जरा ठहर ज्या ऐ जिंदगी, क्यूं भग रही है!
जरा सुस्ता लेे, थकी सी लग रही है!
क्यूं कर रही है जिद्द उम्र से…….
जरा ख्याल रख अपना, उम्र भी ढल रही है!!
तकाजा ए उम्र अब कुछ, मुनासिब नहीं है!
चाहता है जिसको तूं वो, अब करीब नहीं है!
उतर रही है ढलान में तूं धिरे धिरे…….
मौसम के गुलजार, अब नसीब नहीं है!!
जिंदगी तेरी महफ़िल में, शमां जल रही है!
रात का सफर ठंडी हवा, लौ हिल रही है!
फरमा लेे कुछ आराम ए जिंदगी……..
भोर का तारा उदय हुआ, अब रात ढल रही है!!
जय मां भगवती……….!!
✍️…… पवन सुरोलिया “उपासक”
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बहोत बढिया हैं.