sad kavita

A solitary silhouette of a man in a jacket gazing at a lake during a peaceful sunset, creating a serene atmosphere.

कारे-जहाँ

कारे-जहाँ1 आजकल इस तरह बन गये, ज़हीन2 ख़तरे में, इबलीस3 मोहतात4 बन गये! ख़ुदा ने बनाया हमें उन्वान5 देकर – “इंसान”, दैर-ओ-काबा6 बनाकर हम क्या से क्या बन गये! सहीफ़ा7 जो दिया नेक बंदे को ख़ुदा ने, जनाब खुद मसीहा, ईबादत के मरकज़8 बन गये! ख़ुदा ही रहा मेरा मुस्तहक9 अजल10 से, ये तो दुनिया […]

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ग़ज़ल
रसाल सिंह 'राही'

मैं और तन्हाई

पसंद बहुत कुछ है मुझको पर चाहिये कुछ नहीं इश्क़ तो है मुझको उनसे पर मैं जताता नहीं मेरे इस दिल में अब क्या है मेरे इस दिल में कौन है यह भी जनता हूँ मैं मग़र हाले दिल सुनाता नहीं उस अजनबी से क्या है मेरा वास्ता क्या है मेरा रिश्ता आखिर कौन है

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कविता

हाइकु कविता

‘राना लिधौरी’ के #हाइकु:- (1) दुष्ट लोग तो, सदा कमी देखते। दूसरों में ही।। *** (2) दुख देखके सदा ही खुश होते। दूसरों में ही।। *** (3) खुद के दोष दूसरों में ही झाँके। खुद को आं आँके।। *** हाइकुकार- राजीव नामदेव “राना लिधौरी” संपादक “आकांक्षा” पत्रिका संपादक- ‘#अनुश्रुति’ त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका जिलाध्यक्ष म.प्र.

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कविता

अब तो हो बस आर या पार….. इस कविता ने पाकिस्तान को उसकी औकात दिखा दिया , हर हिन्दुस्तानी को यह कविता जरूर पढ़नी चाहिए

कविता – है हर दिल की यही पुकार,अब तो हो बस आर या पार….. थी जो हरियाली से भरी, हमारी पावन धरती कभी, इन नापाक इरादों ने कर दिया इसे है खून से लाल! हर दिल धड़क रहा था, सुकून से इस धरा पर यारों, है आज बेचैन हर घर परिवार, इस धरती का लाल!

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कविता

दास्तान-ए-एहबाब

दास्तान-ए-एहबाब मैं गहरा और गहरा, गहराता जा रहा हूँ, अब क्या छुपाना, मैं खुदा के पास जा रहा हूँ! ना रोको मुझे के अब बढ़े क़दम मेरे, जाने दो मुझको मैं जहाँ जा रहा हूँ! ना घबराओ तुम ना जाऊँगा इस जहानं से, बस घड़ी दो घड़ी में लौट कर आ रहा हूँ! हंसता है

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ग़ज़ल

हार मुझे कभी स्वीकार नहीं

समय ने अक्सर मुझे तोड़ना चाहा पर मैने उसे कभी ऐसा नहीं करने दिया यही वजह रही, समय बार बार मुझे तोड़ता रहा, पर हर बार उसे हारना पड़ा, क्यों कि हार मुझे कभी स्वीकार नहीं हुई जब जब उसने तोड़ा, तब तब मै दुगने जोश से, उसको जवाब दिया फिर उम्र भी मेरे आगे

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कविता

डा.नरेश कुमार ‘सागर’ की ग़ज़ल – खामोशी अब अच्छी नहीं सरकार जी..?

आखिर कब तक, शोक मनाऊं मुझको ये बतला देना ? एक बार ज़ालिम चेहरों को, हमको भी दिखला देना।। पहले कुछ पूछेंगे उनसे, मानवता दिख लाएंगे। सच ना बोला गर वो कातिल, टुकड़ों में बट बाएंगे।।   आखिर कब तक खूनी खेल ये, घाटी में खेला जाएगा ? मेरे घर में घर वालों को ,कब

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ग़ज़ल
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