प्रतीक्षा

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तेरी प्रतीक्षा में सजनि
क्षण – क्षण बीतत जाए ।
पंथ निहारत थके नयन
आशा – गागरि रीतत जाए ।।
पर्वतों से धूप ढ़ल चुकी
और सुहानी रात ढ़ल चुकी ।
दिशा बदल चुकी पवन भी
काल – गति कितनी बदल चुकी।।
आए – गए मौसम यहॉं कई
प्रियतम तुम नहीं आए ।
पंथ निहारत थके नयन
आशा – गागरि रीतत जाए ।।
हों किसको हृदय – सुमन अर्पित
कैसे हो प्रेम – सुधा वर्षित ।
छिन गया उल्लास -उमंग तब
कैसे हो अंतरतम हर्षित ।।
हर पल दिल बस ,तुमको देखें
अंतस को सूनापन सताए ।
पंथ निहारत थके नयन
आशा – गागरि रीतत जाए।।

मणीन्द्र कौशिक

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