समय ने अक्सर मुझे तोड़ना चाहा
पर मैने उसे कभी ऐसा नहीं करने दिया
यही वजह रही, समय बार बार
मुझे तोड़ता रहा, पर हर बार उसे
हारना पड़ा, क्यों कि हार मुझे कभी स्वीकार नहीं हुई
जब जब उसने तोड़ा, तब तब
मै दुगने जोश से, उसको जवाब दिया
फिर उम्र भी मेरे आगे हार गई
जो चाहा, वह हासिल किया
ये मेरी जिद्द है, या अहम्
जिसे जो समझना समझे
मैने जीवन में सदा ही कर्म करने को
अपना साध्य बनाया
ईश्वर की, भाग्य की
समय है जैसी बाते
मुझे सदा ही बकवास लगती हैं
यही वजह है, मै कभी नहीं हारा
फिर कितना ही समय ने प्रयास किया
वह भी जानता है, मुझे अच्छे से
जब तक जिन्दा हूँ
हार स्वीकार नहीं कर सकता
यही वजह है कि
हर बार, हर पल मुस्कता हूँ
खुद की जीत की खुशी को
महसूस करते हुए
जानता हूँ कि, बाकी कौन है जो
खुश होगा, समय जैसी
भाग्य जैसी, ईश्वर जैसे
व्यर्थ प्रलाप मै उलझे
कुछ नहीं कर सकने के
दर्द को उन पर थोपते हुए
डॉ रामशंकर चंचल
झाबुआ मध्य प्रदेश