मनलाल बड़ोदे ‘राधेप्रेम’ मेहरा की कहानी – सोन चिड़िया

अपने दोस्तों के साथ अवश्य साझा करें।

एक सोनगांव नामक गांव में एक पंडित का पुस्तैनी घर था। जहां दोनो पंडित और पंडिताइन खुशी से अपना जीवन यापन कर रहे थे। क्योंकि उनकी कोई संतान नही थी। एक दिन पंडित ने पंडिताइन से बोला कि आपका समय गांव के मंदिर में पूजा पाठ करना और लोगो के यहां कथा पूजन पाठ करके और गांव के लोगो के साथ उठने बैठने से व्यतीत हो जाता है। लेकिन घर में दिन भर रहने से मेरा समय ही नही कटता आप मेरे लिए कहीं से कोई एक बच्चे की व्यवस्था कर दीजिए जिससे कि मैं उसके साथ घर में समय व्यतीत कर संकू। पंडित ने पंडिताइन की बात सुनी तो सोच में आया कि अब इसकी इच्छा कहां से पूरी करूं। यह सोचकर घर से निकल चला बच्चे कि तलाश में और बहुत दूर तक चलने के बाद पंडित थक कर एक पेड़ के नीचे जाकर मायूस होकर बैठ गया। और आराम करने लगा तभी पेड़ के ऊपर एक चिड़िया का घोंसला में से एक चिड़िया का छोटा बच्चा चिल्लाते हुए नीचे जमीन पर गिर गया चूंकि चिड़िया का वह बच्चा बहुत छोटा था इसलिए उड़ नही पा रहा था। वह बच्चा उड़ने कि बहुत कोशिश कर रहा था लेकिन बार-बार कोशिश करने के बाद भी उड़ नही सका पंडित पेड़ के नीचे बैठकर बहुत देर से यह नजारा गौर से देख रहा था पंडित को डर था कि कहीं इस चिड़िया के बच्चे को कोई पक्षी या जानवर हानि ना पंहुचाये बहुत सोच विचारने और छोटे बच्चे कि तलाश कर हारने पर पंडित ने सोचा कि क्यों ना इस चिड़िया के बच्चे को ही घर ले जाऊं तो पंडिताइन का मन भी बहल जाया करेगा और इसी चिड़िया के बच्चे के साथ मनोरंजन किया करेगी।
यह सोचकर पंडित ने उस चिड़िया के छोटे बच्चे को लेकर घर कि ओर रवाना हुआ आगे देखो क्या होता है कि पंडित घर पहुंचकर जोर-जोर से पंडिताइन को आवाज देने लगे
ऐ पंडिताइन… ऐ पंडिताइन… कहां हो… पंडिताइन ने जब पंडित कि आवाज सुनी तो दौड़कर आयी और बोली क्या कह रहे हो जी आपने मेरी इच्छा पूरी कि या नही पंडित खुश होकर कहने लगा देख पंडिताइन मैं तेरे लिए क्या लेकर आया हूं। पंडित कि बात सुन पंडिताइन ने घर से बाहर निकलकर सब जगह देखने लगी पर उसको कहीं कोई भी नही दिखा फिर वह पंडित से कहने लगी कि मैंने पूरा आँगन, घर और गली सब जगह ढूंढ लिया पर मुझे कहीं कोई नही नजर आया। पंडित आप मेरे लिए क्या लाये है तब पंडित ने बोला पंडिताइन मैंने तेरी इच्छा पूरी कर दी है मैं तेरे लिए एक छोटा बच्चा लाया हूं तो पंडिताइन बोली कि आपने मेरे लिए छोटा बच्चा लाया है तो कहां है मुझे तो दिखाई नही दे रहा आप कहीं मुझसे मज़ाक तो नही कर रहे है। तब पंडित ने पूरा हाल चाल सुनाया कि मैं छोटे बच्चे कि तलाश में घूम रहा था और बहुत दूर निकल गया लेकिन मुझे कहीं कोई भी बच्चा नजर नही आया और मैं थक कर जब एक पेड़ के नीचे छाया में जाकर बैठा था तभी पेड़ के ऊपर से एक चिड़िया के घोंसले में से एक छोटी चिड़िया नीचे गिर गयी और बहुत उड़ने कि कोशिश कर रही थी लेकिन इसके पँख बहुत छोटे होने के कारण यह उड़ नही पा रही थी और पेड़ कि डाल पर बना चिड़िया का घोंसला भी बहुत ऊंचा था इस कारण मैं उस घोंसले तक नही पहुंच पा रहा था इस कारण से यदि मैं उस चिड़िया के छोटे बच्चे को वहीं छोड़ कर आ जाता तो कोई पक्षी या जानवर इसको मार डालता। यह सोच कर मैं इस चिड़िया के बच्चे को अपने साथ लेकर आ गया हूं पंडिताइन अब तू इसी बच्चे के साथ अपना मनोरंजन कर लिया करना।
पंडित कि बात को गौर से सुनकर और समझकर पंडिताइन को उस चिड़िया के बच्चे पर दया आ गयी और उसने उस चिड़िया के बच्चे को अपने हाथ से उठाया और उसको लाड़ प्यार करने लगी और छोटी चिड़िया बार-बार चीं-चीं कर आवाज करने लगी। पंडिताइन यह देख बहुत खुश होने लगी पंडिताइन ने उस छोटी चिड़िया को बड़े लाड़ प्यार से उसका नाम “सोन चिड़िया” रख दिया पंडिताइन को हंसता खेलता देख पंडित भी बहुत खुश हुए। पंडिताइन का अकेलापन काम हुआ और धीरे-धीरे समय बीतता गया।
सोन चिड़िया और पंडिताइन अब अच्छे दोस्त बन गए जिधर-जिधर पंडिताइन जाती उधर-उधर वह सोन चिड़िया भी फुदक-फुदक कर घूम-घूम कर खेला करती थी। पंडिताइन बहुत सुन्दर मधुर-मधुर गीत गाकर सोन चिड़िया का मन बहलाती थी और सोन चिड़िया भी फुदक-फुदक कर नाचती रहती थी। इस तरह कई महीने बीत गए और एक दिन कि बात है कि उस गांव के जमींदार का नव जवान लड़का घोड़े पर बैठ कर सैर के लिए पंडित के घर के पास से गुजर रहा था और उसी समय पंडिताइन भी मधुर गीत गाकर सोन चिड़िया के साथ खेल रही थी। यह मधुर गीत को जमींदार का नव जवान लड़का बड़े गौर से सुन रहा था उसने सोचा कि जरूर पंडिताइन अपनी लड़की को यह मधुर गीत सुना रही है गीत इतना मधुर है तो पंडित कि लड़की कितनी सुंदर होंगी उस लड़के का मन पंडित कि लड़की को देखने का हुआ लेकिन वह चाहकर भी उसे नही देख पाया और फौरन अपने घोड़े को वापस लौटाकर घर आ गया और उस लड़के ने मन ही मन में ठान लिया कि कुछ भी हो मैं तो केवल पंडित कि लड़की से ही विवाह करूँगा। अन्यथा जिंदगी भर कुंवारा रहूंगा। कभी विवाह नही करूँगा और गुस्सा होकर तबेले में जाकर सो गया। उसी शाम को जब जमींदार अपने घर आया और उसकी पत्नी से पूंछा कि अपना छोरा कहां है दिखाई नही दे रहा तो जमींदार कि पत्नी ने कहां कि वह तो दोपहर से सैर के लिए निकला है और अभी तक नही आया है। शाम बहुत हो रही थी एवं अंधेरा भी छाने लगा था जमींदार को अब चिंता होने लगी थी कि उसका नव जवान लड़का जब भी सैर पर जाता था तो एक दो घंटे में ही वापस आ जाता था लेकिन आज वह लगभग 7-8 घंटे हो गए अभी तक नही आया है। जमींदार ने तुरंत दो चार नौकर को बुलाकर गांव के चारो ओर लड़के को ढूंढने के लिए भेजा सभी नौकर हताश और निराश होकर वापस लौट आए लेकिन कहीं भी जमींदार के लड़के कि कोई खबर नही मिल पायी जब सभी नौकर खाली हाथ वापस लौट आए तो जमींदार बहुत चिंता करने लगा और सोचने लगा कि मेरे बेटे को किसी दुश्मन या जानवर ने तो कहीं नुकसान तो नही पहुंचा दिया। यह सोचकर विलाप करने लगा उसी बीच एक नौकर ने पानी से भरा घड़ा लेकर तबेले में घोड़े को पानी पिलाने के लिए गया तो क्या देखता है कि जमींदार का नौजवान लड़का निराश होकर तबेले में नीचे जमीन पर बिना बिस्तर के खुले में सोया है और उसने तबेले को भी अस्त-व्यस्त कर रखा है। यह सब नौकर ने देखा तो चिल्लाता हुआ घर कि ओर दौड़ा-दौड़ा भागते हुए आया। जब जमींदार और उसकी पत्नी ने नौकर के चिल्लाने कि आवाज सुनी तो दोनों घबराकर कोठी से बाहर आये और नौकर से पूछने लगे कि क्या हुआ क्यों चिल्ला रहे हो। जमींदार और उसकी पत्नी को जवाब देते हुए नौकर ने जब लड़के का पता तबेले में होना बताया तो दोनों जमींदार और उसकी पत्नी दौड़कर तबेले की ओर भागे और तबेले में अपने छोरा को पाकर बहुत खुश हुए। फिर लड़के को उठाकर उससे निराश होने का कारण पूछने लगे। तो जमींदार के लड़के ने पूरा हाल सुनाया और दोनों माता-पिता से कहने लगा कि मेरी पंडित कि लड़की से ब्याह रचादो मैं केवल पंडित की लड़की से ही विवाह करूंगा अन्यथा सारी उम्र कुंवारा रहूंगा।
लड़के कि बात सुन जमींदार और उसकी पत्नी ने लड़के को पूरा आश्वासन दिया कि पंडित कि लड़की से विवाह कराने का वादा किया और लड़के को समझा बुझाकर घर में लेकर आए दूसरे दिन जमींदार ने दो चार नौकर को भेजकर पंडित को बुलाया।
गांव के जमींदार का मिजाज थोड़ा कड़क था इसलिए गांव वाले जमींदार से डरा करते थे और पंडित ने सुना कि जमींदार ने फ़ौरन बुलाया है तो पंडित घबरा गए और जमींदार के घर तत्काल रवाना हुए। जमींदार ने जब पंडित को घर में आते देखा तो बड़े आदर के साथ बैठने के लिए कहां उसके बाद जलपान कराया और फिर पंडित से अपने लड़के के रूठने का कारण और उसकी मंशा बताई पंडित ने बहुत कोशिश करके जमींदार को समझाने का प्रयास किया।
पंडित ने बताया कि वह निःसंतान है उनकी कोई बेटी नही है लेकिन जमींदार कहां मानने वाला जमींदार को तो केवल अपने बेटे कि इच्छा को पूरा करना था और जमींदार ने तुरंत पंडित को विवाह की विधि विधान से तैयारी करने का आदेश कर दिया और विवाह के लिए जरुरी गहने जेवरात आदि पंडित को सगुन स्वरूप देकर विदा किया। पंडित बड़ी सोच में आ गया कि इस जमींदार के लड़के के लिए अब लड़की लाऊं तो लाऊं कहां से यह जमींदार तो समझना ही नही चाहता यह सोचकर मन में उदास हो घर के लिए रवाना हुआ और घर आकर पंडिताइन को पूरा हाल सुनाया। और पंडिताइन से पूछा कि तुम किसके लिए मधुर गीत गा रही थी तो पंडिताइन ने बताया कि अपनी सोन चिड़िया के लिए मैं गीत गाया करती हूं। और सोन चिड़िया इधर-उधर फुदक-फुदक कर मेरे साथ खेलती रहती है।पंडित ने जमींदार की सब बात पंडिताइन को बताई कि यदि हमने अपनी लड़की का ब्याह जमींदार के लड़के के साथ नही किया तो जमींदार हम दोनों को सजा देगा या हो सकता है की लड़के के मोह में मार देगा ऐसी धमकी भी दिया है साथ ही ब्याह के लिए सोने के गहने जेवरात सगुन के तौर पर लड़की के लिए भेंट किया है।
यह बात सुनकर पंडिताइन भी घबरा गई और फिर दोनों ने बहुत सोच विचार किया कि अब तो बचने का एक ही तरीका है कि हम अपनी सोन चिड़िया का ब्याह जमींदार के लड़के से करा दें। यह सोच समझकर लड़की के ब्याह करने की खबर जमींदार के घर भेज दी कि अगले सप्ताह में शुभ मुहूर्त है और जमींदार लड़के कि बारात लेकर आ जाए लेकिन गृह नक्षत्र कि सही दिशा नही होने के कारण जमींदार का पूरा परिवार और लड़का ब्याह से पहले और ससुराल पहुंचने तक लड़की का चेहरा कोई भी नही देखेंगे।
यह खबर सुनकर जमींदार कुछ सोच पाता लेकिन लड़के कि जिद और गुस्से के कारण मजबूर रहा और खुश होकर ब्याह की तैयारी में जुट गया।
अब पंडित और पंडिताइन ने सोचा की अपनी लड़की स्वरूप सोन चिड़िया की ब्याह और विदाई करे तो करे कैसे फिर बहुत सोचने पैर विचार आया कि अपने घर से लोहे के पिंजरे में अपनी सोन चिड़िया को डोली में रखकर विदा किया जाए और पंडित और पंडिताइन ने किया भी ऐसा ही। इस तरह ब्याह कि विधि पूर्ण हुई और इस तरह सोन चिड़िया अपने ससुराल आ गयी। जमींदार का लड़का अपनी पत्नी को देखने के लिए बड़ा आतुर था लेकिन वह भी मजबूर था क्योंकि पंडित ने गृह नक्षत्र कि बात पहले बता रखी थी। लेकिन उसका मन नही मना और वह अपनी कोठी के कक्ष में दुल्हन को देखने के लिए चला गया जहां दुल्हन कि डोली रखी थी। उसने गौर से डोली के अन्दर देखा तो उसमे लड़की नही बल्कि एक लोहे का पिंजरा और पिंजरे में एक चिड़िया बैठी थी।
जमींदार के लड़के का दिमाग खराब हो गया वह आग बगुला होने लगा और परिवार में किसी को भी बिना बताये पंडित के घर के लिए निकल गया और वहां पहुंचकर जोर-जोर कि आवाज देकर चिल्लाने लगा कि पंडित और पंडिताइन ने मेरे साथ धोखा किया है मेरी पत्नी को डोली में बिठाने कि जगह एक चिड़िया को डोली में बिठाकर ससुराल भेज दिया है। दोनों पंडित और पंडिताइन ने जब जोर जोर से घर के बाहर आवाज सुनी तो घर से बाहर निकलकर दामाद जी के स्वागत करना चाहा लेकिन नाराज दामाद कहां मानने लगा वह तो गुस्से से आग बगुला हो रहा था। बहुत देर के बाद पंडित और पंडिताइन ने जमींदार के लड़के को उनके निःसंतान होने और सोन चिड़िया का उनके घर पर रहना और मधुर गीत गाना आदि सारी बात समझाई और सारी बात कह सुनाई।
जमींदार के लड़के का सारा गुस्सा शांत हुआ और वह मुँह लटकाये अपने घर वापस आ गया जमींदार ने जब देखा कि ब्याह की रात को उनका लड़का बाहर से घर कि ओर आ रहा है तो लड़के से सवाल किया कि इतनी रात को कहां से आ रह हो। फिर लड़के ने जवाब में झूठ बोलते हुए यह बताया कि पंडित के यहां यह पूछने गया था कि लड़की का चेहरा कब तक नही देखना है तो पंडित ने एक माह की अवधि बतायी है। इस तरह का झूठ लड़के ने जमींदार माता-पिता को कह सुनाई और तुरंत अपने कक्ष में चला गया और सोन चिड़िया को हाथ में लेकर उससे बाते करने लगा क्योंकि उसके लिए तो अब उसकी दुल्हन कहो या पत्नी कहो तो वही थी और निराश हो अपने आप को कोसने लगा कि यह मैंने क्या किया अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार ली और अपना ही जीवन बेकार कर लिया
हे भगवान… हे भगवान… ऐ मैंने क्या किया।
इस तरह विलाप करने लगा और कोठी के कक्ष में उसके अलावा किसी और को कक्ष में आने जाने नही देता और वह हर दिन उसकी पत्नी सोन चिड़िया के साथ हंसता, खेलता, रोता, गाता रहता। इस तरह हर दिन सोन चिड़िया के लिए एक कटोरी खाना और एक कटोरी में पानी रख दिया करता और सोन चिड़िया भी अपने पति के आसपास ही फुदक-फुदक कर चीं-चीं किया करती रहती थी। इस तरह समय व्यतीत होने लगा करीबन एक सप्ताह बीत गया।
अब आगे क्या होता है कि जमींदार के ससुराल में उसकी पत्नी के भाई के यहां ब्याह का निमंत्रण-पत्र आया तो सभी ब्याह में जाने के लिए तैयार हो गए और जमींदार का लड़का भी तैयार हो गया उसने मामा के यहां ब्याह में जाने से पहले ही एक कटोरी में खाना और एक कटोरी में पानी भरकर सोन चिड़िया के लिए लोहे के पिंजरे में रख दिया और जमींदार माता-पिता के साथ मामा के यहां चला गया।
अब सोन चिड़िया बेचारी अकेली अपने ससुराल में चीं-चीं करती और इधर-उधर फुदक-फुदक किया करती रहती थी और जब भूख लगे तो कटोरी में रखा खाना खा लेती और प्यास लगे तो पानी पी लिया करती थी।
एक दो-दिन तक सोन चिड़िया को कोई परेशानी नही हुई लेकिन जब कटोरी में रखा पानी धीरे-धीरे कम हुआ तो फुदकने के कारण कटोरी पलट गयी और पानी गिर गया सोन चिड़िया के फुदकने के कारण बचा पानी भी गिर गया तो सोन चिड़िया फिर प्यास से व्याकुल होने लगी जब बहुत प्यास लगने को हुई तो उसकी जान पर बन आयी। फिर सोन चिड़िया ने उस कटोरी को अपनी चोंच से उठाकर कोठी के समीप ही एक तालाब बना था वहां जाकर सबसे पहले पानी पीकर अपनी प्यास बुझाई फिर कटोरी में पानी भरने लगी जैसे ही कटोरी में पानी भरती वह कटोरी भारी हो जाती और उसकी चोंच से फिर नही उठती इस तरह बार-बार वह कटोरी को उठाने का प्रयत्न करती लेकिन कटोरी को उठाने में असफल रहती। इस तरह सोन चिड़िया की यह गतिविधि और संघर्ष को भगवान शंकर और माता पार्वती दोनो बड़े भाव से देख रहे थे माता पार्वती ने भगवान शंकर से कहां प्रभु देखो वह सोन चिड़िया पानी कि कटोरी उठाने के लिए कितनी संघर्ष कर रही है। मुझसे उसकी यह पीड़ा नही देखी जा रही।
हे प्रभु… कृपा करके उसकी मदद करे कृपानाथ… माता पार्वती की यह करुणा भरी पुकार सुनकर भगवान शंकर को भी उस सोन चिड़िया पर दया आ गयी और भगवान शंकर और माता पार्वती दोनो सोन चिड़िया के पास जाकर सोन चिड़िया को दर्शन देकर बोले सोन चिड़िया तेरी अजब कहानी है और भगवान ने कृपा करके सोन चिड़िया को एक सुन्दर लड़की और उसकी कटोरी को सोने की गुंड बना दिया और उसकी वहां तक कि जीवन गाथा से सोन चिड़िया को अवगत कराया और आशीर्वाद देकर कहां कि सोन चिड़िया अब तुम अपना जीवन पुनः प्रारम्भ करो ऐसा कहकर अपने लोक को वापस चले गए। सोन चिड़िया नामक सुंदर युवती ने भगवान जी से आशीर्वाद पाकर सोने की गुंड में पानी भरकर अपने घर ससुराल की ओर कोठी में वापस आ गयी। एक सुन्दर युवती को सोने की चमकती गुंड में पानी भरकर जमींदार के घर के अंदर जाते हुए देखा तो गांव वाले को बड़ा आश्चर्य हुआ। यह नजारा जब गांव के लोगो ने अपनी आँखों से देखा तो कहासुनी करने लगे। सोन चिड़िया नामक सुंदर युवती कोठी में पहुंचकर घर के सारे काम, साफ-सफाई करके अपने पति, सास, ससुर का बेसब्री से इंतजार करने लगी।
उसी दिन शाम के समय जमींदार का लड़का यह सोच कर मामा के यहां से अपने घोड़े को जल्दी-जल्दी दौड़ाकर पहले ही घर इसलिए लौट आया क्योंकि लड़के को सोन चिड़िया कि चिंता सत्ता रही थी। और लड़का घर आते ही तुरंत अपने कक्ष में गया तो क्या देखता है कि एक सुंदर युवती उसके कक्ष में है उसने पूछा कि आप कौन हो तो सोन चिड़िया ने अपने पति के पैर छूकर उसके साथ होने वाली घटना का पूरा हाल सुनाया। सोन चिड़िया की सारी बात सुनकर जमींदार के लड़के ने भगवान शंकर और माता पार्वती को कोटि-कोटि प्रणाम किया और घर के मंदिर में जाकर पूजा अर्चना किया। कुछ समय बाद जमींदार और उसकी पत्नी भी वापस घर लौट आए तो लड़के ने अपने जमींदार माता-पिता को भी पूरा हाल सुनाया। पूरी सच्चाई सुनने के बाद फिर दूसरे दिन जमींदार ने नौकर को बुलाकर पंडित और पंडिताइन को अपने घर पर बुलाने का निमंत्रण भेजा। पंडित और पंडिताइन घबरा रहे थे कि अब जमींदार को पता चल गया है कि सोन चिड़िया हमारी बेटी नही बल्कि एक चिड़िया है और जमींदार अब हम दोनों को सजा देगा घबराये-घबराये पंडित और पंडिताइन दोनों जमींदार के घर आए जब जमींदार ने देखा की समधी समधन आए है तो दोनो का बड़ा आदर सत्कार किया। फिर जमींदार ने बेटा और बहु (सोन चिड़िया) से पंडित पंडिताइन से मिलाया और पूरा हाल सुनाया पंडित ने फिर पोथी पंचांग निकालकर उन दोनों के गृह नक्षत्र देखकर दोनों बेटी दामाद के उज्जवल भविष्य के लिए कथा पूजन किया और अपना आशीर्वाद देकर अपने घर वापस लौट आए। इस तरह जमींदार के परिवार में सोन चिड़िया ने अपना सुखमय दाम्पत्य जीवन प्रारम्भ किया।

पता : आमला, जिला- बैतूल (मध्यप्रदेश)

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Shopping Cart
Scroll to Top