कविता – इंसानियत का अंत

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मुनीश चौधरी

धरा हिली, गगन रोया, लहू से भीगा पथ,
पहलगाँव की वादियों में फैला आतंक रथ।
भोले-भाले तीर्थ यात्री, श्रद्धा जिनकी शान,
धर्म पूछ कर मार दिए, कैसा यह अपमान?

काश्मीर की पावन धरती, फिर से पूछे सवाल,
क्या ऐसे होंगे सपूत, जो बनें काल का भाल?
काँप उठे ये दुश्मन सारे, जिनका धर्म है पाप,
भारत माँ की गोदी में अब न चलेगा श्राप।

शौर्य जगे हर हिंदुस्तानी में, अग्नि बनें प्रचंड,
जैसे हनुमान ने लंका जलाई, वैसे ही हों चंड।
नर-नारी सब एक स्वर में, गूँजे जय जयकार,
“अब न बख्शेंगे आतंकी, होगा न्याय अपार!”

वो जो निर्दोषों पर बरसे, उनके लिए काल हम,
वीरों की संतान हैं हम, न सहेंगे घात हम।
हर दिल में ज्वाला बनकर, अब उठेगा रणघोष,
भारत की इस पावन धरती से होगा अंधकार सोष।

जय हिन्द! वंदे मातरम्!

 

मुनीश चौधरी

मुनीश चौधरी,
प्रधानाध्यापक प्राथमिक विद्यालय लौदाना, जेवर,गौतमबुद्धनगर।
मो.न.9536403430

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