यह एक काल्पनिक कहानी है। जिसके अनुसार प्राचीनकाल में रामपुर नामक एक गांव में एक मजदूर और गरीब परिवार रहता था। उस परिवार में एक बूढ़ा आदमी जिसका नाम नंदलाल था वह अपनी पत्नी जुगनी और एक नौजवान बेटा नंदू के साथ रहता था। इतिहास गवाह है कि पहले अनाज के भी लाले पड़े थे और घर के सभी लोगो को काम की तलाश करना पड़ता था। क्योंकि मजदूरी उतनी नहीं मिलती थी जितना काम किया करते थे। यही हाल रामपुर गांव के वह मजदूर परिवार का था। हर दिन काम पर बूढ़ा नंदलाल नामक आदमी और उसकी जुगनी नामक पत्नी काम पर गांव के पटेल के खेत पर जाया करती थी। तब कही जाकर दो वक्त की रोटी का इंतजाम होता था। उनकी एक संतान में सिर्फ एक लड़का था जो बचपन से ही उनका लड़का गांव के और लडको के साथ घूमता, फिरता, मौज, मस्ती करता और बूढ़े मां-बाप की भी कोई बात नही सुनता था। घर में मनमर्जी से आना जाना करता रहता था और गांव के गलत संगत के लडको से दोस्ती कर बैठा था। इस कारण बूढ़ा नंदलाल और उसकी पत्नी जुगनी बहुत परेशान रहने लगे थे क्योंकि उनका लड़का उनकी एक बात नही सुनता था। कभी-कभी तो वह घर से अनाज भी ले जाकर बाजार में बेच कर जुआं खेलता, शराब पीता और आवारा गिरी करता रहता था।
परेशान बूढ़े मां-बाप को अपने बूढ़ापे की जितनी चिंता नहीं थी उससे ज्यादा उनको लड़के की चिंता सता रही थी। दिनभर बेचारे काम पर चले जाते और थक हार कर शाम को लौटते थे। और आधी रात तक लड़के का इंतजार करते रहते थे क्योंकि उनका लड़का गलत संगति करके कभी-कभी तो रात-रात भर घर नही आता था। दिनों दिन यही क्रम चलते रहा। अब माता-पिता ने सोचा की लड़का तो हाथ से निकल गया। इसका भविष्य अंधकारमय हो चला और इस लड़के ने भविष्य बिगाड़ लिया है। यदि इसका ब्याह कर दिया जाए तो बात बने। शायद ब्याह होने से यह सुधार जाए या बहु आ जाए तो वह इसे सुधार देगी। यह सोचकर बूढ़े मां-बाप दोनो आसपास के गांव में लड़की ढूंढने लगे और जान पहचान के लोगो, रिश्तेदारों को भी कहलवाया की नंदू की शादी करना है कहीं किसी के पहचान में लड़की हो तो बताना।
एक दिन की बात है कि नंदलाल का साला रामू मेहमान बनकर आया और नंदू के लिए उसके गांव के एक साधारण परिवार की लड़की का रिश्ता लेकर आया। यह खबर सुनकर जुगनी और नंदलाल बड़े खुश हुए की चलो अब लड़के की शादी हो जाए तो कम से कम लड़का सुधर तो जायेगा। नही तो दिन भर गांव के लडको के संग घूमता फिरता रहता है। ब्याह की खबर सुनकर नंदलाल और जुगनी ने रामू के हाथ ही ब्याह करने की पक्की खबर भेज दी। इधर नंदू को ब्याह की बात पता चली तो वह भी खुश हुआ और नंदलाल, जुगनी ने अपने बेटे नंदू की शादी का इंतजाम करने लगे फिर कुछ दिनों के पश्चात नंदू का ब्याह लक्ष्मी के साथ रीति रिवाज और विधि अनुसार संपन्न हुआ। लक्ष्मी दुल्हन बनकर अपने ससुराल आ गई और ससुराल में अपने पति नंदू, सास जुगनी, ससुर नंदलाल के साथ खुशी-खुशी रहकर सबकी सेवा करने लगी। बूढ़े सास-ससुर भी पहले की भांति हर दिन काम पर चले जाते और घर पर लक्ष्मी अकेली रहती और नंदू पहले की तरह फिर से अपने दोस्तो में उठना बैठना किया करता। कभी-कभी तो फिर वह आधी रात तक आने लगा। अब बूढ़े सास-ससुर के साथ-साथ लक्ष्मी भी पति का रात-रात भर इंतजार करती रहती। नंदू पूरी तरह से बेशर्म हो गया था और कभी-कभी तो वह शराब पीकर भी आता और लक्ष्मी को उल्टा सीधा भी बोलने लगा था। इस तरह फिर से नंदू को छोड़कर पूरा परिवार परेशान होने लगा। क्योंकि अब परिवार में नंदू और लक्ष्मी का एक सुंदर बेटा भी हो गया था। काफी दिन बीत गए और दिनों दिन बूढ़े मां-बाप और बूढ़े होते गए आखिरकार समय आया की बुढ़ापे के कारण दोनो सास-ससुर ज्यादातर बीमार रहने लगे अब पूरा घर का खर्चा नंदू पर आया पर वह तो बेशर्म था, कोढ़ी काया का बना था, काम उसको करना नही आता था। प्रतिदिन सुबह उठता खाना खाता और अपने निठल्ले दोस्तो के साथ फिजूल घूमता फिरता, जुआं खेलता, शराब पीता रहता था। यह सब लक्ष्मी को पसंद नही आता था उसने नंदू को बहुत समझाने का प्रयत्न किया लेकिन वह असफल हुई। आखिरकार अब लक्ष्मी को घर में बूढ़े सास-ससुर की सेवा करना पड़ता और उसके बाद गांव के पटेल के यहां लक्ष्मी हर दिन काम पर जाया करती थी। तब जाकर घर का खर्चा पानी निकल पड़ता था। धीरे-धीरे दोनो बूढ़े मां-बाप ने दम तोड़ दिया अब घर पर केवल नंदू और लक्ष्मी और उनका बेटा श्याम के साथ पुराने मकान में रहा करती थी।
ऐसा कोई दिन नही बचा था जब लक्ष्मी ने अपने पति नंदू को नहीं समझाया होगा की वह प्रति दिन काम पर जाए और बोल-बोल कर वही थक गई कि आप भी कुछ काम करो क्योंकि हमारे श्याम बेटा का भविष्य बनाना है लेकिन नंदू एक नही सुनता था। इस तरह समय बीतता गया और नंदू और उसकी पत्नी भी धीरे-धीरे बूढ़े होने लगे और उनका बेटा श्याम बड़ा होने लगा। हर दिन नंदू गलत दोस्तो के साथ रहकर शराब पीने का आदि हो गया इस कारण उसकी मृत्यु जल्दी हो गई। तथा नंदू और लक्ष्मी का बेटा श्याम भी बड़ा हो चुका था। ससुराल में आने के बाद से लक्ष्मी ने अकेले मेहनत मजदूरी करके इकलौते श्याम बेटा को पढ़ाया लिखाया और बड़ा किया। लक्ष्मी ने समय रहते श्याम को मेहनत करना सिखाया और उम्र होने पर श्याम का ब्याह रचाया। अब समय के साथ-साथ लक्ष्मी भी अस्वस्थ रहने लगी तथा कुछ समय के बाद लक्ष्मी की भी मौत हो गई।
आगे क्या होता है कि नंदू नामक वह आदमी जिसने मानव जीवन लेकर भी कभी कोई काम नही किया केवल खाया पिया घूमा फिरा और मौज मस्ती करते हुए कोढ़ी की काया में मर गया उसने दूसरा जन्म लिया और वह इस जन्म में एक बैल बनकर आया। श्याम भी बड़ा हो गया और उसने मेहनत करके एक खेत खरीद लिया जिस पर खेती करके वह उसका परिवार का पालन पोषण करना चाहता था। श्याम को खेती करने के लिए बैल की आवश्यकता पड़ी तो उसने बाजार जाकर दो बैल खरीदकर ले आए। इधर लक्ष्मी ने भी मानव जीवन में केवल सबकी सेवा की और पूर्ण ईमानदारी से मेहनत करके अपने परिवार का पालन पोषण किया और श्याम को होनहार बनाया। अब लक्ष्मी ने भी दूसरा जन्म लिया लेकिन इस बार लक्ष्मी ने एक साहूकार के यहां जन्म लिया और बचपन से ही लक्ष्मी ने यश और आराम पाया क्योंकि उसके पिताजी साहूकार थे। बचपन से ही लक्ष्मी बहुत होशियार और समझदार थी। धीरे-धीरे साहूकार की बेटी जिसका इस जन्म में भी लक्ष्मी ही नाम साहूकार ने रखा था। अब लक्ष्मी ब्याह योग्य हो गई तो साहूकार ने दूसरे पड़ोसी साहूकार के बेटे के साथ लक्ष्मी का ब्याह रचा दिया। जिस दिन लक्ष्मी का ब्याह हुआ और उसकी विदाई हुई तो उसकी डोली वह रास्ते से जा रही थी जिस रास्ते पर श्याम का खेत था और उस खेत में श्याम उन दोनो बैलों के साथ खेती कर रहा था। लेकिन अब कमाल की बात यह है कि नंदू ने दूसरा जन्म लेकर बैल के रूप में जन्म लिया और उस बैल को बाजार से बेटा श्याम ने ही खरीदकर खेती करने के लिए लाया। लेकिन वह बैल जो पिछले जन्म में नंदू था जिसने कभी कोई काम ही नही किया केवल कोढ़ी की काया बनाई और उसके दूसरे जन्म में भी उसकी वही हरकत रही श्याम हर दिन दोनो बैल को लेकर खेत जाता जिसमें एक बैल जल्दी-जल्दी चलता और खेत का काम करता। लेकिन दूसरा बैल नंदू फिर मक्कारी करता धीरे-धीरे चलता और हरपल बैठ जाता इस कारण से श्याम उस बैल जो पिछले जन्म में उसका बाप नंदू था। उससे दुखी होकर उसको खूब मारता रहता। यह रोज-रोज की बात हो गई थी। अब तो श्याम भी उस बैल से परेशान होने लगा क्योंकि उसकी खेती अच्छे से नहीं हो पा रही थी। एक बैल खेत के काम में ज्यादा मदद करता तो दूसरा बैल परेशान करता रहता।
जब लक्ष्मी की डोली श्याम के खेत के पास से जा रही थी उस समय लक्ष्मी की डोली के आगे साहूकार का दूल्हा बेटा घोड़े पर सवार होकर आगे-आगे नौकर चाकर के साथ और बीच में लक्ष्मी की डोली आठ दस कहार उठाकर ले जा रहे और डोली के पीछे-पीछे सारे बाराती चल रहे थे। अब लक्ष्मी ने क्या देखा कि श्याम खेत के काम में पिछले जन्म के उसके नंदू बाप जो इस जन्म में बैल रूप में है श्याम को परेशान कर रहा है और श्याम उस बैल को लाठी से मार रहा है। इस जन्म में भी नंदू नामक वह बैल कोढ़ी का कोढ़ी ही रहा। यह सब देखकर लक्ष्मी से नहीं रहा गया उसने कहार जो डोली को लेकर चल रहे थे उनसे डोली को रोकने के लिए कहा तो सभी कहार ने डोली रोकी उनके साथ ही दूल्हा और सारे बाराती भी रुक गए।
लेकिन खेत में श्याम उस बैठे हुए बैल को जोर-जोर से लाठी से मार रहा था। यह नजारा खेत की मेड़ से चल रहे दूल्हा सहित नौकर चाकर और सभी बारातियों ने भी देखा।
जब डोली श्याम के खेत के समीप रुकी और उस डोली में से लक्ष्मी उतरी और उतरते ही लक्ष्मी सीधे पुराने जन्म का कोढ़ी पति जो इस जन्म में भी एक कोढ़ी बैल बना था उसके पास जाकर उसके कान में धीरे से बोल बैठी कि पिछले जन्म में भी कोई काम नही किया कोढ़ी के कोढ़ी ही रहे और इस जन्म में भी कोढ़ी के कोढ़ी ही रहोगे क्या इसलिए पिछले जन्म का आपका बेटा यह श्याम तुम्हे लाठियों से पिटाई कर रहा है। अब तो कुछ शर्म करो कि पिछले जन्म के बेटे से ही पीटे जा रहे हो। थोड़ी सी शर्म बाकी होगी तो अब यह दूसरा जन्म सुधार लो अन्यथा कोढ़ी के कोढ़ी ही रहोगे और तुम्हारा इस जन्म का मालिक तुम्हे पीट-पीट कर मार डालेगा।
लक्ष्मी के द्वारा बैल के पास जाकर उसके कान में बोलने का नजारा साहूकार का दूल्हा बेटा, नौकर चाकर और सभी बाराती के साथ-साथ श्याम भी देख रहा था। लक्ष्मी की बात पिछले जन्म के उसके पति नंदू बैल को बुरी लगी और उसने अफसोस किया की सही बात है। मैने पहले जन्म में भी कुछ नहीं किया और दूसरे जन्म में बैल का जन्म लेकर भी कुछ नहीं कर पा रहा हूं इसलिए तो मेरा पिछले जन्म का बेटा और इस जन्म का मालिक मुझे लाठियों से पीट रहा है। लक्ष्मी की बात सुनकर नंदू बैल ने सोचा और इतना कहकर लक्ष्मी अपनी डोली में जाकर बैठ गई। और लक्ष्मी की डोली को सभी कहार ने उठाकर फिर ससुराल के लिए चल पड़े। लक्ष्मी के जाते ही बैल ने लक्ष्मी की बात से प्रेरित होकर और झट से खड़ा हुआ और दूसरे बैल के साथ-साथ खेत के काम में जल्दी-जल्दी चलकर मदद करने लगा। यह नजारा सभी लोगो ने और श्याम ने भी देखा और सभी आश्चर्य चकित रह गए। शाम होते-होते लक्ष्मी की डोली ससुराल पहुंच गई लेकिन पूरे रास्ते भर साहूकार का दूल्हा बेटा, नौकर चाकर, सगे संबंधी, बाराती यही सोचते रहे कि आखिरकार दुल्हन ने उस बैल के कान में ऐसा क्या बोला की वह बैल सीधा उठा खड़ा हुआ और काम में लग गया। यही बात सोचते हुए श्याम जब घर गया तो घर में उसकी पत्नी को सारी बाते बताई की आज खेत पर यह घटना हुई। लेकिन किसी के भी दिमाग में कुछ समझ नहीं आ रहा था। इधर ब्याह की रस्में रीति रिवाज के चलते दूल्हा भी दुल्हन से नही पूछ सका और इधर श्याम को भी समझ नही आ रहा था। सुबह उठते ही श्याम उसकी समस्या का हल जानने के लिए साहूकार के गांव का पता करते हुए वह साहूकार के गांव और घर में पहुंच गया। श्याम को साहूकार के घर में आते देख साहूकार के गांव और घर वाले पहचान गए की यह तो वही किसान है जिसके खेत के पास डोली रुकी थी और खेत में यह किसान अपने बैल को जोर-जोर से लाठी से पीट रहा था। साहूकार के घर जाकर श्याम ने राम-राम करते हुए अपनी समस्या को जानने हेतु प्रस्ताव रखा यही हाल साहूकार के घर वाले का भी था वहां के सभी लोग भी यह राज जानने के लिए प्रतीक्षा कर रहे थे।
श्याम की बात और समस्या का आदर करते हुए साहूकार ने अपने बेटे से लक्ष्मी बहू को बुलाने के लिए कहा जब साहूकार के घर के सभी लोग एकत्रित हुए और दुलहन लक्ष्मी आई तो पूछने पर दुल्हन लक्ष्मी ने सारी बात बताई कि यह किस्सा पिछले जन्म का है। वह बैल पिछले जन्म में मेरा पति नंदू था जिसने पूरी उम्र केवल आवरा गिरी करी कोई काम कभी नही किया काम के मामले में कोढ़ी का कोढ़ी ही रहा तो उसको उसके “कर्म का फल” यह दूसरे जन्म में बैल बनना पड़ा। और मैने सारी उम्र पति, सास-ससुर की सेवा, घर का खर्चा, बेटे का पालन पोषण करके उसको होनहार बनाकर उसका ब्याह किया और आज यह किसान जो सामने बैठा है यह मेरा पिछले जन्म का बेटा श्याम है। मैने नंदू बैल के कान में केवल इतना ही बोला की पिछले जन्म में तो कोढ़ी के कोढ़ी ही रहे कम से कम इस जन्म में तो काम करके अपना जीवन सुधार लो तुम्हारे पिछले जन्म का “कर्म का फल” के कारण बैल बनना पड़ा और मेरे पिछले जन्म के “कर्म का फल” से मुझे मानव जीवन में एक साहूकार के घर जन्म मिला है। मेरी इस बात को सुनकर बैल को शर्म आई और वह नंदू बैल काम करने के लिए खड़ा हुआ और खेत में काम करने लगा है।
साहूकार के घर दुल्हन लक्ष्मी के मुख से जब सबने यह बात सुनी तो हैरत करने लगे श्याम की समस्या का हल निकल गया और उसने सभी से राम-राम करते हुए घर जाने के लिए विदा ली। और साहूकार के घर में दुलहन लक्ष्मी ने अपने ससुराल में नव जीवन की शुरुआत की।
हर इंसान को अपने-अपने कर्म का फल मिलता है चाहे इस जन्म में हो या फिर दूसरा जन्म लेकर लेकिन “कर्म का फल” मिलता जरूर है।
पता – आमला, जिला- बैतूल (मध्यप्रदेश)