मन

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सतीश कुमार

जुड ही जाता हूँ
किसी ना किसी रूप में उससे
निहित है सकल
जीवन का सार व
भावों का सागर जिससे
यादों की बारात लेकर
कुछ अनकही बातों की यादें संजोकर
नाचतें हुए स्मृतियाँ भी
उसके अभावों में जैसे
मन के मधुर पथ पर
मंगल गीत गाती हो
सकल तारामंडल भी
दमकते हुए आलोक से
उसकी राह दिखलाता है
जगत उस अलौकिक प्रेम को
क्या कर पहचानेगा
जो स्वंय शिव व शिवत्व कहलाता है
जुड ही जाता हूँ
किसी ना किसी रूप में उससे
निहित है सकल
जीवन का सार व
भावों का सागर जिससे

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