गरीबी…….!!
अक्सर राह चलते बदतर हालात में भिखारी मिल जाते हैं! उनकी जिंदगी नर्क से भी अधिक बदतर होती हैं, जो उनके पिछले जन्मों के कुकर्म घोर पाप का दंड हैं, जो आज वर्तमान जीवन में विवश होकर लाचारी में जिंदगी काट रहे हैं…..!!
कलम…. आतुर हो उठ चल पड़ी और चंद पंक्तियों को धागे में पिरो कर प्रकाश डाल रही हैं कि आखिर इस तरह की स्थितियां बनती क्यों हैं…….!!
हाय ये गरीबी,
भी क्या गरीबी हैं!
लाचारी में न जाने किस किस के आगे,
हाथ फैला देती हैं!!
मेरे भी सपने सुहाने थे,
आसमां से भी परे थे!
किस्मत की मार से मेरे,
सब सपने मरे थे!!
शायद, मैं भी राजकुमारी थी,
पूर्व जन्म में किसी नगर की!
धन दौलत के नशे में मदहोश,
बेशुमार अपराध मैनें अक्सर की!!
वक्त बदल जाता हैं,
नया जन्म मिल जाता हैं!
पिछले जीवन का अपराध,
इस जीवन में भीख मंगाता हैं!!
झांक कर देखिए मेरी इन आंखों में,
कितनी बेबसी और लाचारी हैं!
भले ही खेली कूदी हूं लाखों में,
पर इस जीवन में तो नादारी हैं!!
हाय ये गरीबी,
भी क्या गरीबी हैं!
लाचारी में न जाने किस किस के आगे,
हाथ फैला देती हैं!!
जय मां भगवती…….!!
✍️…. पवन सुरोलिया “उपासक”