इंजी. रत्नेश गुप्ता

कवि की अभिलाषा

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कवि की अभिलाषा

ना चाहूँ मैं तालियों की बौछार
ना चाहूँ मैं प्रशंसा की फुहार
ना ही शाल श्रीफल की कामना है
ना ही गलहार की भावना है

ना ही छंदों के नियम को मानता हूँ
ना ही अलंकारों की कला मानता हूँ

चाहूँ तो बस आपसे यह सत्य वचन
मेरे शब्दों पर कर ले आत्मचिंतन मनन
मनन बाद कर ले थोड़ा सा आत्मावलोकन

इतना सब कर लिया कर ले एक काम
मेरे शब्दों पर थोड़ा सा हो जाए पथगमन

अब तो बहुत हो चुका है काम
जब यह 100% हो जाए विचार

उसी दिन मेरी कविता को शाल भाएंगे
श्रीफल के उपहार भी ललचाएँगे
उसी दिन प्रशंसा अब मुझे
उसी दिन तालियों की बौछार मुस्काएगी

हे बंधु, उसी दिन मेरी कविता धन्य हो जाएगी
उसी दिन मेरी लेखनी भी धन्य हो जाएगी

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