कवि वीरेंद्र कुमार की कविता – साहस

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आओ जागे नींद से
फैला है दिनकर का
मनहर आलोक
मिटा अन्धकार
हुआ धरा पर उजियारा
आओ करे साहस चले राह
करे मन से मन की बात
मिले हम हो मिलन
मिल कर गाये मंगल गान
बना रहे साहस से मान
न डरें न डरायें
बनाये धरा को साहस से
मन भावन सुन्दर उपवन
हो हरियाली भुवन में
खिले कलियां बनकर फूल
महके सारा भुवन
बन कर साहस का मान
हो साहस तो मिले साहस
चलते रहे मिलते रहे
करे साहस का सम्मान
साहस का सम्मान

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