वो ही तो हूँ मैं
गुजार दिए होंगे दिवस, मास, वर्ष
जो एक रात ना कट सके, वो पल ही तो हूँ मैं
जाने कितने ही लोगों से कितनी ही दफां की होगी बातें
हृदय की सुन सकूॅं, वो शख्स ही तो हूँ मैं
जीवन में बिताए है हसीन पल सबके साथ
जो कभी भूला ना पाओगे, वो लम्हा ही तो हूँ मैं
दुनिया की भीड़ में जब खुद को तन्हा पाओगे
एहसास जो अपनेपन का करा दे, वो साथ ही तो हूँ मैं
अपने ही मसलों में अपने आप को खो दोगे जब
खुद के ही वज़ूद से रुबरु करा दूॅं , वो हल ही तो हूँ मैं
अतीत के बेजुबान भावों को कह नहीं पाओगे जब
मूक विचारों को अभिव्यक्त कर दे, वो शब्द ही तो हूँ मैं
मन की तमन्नाओं को बयां करने में हिचकिचाओगे जब
मुख से प्रेमसुधा बरस जाए, वो स्वर ही तो हूँ मैं
जिंदगी में कभी उलझनो से भीगने लगे तन
पाक हो जाए चित्त जिससे, वो ख़्याल ही तो हूँ मैं
मुसीबतों से निबटने में अथक प्रयास से थक जाओगे जब
उसी वक्त चेहरे पर रौनक आए, वो मुस्कान ही तो हूँ मैं
जिम्मेदारियों में बदल गया
बचपन में खिलखिलाता वो चेहरा अब मुरझा गया
बिना सोचे समझे बोलने वाला अब चुप हो गया
हॅंसता मुस्कुराता शख्स अब जिम्मेदारियों में बदल गया
सारे दिन अल्हड़पन से घूमते अब रुक गया
माॅं भूख नहीं हैं से अब खाना बनाऊॅंगा बोलने लग गया
हॅंसता मुस्कुराता शख्स अब जिम्मेदारियों में बदल गया
बाइक बिना घर से निकलता नहीं अब बस पर रुक गया
इतंजार होता नहीं था अब इंतजार करते ही रह गया
हॅंसता मुस्कुराता शख्स अब जिम्मेदारियों में बदल गया
खूब खेलता-कूदता अब एक जगह ही रुक गया
घर से ऑफिस फिर ऑफिस से घर ही रह गया
हॅंसता मुस्कुराता शख्स अब जिम्मेदारियों में बदल गया
पसंद का खाना नहीं से अब कुछ भी खाने लग गया
करेला, लौकी, टिंडा भी अब भाने लग गया
हॅंसता मुस्कुराता शख्स अब जिम्मेदारियों में बदल गया
किसी की नहीं सुनने वाला बॉस की डाॅंट सुनने लग गया
पलट कर जवाब देने वाला अब मौन रहना सीख गया
हॅंसता मुस्कुराता शख्स अब जिम्मेदारियों में बदल गया
पापा से पैसे माॅंगने वाला अब खुद कमाने लग गया
जरूरतें पूरी नहीं होती खुद से अब यह सोचने लग गया
हॅंसता मुस्कुराता शख्स अब जिम्मेदारियों में बदल गया
दोस्ती सिवा कुछ नहीं अब खुद में ही सिमट कर रह गया
बरस बीत गए अब मिलना- जुलना छूट गया
हॅंसता मुस्कुराता शख्स अब जिम्मेदारियों में बदल गया
– किरण बैरवा
जयपुर, राजस्थान।