झील-सी आँखों में तेरे, डूबकर खो जाऊँ मैं,
हर घड़ी तुझको ही सोचूँ, ख़ुद से भी खो जाऊँ मैं!
तेरे लब हँसते मिलें तो दिल मेरा खिलने लगे,
तू जो ख़ामोशी से बोले, दर्द भी सह जाऊँ मैं।
तेरे केशों की घटाएँ जब भी बिखरें सामने,
बादलों को ओढ़ कर फिर, चाँद-सा दिख जाऊँ मैं।
तेरी आँखों का जो जल है, रूह तक बहता रहे,
झील में बनकर किनारा, देर तक बह जाऊँ मैं।
तेरे संग हर पल मेरा एक नई दुनिया बने,
तू जो माँगे साथ दिल का, जान भी दे जाऊँ मैं।
इस मोहब्बत की ग़ज़ल को तू अगर अपना कहे,
हर सदा में, हर दुआ में तुझमें ही समाऊँ मैं।
झील-सी आँखों में तेरे, डूबकर खो जाऊँ मैं….
डूबकर खो जाऊँ मैं….
डॉ.सूर्य प्रताप राव रेपल्ली