चलो तुम फिर से उठो, यही है जीवन का सार सारा” जीवन के संघर्ष और आशा का उद्घोष करती है। इसी तरह “ये पत्तियाँ हैं दिल की साथी, दिल को खिला ही जाएँगी” आत्मिक और भावनात्मक शक्ति का प्रतीक है।

इस संग्रह की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता इसका सकारात्मक दृष्टिकोण है। कवि हर जगह आशा की लौ जलाए रखता है। निराशा और पीड़ा के बीच भी वह उम्मीद खोज लेता है। यह आशावाद पाठक को भीतर तक प्रभावित करता है। साथ ही प्रकृति का सुंदर चित्रण भी इस कृति की पहचान है। फूल, पत्तियाँ, चाँद-सितारे, वर्षा की बूंदें – सब प्रेम और संवेदना के प्रतीक बनकर सामने आते हैं। प्रकृति और प्रेम का यह संगम रचनाओं को और भी जीवंत बना देता है।
एक और विशेषता यह है कि कवि ने अपने व्यक्तिगत अनुभवों को सार्वभौमिक बना दिया है। रचनाएँ भले ही कवि की आत्मानुभूतियों से उपजी हों, लेकिन हर पाठक उन्हें पढ़कर अपने जीवन से जोड़ सकता है। प्रेम की अनुभूति सार्वभौमिक है, और यही कारण है कि यह संग्रह पाठक के भीतर गहरे उतरता है।
यह काव्य-संग्रह केवल प्रेम की रूमानी अनुभूतियों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें रिश्तों, परिवार, समाज और मानवीय संबंधों की गहरी समझ भी है। इसमें जीवन की जटिलताओं के बीच प्रेम को मार्गदर्शक शक्ति के रूप में प्रस्तुत किया गया है। कवि मानो कहना चाहता है कि प्रेम ही जीवन का सार है, वही वह पुल है जो मनुष्य को निराशा से आशा और पीड़ा से शक्ति की ओर ले जाता है।
समग्र रूप से कितनी बार कहा साथी (पातियाँ प्रेम की) प्रेम-काव्य की परंपरा में एक मर्मस्पर्शी और सार्थक योगदान है। हरेंद्र “हमदम” दिलदारनगरी ने प्रेम को आत्मा, संघर्ष और जीवन-दर्शन से जोड़कर एक अनूठा आयाम दिया है। यह काव्य-संग्रह केवल रूमानी प्रेम का उत्सव नहीं, बल्कि जीवन के गूढ़ प्रश्नों के उत्तर खोजने की एक ईमानदार कोशिश है। इसकी सहज भाषा, गेय शैली और गहरी संवेदनाएँ इसे हर पाठक के हृदय तक पहुँचा देती हैं।
संक्षेप में, यह संग्रह प्रेम, आत्मसंवाद और जीवन-दर्शन का ऐसा दर्पण है जिसमें हर पाठक अपनी छवि देख सकता है। साहित्य-जगत में यह कृति निश्चित ही लंबे समय तक अपनी पहचान बनाए रखेगी और पाठकों को संवेदनशील बनाती रहेगी।
सागर यादव ‘जख्मी’
मुंबई , महाराष्ट्र